विकास के कई मानकों पर पाकिस्तान लगातार पिछड़ रहा है। दो करोड़ से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। 30% से कम महिलाएं ही रोजगार से जुड़ी हैं। पिछले 20 वर्षों में भारत, बांग्लादेश की तुलना में निर्यात पांच गुना कम दर से आगे बढ़ पाया है। देश की समस्याओं को समझने वाली प्रधानमंत्री इमरान खान की नई सरकार गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रही है। अगर इमरान खान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से मदद मिल गई तो यह पाकिस्तान के लिए इस तरह की सहायता का 22वां मौका होगा। पाक के लिए गरीबी, कुशासन और अस्थिरता ने भयावह स्थिति खड़ी कर दी है। परमाणु हथियारों और धार्मिक कट्टरपंथियों के कारण पाकिस्तान विश्व के लिए खतरा बन गया है। इमरान खान सहित कई लोग पाक की समस्याओं के लिए भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को दोषी ठहराते हैं। कई लोगों की दलील है कि पाकिस्तान युद्धग्रस्त अफगानिस्तान और आक्रामक भारत के बीच फंसा है। सेना के अधिकारों को जायज बताने के लिए इनका जिक्र होता है। फिर भी, पाकिस्तान की समस्याओं का सबसे बड़ा कारण सेना ही है। राजनेताओं पर सेना की हुकूमत चलती है।
1947 में पाकिस्तान बनने के बाद सेना ने न सिर्फ देश की कट्टर विचारधारा का बचाव किया बल्कि उसे दो विनाशकारी तरीकों से परिभाषित किया। देश का अस्तित्व सहिष्णु और समृद्ध नागरिकों की बजाय इस्लाम की रक्षा के लिए कायम है। सेना, जो भरोसा करती है कि देश को दुश्मनों ने घेर रखा है, प्रतिशोध, प्रताड़ना और उन्माद के सिद्धांत को आगे बढ़ाती है। इसके गंभीर असर सामने आए हैं। धर्मान्धता ने ऐसे उग्रपंथ को बढ़ावा दिया है जो लगता है कि देश के टुकड़े-टुकड़े कर देगा। इस्लाम के नाम पर हथियार उठाने वालों का सरकार समर्थन करती है। हालांकि,ऐसे तत्वों ने प्रारंभ में पाकिस्तान के कथित दुश्मनों के खिलाफ युद्ध छेड़ा था लेकिन जल्द ही उन्होंने देश में कहर ढा दिया। उग्रपंथियों, जिनमें से अधिकतर तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हैं, के हाथों 60 हजार पाकिस्तानी मारे जा चुके हैं। सेना ने आज भी कई हिंसक गुटों को शरण दे रखी है। 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमले का साजिशकर्ता देश में आजाद घूम रहा है।
उन्माद का सिद्धांत सेना को संसाधनों पर कब्जा करने में मदद करता है। विकास की बजाय सेना के खाते में ज्यादा पैसा जाता है। उसे ब्लैकमेल की आदत पड़ गई है। वह धमकी देती है कि हमें पैसा दो अन्यथा दुनिया के इस खतरनाक हिस्से में हम तुम्हारी समस्याएं और अधिक बढ़ाएंगे। यह गर्वीले राष्ट्रवाद के बावजूद विदेशी सहायता पर पाकिस्तान की निर्भरता का मुख्य कारण है। इसकी ताजा पुनरावृत्ति चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) प्रोजेक्ट के तहत सड़कों, रेलवे, बिजलीघरों, बंदरगाहों के निर्माण के लिए चीन से 60 अरब डॉलर के निवेश के रूप में हुई है। सीपीईसी प्रोजेक्ट इस कल्पना को रेखांकित करता है कि किसी अन्य बदलाव की बजाय बाहर से समृद्धि लाई जा सकती है। वैसे, भारत से बेहतर संबंधों के बिना पाकिस्तान अपनी क्षमता को कभी हासिल नहीं कर पाएगा। लेकिन, सेना किसी भी तरह के मेलजोल में बाधा डालती है।
कई मोर्चों पर पाकिस्तान की हालत खराब है। कराची में 250 कामगारों की कॉटन मिल के मालिक, एक बड़े चावल निर्यातक, शू फैक्टरी के मालिक और छोटे केमिस्ट स्टोर की चेन चलाने वाले एक व्यवसायी कहते हैं, बिजली और पानी की बढ़ती दर सिरदर्द बन चुकी है। केमिस्ट स्टोर के मालिक शिकायत करते हैं कि दिन में 16 घंटे बिजली न मिलने के कारण डीजल जनरेटरों के उपयोग की वजह से बिजली पर उनका खर्च दोगुना हो गया है। मिल मालिक बताते हैं, बिजली, पानी की ऊंची दर ने उनके कपड़े की लागत दो रुपए मीटर बढ़ा दी है। उनका कहना है, वे न केवल चीन बल्कि बांग्लादेश, भारत और श्रीलंका में अपने प्रतिद्वंद्वियों के सामने नहीं टिक पाते हैं। शू फैक्टरी के मालिक ने कुछ दिन पहले ही अपने आधे कामगारों की छुट्टी की है।
कराची में लोग आक्रोशित हैं कि सरकार पानी तक नहीं दे पा रही है। राजनीतिक संरक्षण में चलने वाले माफिया गिरोहों का सार्वजनिक पानी सप्लाई के सिस्टम पर कब्जा है। इस पृष्ठभूमि में इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) ने जुलाई 2018 में हुए चुनावों के बाद सत्ता हासिल की। खान की व्यक्तिगत ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है। उन्होंने भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के मुद्दों पर जनता का भरोसा पाया है।
जन समर्थन और परदे के पीछे सेना के आला अफसरों की मदद से इमरान सत्तारूढ़ हुए हैं। प्रधानमंत्री के सामने पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए आईएमएफ से मदद मांगने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। नए वित्तमंत्री असद उमर का कहना है, सऊदी अरब, चीन से मिलने वाले पैसे से आने वाले साल में कैश फ्लो की समस्या हल हो जाएगी। वैसे, सीपीईसी प्रोजेक्ट से पाकिस्तान की समस्याएं बढ़ रही हैं। संकेत हैं कि सरकार प्रोजेक्ट पर फिर से विचार कर सकती है। इससे लगता है कि परदे के पीछे सेना और इमरान खान क्यों अमेरिका से संबंध बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बहरहाल, सरकार द्वारा धर्म और उन्माद को बढ़ावा देने से बचने और सेना के अधिकारों को सीमित कर ही पाकिस्तान की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है।
1947 में पाकिस्तान बनने के बाद सेना ने न सिर्फ देश की कट्टर विचारधारा का बचाव किया बल्कि उसे दो विनाशकारी तरीकों से परिभाषित किया। देश का अस्तित्व सहिष्णु और समृद्ध नागरिकों की बजाय इस्लाम की रक्षा के लिए कायम है। सेना, जो भरोसा करती है कि देश को दुश्मनों ने घेर रखा है, प्रतिशोध, प्रताड़ना और उन्माद के सिद्धांत को आगे बढ़ाती है। इसके गंभीर असर सामने आए हैं। धर्मान्धता ने ऐसे उग्रपंथ को बढ़ावा दिया है जो लगता है कि देश के टुकड़े-टुकड़े कर देगा। इस्लाम के नाम पर हथियार उठाने वालों का सरकार समर्थन करती है। हालांकि,ऐसे तत्वों ने प्रारंभ में पाकिस्तान के कथित दुश्मनों के खिलाफ युद्ध छेड़ा था लेकिन जल्द ही उन्होंने देश में कहर ढा दिया। उग्रपंथियों, जिनमें से अधिकतर तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के हैं, के हाथों 60 हजार पाकिस्तानी मारे जा चुके हैं। सेना ने आज भी कई हिंसक गुटों को शरण दे रखी है। 2008 में मुंबई पर आतंकवादी हमले का साजिशकर्ता देश में आजाद घूम रहा है।
उन्माद का सिद्धांत सेना को संसाधनों पर कब्जा करने में मदद करता है। विकास की बजाय सेना के खाते में ज्यादा पैसा जाता है। उसे ब्लैकमेल की आदत पड़ गई है। वह धमकी देती है कि हमें पैसा दो अन्यथा दुनिया के इस खतरनाक हिस्से में हम तुम्हारी समस्याएं और अधिक बढ़ाएंगे। यह गर्वीले राष्ट्रवाद के बावजूद विदेशी सहायता पर पाकिस्तान की निर्भरता का मुख्य कारण है। इसकी ताजा पुनरावृत्ति चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) प्रोजेक्ट के तहत सड़कों, रेलवे, बिजलीघरों, बंदरगाहों के निर्माण के लिए चीन से 60 अरब डॉलर के निवेश के रूप में हुई है। सीपीईसी प्रोजेक्ट इस कल्पना को रेखांकित करता है कि किसी अन्य बदलाव की बजाय बाहर से समृद्धि लाई जा सकती है। वैसे, भारत से बेहतर संबंधों के बिना पाकिस्तान अपनी क्षमता को कभी हासिल नहीं कर पाएगा। लेकिन, सेना किसी भी तरह के मेलजोल में बाधा डालती है।
कई मोर्चों पर पाकिस्तान की हालत खराब है। कराची में 250 कामगारों की कॉटन मिल के मालिक, एक बड़े चावल निर्यातक, शू फैक्टरी के मालिक और छोटे केमिस्ट स्टोर की चेन चलाने वाले एक व्यवसायी कहते हैं, बिजली और पानी की बढ़ती दर सिरदर्द बन चुकी है। केमिस्ट स्टोर के मालिक शिकायत करते हैं कि दिन में 16 घंटे बिजली न मिलने के कारण डीजल जनरेटरों के उपयोग की वजह से बिजली पर उनका खर्च दोगुना हो गया है। मिल मालिक बताते हैं, बिजली, पानी की ऊंची दर ने उनके कपड़े की लागत दो रुपए मीटर बढ़ा दी है। उनका कहना है, वे न केवल चीन बल्कि बांग्लादेश, भारत और श्रीलंका में अपने प्रतिद्वंद्वियों के सामने नहीं टिक पाते हैं। शू फैक्टरी के मालिक ने कुछ दिन पहले ही अपने आधे कामगारों की छुट्टी की है।
कराची में लोग आक्रोशित हैं कि सरकार पानी तक नहीं दे पा रही है। राजनीतिक संरक्षण में चलने वाले माफिया गिरोहों का सार्वजनिक पानी सप्लाई के सिस्टम पर कब्जा है। इस पृष्ठभूमि में इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) ने जुलाई 2018 में हुए चुनावों के बाद सत्ता हासिल की। खान की व्यक्तिगत ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है। उन्होंने भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के मुद्दों पर जनता का भरोसा पाया है।
जन समर्थन और परदे के पीछे सेना के आला अफसरों की मदद से इमरान सत्तारूढ़ हुए हैं। प्रधानमंत्री के सामने पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए आईएमएफ से मदद मांगने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। नए वित्तमंत्री असद उमर का कहना है, सऊदी अरब, चीन से मिलने वाले पैसे से आने वाले साल में कैश फ्लो की समस्या हल हो जाएगी। वैसे, सीपीईसी प्रोजेक्ट से पाकिस्तान की समस्याएं बढ़ रही हैं। संकेत हैं कि सरकार प्रोजेक्ट पर फिर से विचार कर सकती है। इससे लगता है कि परदे के पीछे सेना और इमरान खान क्यों अमेरिका से संबंध बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बहरहाल, सरकार द्वारा धर्म और उन्माद को बढ़ावा देने से बचने और सेना के अधिकारों को सीमित कर ही पाकिस्तान की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है।
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