Monday 11 February 2019

मध्य-पूर्व की बढ़ती समस्याएं (भारत डोगरा)


मध्य-पूर्व का क्षेत्र बहुत समय से विश्व के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में गिना जाता रहा है। हाल में कई स्तरों पर बदलती स्थितियों के बीच यहां के तनाव और बढ़ गए हैं। यदि अमन-शांति और न्याय के नजरिए से देखा जाए तो यहां का सबसे चर्चित मुद्दा यह रहा है कि फिलिस्तीनियों की समस्याओं का न्यायसंगत समाधान हो। बड़े-बड़े प्रयास होने के बाद फिलिस्तीनियों की बुनियादी समस्याओं के समाधान पहले से और दूर जा चुके हैं। इस समय तो इस संदर्भ में उम्मीद बहुत कम नजर आ रही है। फिलिस्तीनियों को लग रहा है कि उनसे बड़े-बड़े वायदे करने वाले विश्व के नेता उनका साथ छोड़ चुके हैं। यह केवल फिलिस्तीनियों के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है क्योंकि बहुत समय से चल रही समस्याओं पर नोबल शांति पुरस्कार जीतने वाले प्रयासों के बावजूद यदि समस्या समाधान से और दूर होती नजर आती है, तो इससे विश्व में अमन-शांति के लिए चल रही प्रक्रियाओं और संस्थानों पर भी सवाल उठते हैं।
जरूरत इस बात की है कि अमन-शांति की प्रक्रियाओं और संस्थानों को और मजबूत किया जाए। यह फिलिस्तीन के संदर्भ में स्पष्ट नजर आ रहा है, तो यमन के संदर्भ में तो यह जरूरत और भी उभर कर सामने आ रही है। गृह युद्ध और सऊदी अरब की बमबारी से यमन बहुत बुरी तरह बर्बाद हुआ है। लाखों लोगों विशेषकर बच्चों के सामने खाद्य, दवाओं और अन्य बुनियादी जरूरतों का गंभीर अभाव है। इराक की गंभीर समस्याओं को तो विश्व स्तर पर जैसे भुला ही दिया गया है, पर हमें नहीं भूलना चाहिए कि पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका के हमलों और फिर उनके द्वारा लगाए प्रतिबंधों के कारण इराक की जितनी क्षति हुई थी और इस दौर में वहां जो नये तनाव उत्पन्न हुए थे, उनसे उभरने में अभी बहुत समय लगेगा। इसके बाद ऐसी स्थितियां उत्पन्न हुई जिनसे अति कट्टरवादी और हिंसक तत्त्व शक्तिशाली हुए। उनके द्वारा हिंसा और फिर उन्हें नियंत्रित करने के लिए हुए युद्ध में भी बहुत तबाही हुई।
सीरिया युद्ध से बुरी तरह तबाह हो चुका है। यहां के एक बड़े क्षेत्र के लोगों को राहत की बहुत जरूरत है। चार देशों में काफी समय तक उपेक्षा या हिंसा का शिकार रहे कुर्द लोगों की समस्याएं भी कुछ संदभरे में बढ़ी हैं। उनका उपयोग बड़ी ताकतें अपने हित के लिए करती हैं, और स्वार्थ सध जाने पर उन्हें उपेक्षित छोड़ देती हैं। हाल में हिंसक कट्टरपंथियों से साहसपूर्ण युद्ध कर उन्हें नियंत्रित करने में कुछ कुर्द संगठनों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई पर बाद में उन्हें उपेक्षित छोड़ दिया गया। बड़ी ताकतों के लिए विभिन्न समुदायों का दुख-दर्द नहीं, अपने हित महत्त्वपूर्ण रहे हैं। अमेरिका ने एक ओर इस्रइल व दूसरी ओर सऊदी अरब को अपना नजदीकी सहयोगी बनाने का प्रयास हाल में तेज किया है। इन तीन प्रमुख देशों की आक्रामकता इस समय ईरान पर केंद्रित है।
ईरान के प्रति आक्रामकता के कारण इस्रइल और सऊदी अरब भी एक-दूसरे के नजदीक आ गए हैं। इससे इस्रइल के लिए फिलिस्तीनियों के हितों की उपेक्षा करना और सरल हो गया है। ईरान से विरोध के अतिरिक्त सीरिया से असद सरकार को हटाने के उद्देश्य में भी सऊदी अरब और इस्रइल की साझेदारी है।सीरिया से अपने सैनिक हटाने के ट्रंप सरकार के घोषित निर्णय और पत्रकार खगोशी की हत्या के जटिल मामले के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका, इस्रइल और सऊदी अरब की नजदीकियों पर कुछ बाधा अवश्य पड़ी है, पर फिर भी यह तीनों एक दूसरे के बहुत नजदीक आए हैं। अमेरिका ने ईरान पर जो विवादास्पद प्रतिबंध हाल में लगाए हैं, उसका समर्थन सऊदी अरब और इस्रइल ने किया है।दूसरी ओर, अनेक अन्य बड़ी ताकतों ने इन प्रतिबंधों का कड़ा विरोध किया है। प्रतिबंधों का विरोध करने वाले देशों में रूस और चीन के अतिरिक्त फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और तुर्की भी हैं।
रूस की सीरिया में असद सरकार को बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। रूस की सीरिया और ईरान से मित्रता तो बढ़ी ही है, साथ में तुर्की से भी उसकी नजदीकी बढ़ी है। तुर्की नाटो का सदस्य देश है। इसके बावजूद उसके रूस से बढ़ते संबंध इस बात का संकेत हैं कि मध्य-पूर्व क्षेत्र के मामलों में रूस की भूमिका बढ़ रही है। इसलिए अपने-अपने स्तर पर अमेरिका और रूस, दोनों ने अपनी स्थिति मध्य-पूर्व में मजबूत बनाने के प्रयास जारी रखे हैं। पर महाशक्तियों के इन शक्ति समीकरणों से हट कर यमन, फिलिस्तीन, सीरिया, इराक, विभिन्न देशों के कुर्द और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों का दुख-दर्द बढ़ता जा रहा है। आखिर, वह दिन कब आएगा जब महाशक्तियों का अखाड़ा बनने के स्थान पर मध्य-पूर्व क्षेत्र के लोगों के वास्तविक दुख-दर्द को कम करने को प्राथमिकता मिल सकेगी? 

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