Monday 11 February 2019

थाईलैंड के युवा सम्राट ने प्रशासन पर शिकंजा कसा (गौरीशंकर राजहंस) (पूर्व सांसद और पूर्व राजदूत) (साभार हिंदुस्तान )


तीन वर्ष पहले थाईलैंड के सम्राट भूमिबोल का निधन हुआ था। वह अपनी प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय थे और 70 वषार्ें तक उन्होंने थाईलैंड पर राज किया। उनके बारे में कहते हैं कि वह कई बार राजमहल से निकलकर देहात की जनता के बीच चले जाते और उनके साथ श्रमदान करने लगते। थाईलैंड में कई सैनिक क्रांति और तख्ता पलट हुआ, परंतु जब-जब सेना ने सत्ता संभाली, उन्हें सम्राट भूमिबोल का आशीर्वाद प्राप्त होता था। थाईलैंड में राजा का स्थान सवार्ेच्च होता है। 80 प्रतिशत जनता बौद्ध धर्म की अनुयायी है और वहां पूजा घरों में भगवान बुद्ध की प्रतिमा के साथ ही सम्राट का फोटो भी रखा जाता है। थाईलैंड में लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भी राजा की आलोचना नहीं कर सकते। लेखों या कहानी-उपन्यास में भी वर्तमान या पूर्व राजा या उनके वंशजों की आलोचना करने का कोई साहस नहीं करता। ऐसा होने पर तीन से 15 वषार्ें तक के कठोर कारावास का प्रावधान है, जिसके खिलाफ अपील भी नहीं की जा सकती।
साल 2016 में तत्कालीन सम्राट भूमिबोल के निधन के बाद युवराज ‘वज्रलोंगकोर्न’ सम्राट घोषित किए गए, लेकिन उन्होंने नौ सप्ताह तक पद ग्रहण नहीं किया। वह दिखाना चाहते थे कि दिवंगत सम्राट के प्रति उनमें असीम श्रद्धा है। हालांकि विवादास्पद जीवन शैली ने युवराज को आम जनता में बहुत जल्द अलोकप्रिय बना दिया। उनसे अधिक तो उनकी बहन लोकप्रिय थीं, जिनकी शिक्षा-दीक्षा भारत में ही हुई है और आज भी वह थाईलैंड में विदूषी मानी जाती हैं। लेकिन सम्राट को देवी-देवताओं जैसा मान देने वाली जनता की भावना का बेजा लाभ उठाते हुए नए सम्राट ने शासन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया। उन्होंने यूरोप के कई शहरों में बड़े-बडे़ महल बनवाए हैं। सबसे बड़ा महल जर्मनी के म्यूनिख शहर में है। वहीं से वह ट्वीट कर प्रशासन के कामों में हस्तक्षेप करते रहते हैं। सेना के बड़े अफसर या राजनेता युवा सम्राट की मनमानी को मन मसोसकर बर्दाश्त कर लेते हैं। बडे़ से बड़ा अधिकारी, यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी घुटने के बल चलकर सिर झुकाकर सम्राट के सामने सम्मान प्रकट करना होता है और सम्मान प्रकट करने के बाद वे सभी मंत्री उसी तरह घुटने के बल पर चलकर लौट जाते हैं। युवा सम्राट ने सत्ता संभालते ही सेना के तमाम फैसले रद्द कर दिए। सबसे पहले ‘प्रीवी कौंसिल’ खत्म की, क्योंकि अगला सम्राट तय करने का अधिकार उसी का था। उन्होंने ‘प्रीवी कौंसिल’ के अधिकतर सदस्य बदल दिए। इतनी संपत्ति अर्जित कर ली, जो देश के सबसे बड़े बैंक में जमा लोगों की कुल पूंजी के बराबर मानी जा रही है। वह बहुत कुछ ऐसा कर रहे हैं, जो गलत है, लेकिन सेना से लेकर नेताओं तक किसी में साहस नहीं कि उनकी ऐसी हरकतों का विरोध करे। युवा सम्राट खुलकर कहते हैं कि वह अनुशासन के पक्षधर हैं और जो लोग अनुशासन का विरोध करेंगे, उनकी जगह जेल में होगी।
थाईलैंड में बौद्ध धर्म सवार्ेच्च माना जाता है। युवा सम्राट ने बौद्ध धर्म के प्रमुख पुरोहित को बहाल करने से लेकर नए सेनापति की नियुक्ति में भी सिर्फ अपनी सुनी और सबसे बड़ी बात यह हुई कि उन्होंने सेना को चुनाव में जल्दी न करने का आदेश तक दे डाला। वह मानते थे कि देर होने पर सेना और राजनेता आपस में भिड़ेंगे, अराजकता फैलेगी और सरकार बनाना आसान नहीं होगा। वह मान बैठे हैं कि आम चुनाव में जितनी धांधली हो और देश में जितनी अराजकता फैलेगी, प्रशासन पर उनके हाथ उतने ही मजबूत रहेंगे।
आज जब किसी को उनके खिलाफ बोलने का साहस नहीं है, तब दक्षिण-पूर्व एशिया के पड़ोसी देश सांसें रोककर थाईलैंड के प्रशासन पर उनकी दिनोंदिन मजबूत होती पकड़ को देख रहे हैं। विदेशी राजनीतिक विश्लेषक यह आकलन करने में लगे हैं कि वह पूरी तरह प्रशासन और सेना पर शिकंजा कस लेंगे या कि देर-सबेर थाईलैंड में सैनिक क्रांति हो जाएगी और युवा सम्राट को कहीं अन्यत्र शरण लेनी पडे़गी। थाईलैंड की राजनीति में यह एक दिलचस्प मोड़ है और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की जनता उत्सुकता से नए सम्राट के अगले कदम का इंतजार कर रही है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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