Thursday 30 November 2017

गीता : प्रबंधन की सर्वोत्तम संहिता (पूनम नेगी)

श्रीमद्भगवद्गीता योगेश्वर श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी है। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञान का अनूठा प्रकाश है, जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। जीवन प्रबंधन की इस सर्वोत्तम आचार संहिता की विशिष्टता यह है कि अमन का यह संदेश युद्ध की भूमि से दिया गया है। गीता साधारण कर्मवाद को कर्मयोग में परिवर्तित करने के लिए तीन साधनों पर बल देती है-1.फल की आकांक्षा का त्याग 2. कर्तापन के अहंकार से मुक्ति 3. इशार्पण । इन सूत्रों में वेदों एवं उपनिषदों का सार झलकता है। तत्वदर्शी मनीषियों का कहना है कि ज्ञान, भक्ति व कर्म की इस अनूठी त्रिवेणी को जितनी बार पढ़ा जाता है; ज्ञान के नित नये रहस्य खुलते जाते हैं। विश्व के महानतम नीतिज्ञ श्रीकृष्ण व किंकर्तव्यविमूढ़ अर्जुन के मध्य का संवाद इस गीता ज्ञान का मूलतत्व है। 
18 अध्यायों के 700 श्लोकों में प्रवाहित इस अद्भुत ज्ञान गंगा का कोई सानी नहीं है, देश दुनिया के आध्यात्मिक मनीषी इस विषय पर एकमत हैं। श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत के छठे खंड ‘‘भीष्म पर्व’ का वह हिस्सा है जो वार्तालाप मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि में कृष्ण व अर्जुन के मध्य हुआ था। इसीलिए इस दिन को मोक्षदा एकादशी तथा गीता जयंती के रूप में भी जाना जाता है। आज से 100 वर्ष पूर्व जब हमारी महान देवभूमि विदेशी आक्रमणकारियों व अंग्रेजों के अत्याचारों से आक्रांत हो कराह रही थी। 1857 की क्रान्ति फेल हो चुकी थी। सम्पूर्ण भारत छोटे-छोटे वर्गों , टुकड़ों में बिखर गया था। हर भारतवासी हताश, निराश, असहाय, अत्याचारों से प्रताड़ित होकर अपने राष्ट्र को टूटता बिखरता देख रहा था। आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी। उन्हीं दिनों भगवान कृष्ण की इस देववाणी का संदेश महर्षि अरविन्द, महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक व विनोबा भावे सदृश देश के अनेक मनीषियों के अन्त:करण में प्रस्फुटित हुआ और वे भारत की स्वतंत्रता के लिए कठोर साधनात्मक पुरुषार्थ में जुट गए। गीता के पवित्र ज्ञानामृत का पान कर मोहनदास कर्मचन्द गांधी जैसा एक सामान्य का व्यक्ति ऐसे तेज पुंज के रूप में उठ खड़ा हुआ कि पूरा विश्व उन्हें महात्मा के रूप में जानने लगा। कहा जाता है कि अपने को दुनिया का सिरमौर बताने वाले अंग्रेजों में इस प्रकार की धारणा उपजने लगी कि महात्मा गांधी से आंख से आंख मिलाकर बात मत करना। उनकी आंखों में इस प्रकार का जादू है कि वह अपनी बात मनवाने की विलक्षण क्षमता रखते हैं। बापू का कहना था कि जैसे मां की गोद में बालक निर्भय रहता है, उसी प्रकार उनको गीता से अपनी समस्याओं को सुलझाने की अद्भुत शक्ति व प्रेरणा प्राप्त होती है।
इसी तरह भूदान आंदोलन के प्रणोता विनोबा भावे की कृति ‘‘गीता प्रवचन’ में कर्मयोग के सिद्धांत की समाजशास्त्रीय दृष्टि से अद्भुत विवेचना मिलती है। बाल गंगाधर तिलक कृत ‘‘गीता रहस्य’ में भगवान श्रीकृष्ण के निष्काम कर्मयोग की जो सरल, व्यावहारिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से स्पष्ट व्याख्या मिलती है, वह अपने आप में अद्भुत है। इसकी इस पुस्तक की रचना लोकमान्य जी ने माण्डला जेल (बर्मा) में की थी। वे अपने समय और समाज के मुताबिक गीता को देखना और समझना चाहते थे। एक थके हुए गुलाम समाज को जगाने के लिए वह गीता को संजीवनी बनाना चाहते थे। यह महान गीता का ही असर था कि ईसाई धर्म मानने वाले कनाडा के प्रधानमंत्री मिस्टर पीअर टुडो गीता पढ़कर भारत आये। उन्होंने कहा कि जीवन की शाम हो जाए और देह को दफनाया जाए उससे पहले अज्ञानता को दफनाना जरूरी है और वे प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर गाय और गीता-उपनिषद लेकर एकांतवासी हो गये थे। इसी तरह, सुप्रसिद्ध अमेरिकी संत महात्मा थोरो का कहना था कि प्राचीन भारत की सभी स्मरणीय वस्तुओं में श्रीमद् भगवदगीता से श्रेष्ठ कोई भी दूसरी वस्तु नहीं है। इसी तरह, एफ एच होलेम (इंग्लैंड) का कहना है कि वे ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतनी श्रद्धा व आदर इसीलिए रखते हैं क्योंकि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका गीता में सदियों पहले शुद्ध और सरल तरीके से समाधान दिया गया है। इसीलिए गीता भारत का ऐसा अमूल्य व दिव्य खजाना है, जिसे विश्व के समस्त धन से भी नहीं खरीदा जा सकता। आज देश-दुनिया के तमाम उच्च शिक्षण-प्रबंधन संस्थान और स्कूल इसे अपने पाठ्यक्रमों का हिस्सा बना रहे हैं। अमेरिका, जर्मनी व नीदरलैंड जैसे कई विकसित देशों ने अपने देश के शैक्षिक पाठ्यक्रम में शामिल कर रखा है। गीता के प्रबंधन सूत्रों को अपने प्रतिष्ठानों में लागू करने वाली देश भर की नामी-गिरामी कम्पनियां इनके नतीजों से काफी उत्साहित व प्रसन्न हैं। नामचीन मैनेजमेंट गुरुओं ने गीता के प्रबंधन सूत्रों का लाभ उठाकर उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैं।(RS)

No comments:

Post a Comment