Monday 11 February 2019

प्रवासियों को जड़ों से जोड़ने की पहल (अरबिंद जयतिलक ) (साभार दैनिक जागरण )


प्रवासी भारतीय समुदाय के सम्मान में वाराणसी में आयोजित हो रहा 15वां प्रवासी भारतीय दिवस कई मायने में महत्वपूर्ण है। 21 से 23 जनवरी तक इस दिवस का आयोजन ऐसे समय हो रहा है, जब देश-दुनिया के लोग प्रयागराज कुंभ पहुंच रहे हैं। सरकार ने प्रवासी दिवस सम्मेलन के उपरांत प्रतिभागियों को 24 जनवरी को प्रयागराज कुंभ और 26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड समारोह में शामिल होने का कार्यक्रम तय किया है। इस पहल से प्रतिभागियों को भारत की धार्मिक-सांस्कृतिक विविधता को जानने के अलावा सामरिक शक्ति से परिचित होने का मौका मिलेगा।
प्रवासी भारतीयों का देश की उन्नति में अहम योगदान रहा है। हाल ही में विश्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष विदेश से पैसा प्राप्त करने वाले देशों में भारत अव्वल रहा। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में प्रवासी भारतीयों ने 80 अरब डॉलर भारत भेजा। इसमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है। वर्ष 2016 में यह 62.70 अरब डॉलर था जो 2017 में 65.30 अरब डॉलर हो गया। वर्ष 2017 में विदेश से भेजे गए धन की सकल घरेलू उत्पाद में 2.7 प्रतिशत हिस्सेदारी रही जो आने वाले वर्षो में बढ़ने की संभावना है। प्रवासी भारतीय अपने देश में जितना धन भेज रहे हैं वह भारत में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लगभग बराबर है। वर्ष 2014 में विश्व के विभिन्न देशों से प्रवासी भारतीयों ने तकरीबन 71 अरब डॉलर अपने घर भेजे जबकि 2013 में भारत में कुल 28 अरब डॉलर का ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ। प्रवासी भारतीयों में देश के प्रति अनुरक्ति बढ़ी है और निवेश के जरिये देश की अर्थव्यवस्था और विकास में अहम योगदान दे रहे हैं। अच्छी बात यह है कि प्रवासी भारतीय कारोबारियों, वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और उद्योगपतियों की प्रभावी भूमिका दुनिया के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था में सराही जा रही है। आज प्रवासी भारतीय विकसित और विकासशील देशों के सबसे महत्वपूर्ण विकास सहभागी बन गए हैं। इससे दुनिया में भारत की नई पीढ़ी की स्वीकार्यता बढ़ी है। अतीत में जाएं तो प्रवासी भारतीय समुदाय सैकड़ों वर्षो में हुए उत्प्रवास का परिणाम है और इसके पीछे वाणिज्यवाद, उपनिवेशवाद और वैश्वीकरण जैसे अनेक कारण रहे हैं। प्रवासी भारतीय विश्व के करीब चार दर्जन से अधिक देशों में फैले हुए हैं। करीब डेढ़ दर्जन देशों में प्रवासी भारतीयों की संख्या पांच लाख से भी अधिक है। वे वहां की आर्थिक व राजनीतिक दिशा भी तय करते हैं।
डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी ने प्रवासी भारतीयों पर अगस्त 2000 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इस पर अमल करते हुए तत्कालीन सरकार ने प्रवासी भारतीय दिवस मनाना शुरू किया। माना जाता है कि ज्यादातर लोग 19वीं शताब्दी में आर्थिक कारणों की वजह से दुनिया के अन्य देशों में गए। इसकी शुरुआत तात्कालिक कारणों से अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया, फिजी और कैरेबियाई देशों से हुई थी। बीसवीं शताब्दी के दौरान बेहतर जिंदगी की तलाश में भारतीयों ने पश्चिमी और खाड़ी के देशों का रुख किया। संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, ओमान, कुवैत और सउदी अरब में तकरीबन तीन करोड़ भारतीय काम कर रहे हैं जबकि पूरी दुनिया में करीब सवा सात करोड़ भारतीय मूल के लोग बसे हैं। अकेले संयुक्त अरब अमीरात में रह रहे प्रवासी भारतीयों द्वारा 12 अरब डॉलर भारत आता है। संयुक्त अरब अमीरात वाणिज्यिक एवं व्यावसायिक हब होने के कारण भारतीय कामगारों के लिए पहली पसंद है। खाड़ी के अन्य देशों ईरान, इराक, कतर में भी प्रवासी भारतीयों की बड़ी तादाद है। इनके अलावा यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप में भी बड़ी तादाद में प्रवासी भारतीय हैं। कनाडा प्रवासी भारतीयों की पहली पसंद बनता जा रहा है। कनाडा में रह रहे भारतीयों द्वारा वहां की नागरिकता हासिल करने वालों की संख्या में वर्ष 2017 के मुकाबले 2018 के शुरुआती 10 महीनों में 50 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है। जनवरी से अक्टूबर 2018 तक कुल 15,016 भारतीयों ने वहां की स्थायी नागरिकता हासिल की है। इस समयावधि में अलग-अलग देशों के 1.39 लाख लोग कनाडा के स्थायी नागरिक बने हैं जिनमें भारतीयों का अनुपात सर्वाधिक है। इसका मुख्य कारण यह है कि अक्टूबर 2017 के बाद से कनाडाई नागरिकता हासिल करने संबंधी नियमों में कुछ ढील दी गई है। अगर कोई व्यक्ति तीन साल तक व्यक्तिगत तौर पर कनाडा में रहे तो वह वहां का स्थायी नागरिक बनने के लिए आवेदन कर सकता है।
अमेरिका की आबादी का तकरीबन 0.6 प्रतिशत प्रवासी भारतीय हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में इन प्रवासी भारतीयों का बहुत बड़ा योगदान है। पिछले कुछ सालों में ये लोग वहां एक महत्वपूर्ण राजनीतिक ताकत के रूप में भी उभरे हैं। बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोगों की अमेरिकी प्रशासन और वहां की अर्थव्यवस्था की नीतियों को तय करने में धमक है। पेप्सी की सीईओ इंदिरा नूई, माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नाडेला, गूगल के सुंदर पिचाई आदि अमेरिका में अपनी चमक बिखेर रहे हैं। अमेरिका में भले ही ट्रंप प्रशासन प्रवासियों के खिलाफ है, लेकिन वहां के सांसद और उद्योग जगत के मुखिया इसके पक्ष में नहीं हैं। वे लोग अमेरिका की अर्थव्यवस्था में भारतीय युवाओं के योगदान की अहमियत को भलीभांति समझ रहे हैं। यह सही है कि अमेरिका में सिर्फ 30 लाख ही प्रवासी भारतीय हैं, लेकिन हाई टेक कंपनियों के करीब आठ प्रतिशत संस्थापक भारतीय हैं। करीब 28 प्रतिशत भारतीय अमेरिका में इंजीनियरिंग क्षेत्र में अपनी दक्षता का लोहा मनवा रहे हैं। अमेरिका में रहने वाले करीब 70 फीसद भारतीय प्रबंधन, विज्ञान, व्यापार और कला क्षेत्र से जुड़े हैं।
अमेरिकी एजेंसी ‘प्यू’ की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में भारतीय समुदाय ही सर्वाधिक शिक्षित है और उसका लाभ अमेरिका के साथ-साथ भारत को भी मिल रहा है। इसी तरह दक्षिण-पूर्व एशिया में भी भारी तादाद में प्रवासी भारतीय रहते हैं और प्रतिभा-परिश्रम के बल पर अपना लोहा मनवा रहे हैं।

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