Monday 11 February 2019

कब सुनी जाएगी पिघलते ग्लेशियरों की चेतावनी (ज्ञानेन्द्र रावत पर्यावरण कार्यकर्ता) (साभार हिंदुस्तान )


गंगोत्री ग्लेशियर से जुड़े चतुरंगी ग्लेशियर के बारे में खबर आई है कि यह इतनी तेजी से पिघल रहा है कि निकट भविष्य में इसका अस्तित्व समाप्त हो सकता है। भारत में विज्ञान की प्रतिष्ठित शोध पत्रिका करंट साइंस के फरवरी, 2019 के अंक में छपा एक शोध पत्र बताता है कि पर्यावरण बदलाव का हिमालय के ग्लेशियरों पर तेजी से असर पड़ रहा है, जिसे हम गंगोत्री ग्लेशियर कहते हैं, जो हमारी सदनीरा गंगा नदी का मुख्य स्रोत है, वह दरअसल 300 छोटे-बड़े ग्लेशियरों के मिलने से बना है। चतुरंगी ग्लेशियर इसी का एक हिस्सा है। गोविंद बल्लभ पंत संस्थान का यह अध्ययन बताता है कि यह ग्लेशियर लगातार पीछे हटता हुआ अब गंगोत्री ग्लेशियर से कट गया है, यानी अब यह गंगोत्री ग्लेशियर का हिस्सा नहीं रहा। इसका आकार 22.84 मीटर प्रतिवर्ष की दर से घट रहा है। हालांकि खुद गंगोत्री ग्लेशियर का आकार भी घट रहा है, लेकिन इसके घटने की रफ्तार प्रतिवर्ष नौ से 12 मीटर ही है।
वैसे यह खबर बहुत चौंकाने वाली इसलिए भी नहीं है कि ग्लेशियरों का घटना अब कोई नई बात नहीं रह गई। इसकी चर्चा काफी समय से है, लेकिन दुर्भाग्य से इस पर कुछ नहीं हो रहा। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत शृंखला माउंट एवरेस्ट, जिसे तिब्बत में माउंट कुमोलांग्मा कहा जाता है, बीते पांच दशकों से लगातार गरम हो रही है। इससे इसके आस-पास के हिमखंड काफी तेजी से पिघल रहे हैं। मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने भी बीते दिनों अपनी रिपोर्ट में इस पर चिंता व्यक्त की थी। उसकी चेतावनियों का क्या हुआ, हमें इसकी जानकारी नहीं है। कई दूसरे शोधों में यह भी बताया गया है कि हिमालय के कुल 9,600 के करीब ग्लेशियरों में से तकरीब 75 फीसदी ग्लेशियर पिघल रहे हैं। सैटेलाइट चित्रों के आधार पर इसकी पुष्टि हो चुकी है कि बीते 15-20 सालों में 3.75 किलोमीटर की बर्फ पिघल चुकी है। इसका सबसे बड़ा कारण समूचे हिमालयी क्षेत्र में तापमान में तेजी से हो रहा बदलाव है। जो स्थिति गंगोत्री ग्लेशियर की है, लगभग वही यमुनोत्री ग्लेशियर की भी है। यमुनोत्री ग्लेशियर गंगोत्री के मुकाबले काफी छोटा है। इसलिए उसका पिघलते जाना ज्यादा परेशान करने वाला है।
संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण रिपोर्ट में भी हिमालय के ग्लेशियरों के गायब होने की बात कही जा चुकी है। जलवायु बदलाव पर बने अंतरराष्ट्रीय पैनल आईपीसीसी ने तकरीबन दस साल पहले अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 2035 तक हिमालय के सभी ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के चलते खत्म हो जाएंगे। हालांकि हिमालय के मामले में सभी विशेषज्ञ इससे सहमत नहीं हैं, लेकिन संकट बड़ा है, इसे सब स्वीकार करते हैं। भारत ही नहीं, हिमालय के दूसरे हिस्सों का भी यही हाल है। दक्षिण-पश्चिम चीन के किंवंघई-तिब्बत पठार क्षेत्र के ग्लेशियर भी ग्लोबल वार्मिंग के चलते तेजी से पिघल रहे हैं। तिब्बत के इस क्षेत्र से कई नदियां चीन और भारतीय उपमहाद्वीप में निकलती हैं। चीन के विशेषज्ञों ने कहा है कि तिब्बत के ग्लेशियरों के पिघलने की दर इतनी तेज है, जितनी पहले कभी न थी। शोध के परिणामों से इस बात की पुष्टि होती है कि 2,400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ग्लेशियरों का एक बड़ा हिस्सा पिघल चुका है।
गौरतलब है कि धरती पर ताजे पानी के सबसे बड़े स्रोत ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के विश्वसनीय सूचक हैं। प्रांत के सर्वेक्षण और मैपिंग ब्यूरो के इंजीनियर चेंग हेनिंग के अनुसार, यांग्त्सी स्रोत के पांच फीसदी ग्लेशियर पिछले तीन दशक में पिघल चुके हैं। असल में ग्लेशियरों के पिघलने और जलवायु परिवर्तन में सीधा संबंध है। पिछले पचास सालों में तीन मौसम केंद्रों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, यह साबित हो गया है कि प्रांत की इन तीनों नदियों के औसत तापमान में लगातार इजाफा हो रहा है। वैज्ञानिकों ने इस बात पर जोर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के अलावा मानवीय गतिविधियां और जरूरत से ज्यादा दोहन भी ग्लेशियरों के पिघलने का एक बड़ा कारण है। ग्लेशियरों के पिघलने से भी बड़ी समस्या यह है कि हमारे पास फिलहाल इस समस्या का कोई समाधान नहीं है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

No comments:

Post a Comment