Monday 10 October 2016

भारत-नेपाल : ’प्रचंड‘‘ रिश्ते की उम्मीद (अवधेश कुमार)


नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल उर्फ प्रचंड की यात्रा के दौरान हुए तीन समझौते उतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, जितने कि अटृट लगाव, सद्भाव व सदियों पुराने अनोखे संबंधों को हर हाल में बनाए रखने का संकल्प। प्रचंड के दिल में यदि भारत के साथ अनोखे संबंधों को बनाए रखने और चीन सहित किसी देश को भारत की जगह नहीं देने की उनकी प्रदर्शित सोच में ईमानदारी है तो ऐसे तीस समझौते कभी भी हो सकते हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद परंपरा का पालन करते हुए पहले दौरे पर भारत आने का तत्काल हम यह अर्थ निकाल सकते हैं कि वे भारत के संबंधों को सर्वाधिक महत्त्व देते हैं। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने चीन और भारत के बीच संतुलन बनाने के नाम पर चीन के पक्ष में झुकाव दिखाया था। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के शासनकाल में जब मधेसियों ने संविधान में अपना हक न दिए जाने के विरु द्ध नाकेबंदी की तो अन्य नेताओं की तरह प्रचंड ने भी भारत के खिलाफ आग उगला था। प्रचंड के तेवर से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नेपाल के कई नेताओं के साथ उनको भी यह असहास हुआ कि उस दौरान गलती भारत की नहीं थी। ओली ने ही चीन का भय दिखाकर भारत को दबाव में लाने की गलत रणनीति अपनाई थी। हालांकि एकाएक कुछ निष्कर्ष निकाल लेना जल्दबाजी होगी। लेकिन तत्काल यह कहा जा सकता है कि देर आयद दुरुस्त आयद! भारत तो हमेशा नेपाल को एक पड़ोसी से ज्यादा सहोदर भाई की तरह देखता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीति का एक पहलू पूरी दुनिया के सामने उजागर हुआ है, वह है किसी भी मुद्दे पर खुलकर बात करना। हैदराबाद हाउस में जब प्रचंड से उनकी मुलाकात हुई तो दोनों के बीच खुलकर बात हुई। भारत को तो नेपाल की ज्यादातर मांगों से तब तक कोई समस्या नहीं हो सकती, जब तक उसमें हमारा विरोध शामिल नहीं हो। नेपाल की रक्षा व सुरक्षा की जो भी चिंताएं थीं, भारत उन्हें दूर करने को तैयार है। नेपाल की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में हरसंभव मदद करने का वचन दिया गया है। मोदी और प्रचंड के सामने जिन तीन समझौते पर हस्ताक्षर हुए, उनमें एक नेपाल में ‘‘तराई परियोजना’ के तहत सड़क मार्ग बनाने और अन्य दो नेपाल को एक अरब डॉलर की आर्थिक मदद देने से जुड़ी हुई है। मोदी और प्रचंड की बैठक में यह भी सहमति बनी कि भारत नेपाल के भूकंप पीड़ित इलाकों में तीन लाख घर बनाएगा। ध्यान रखिए, पहले भारत ने दो लाख घर बनाने की बात कही थी। ओली की भारत विरोधी नीतियों के कारण यह काम गति नहीं पकड़ रहा था। मोदी ने कहा कि नेपाल में भारत की मदद से जो भी परियोजनाएं लगाई जाएंगी, उन्हें भारत अब एक निर्धारित समयसीमा में पूरा करेगा। भारत तराई क्षेत्र में सड़क बनाने के साथ ही वहां पावर ट्रांसमिशन की दो लाइन बनाने और पॉलीटेक्निक संस्थान बनाने को भी तैयार हुआ है। प्रचंड जब आठ वर्ष पहले पहली बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे तभी उनकी ओर से 1950 की ‘‘नेपाल-भारत शांति’ एवं ‘‘मैत्री संधि’ सहित नेपाल एवं भारत के बीच हुई विभिन्न संधियों एवं समझौतों की समीक्षा की मांग की गई थी। उस समय इसे लेकर खूब बहस हुई। लेकिन बात आगे बढ़ी नहीं। जैसा विदेश सचिव जयशंकर ने बातया प्रचंड ने पुन: यह बात दुहराई। हालांकि 1950 का समझौता भारत की आजादी के 3 वर्ष के अंदर हुआ था और उस समय दोनों देशों के नेताओं के संबंध एकदम गहरे थे। तो वह एक विास और अपनापन था और उस समय स्वयं भारत की यह हैसियत नहीं थी, जो आज है। मगर कोई भी संधि दोनों पक्षों की सहमति से ही कायम रह सकती है। यदि नेपाल इसमें बदलाव चाहता है, जैसा प्रचंड ने कहा तो उसे या तो उन बिंदुओं को रेखांकित करना चाहिए या फिर नए संधि का प्रारूप बनाकर सामने लाना चाहिए। मोदी ने अपनी नेपाल यात्रा के दौरान यही तो कहा था कि वे इस समझौते में किस तरह का बदलाव करना चाहते हैं, उसका प्रस्ताव भारत को भेजें। देखते हैं, नेपाल की ओर से किस तरह का प्रस्ताव आता है। प्रचंड के भारत दौरे पर नेपाल के मधेसियों और तराई में बसे जनजातियों की भी नजर थी। उनकी भारत से अपेक्षाएं हैं और हम उन्हें निराश नहीं कर सकते। भारत के लिए मधेस में बसे नेपाल की आबादी के करीब 51 प्रतिशत मधेसियों और आदिवासियों की समस्याओं और उनकी भावनाओं का महत्त्व है। उनके साथ जब भी संकट होता है वह समाधान के लिए स्वाभाविक ही भारत की ओर देखते हैं। अगर उनको लगता है कि नेपाल में पिछले वर्ष स्वीकृत संविधान में उनके साथ अन्याय हुआ है, इससे उनकी पहचान और राजनीतिक वजूद दोनों को खतरा है तो इसे नेपाल नेतृत्व को समझना होगा। यह ओली की विफलता थी कि मुद्दे को सुलझाने की जगह उन्होंने अड़ियल रुख अपनाया। यह किसी देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप का मामला नहीं है। भारत ने यह बात रखते समय साफ किया कि हर तरह का फैसला नेपाल की जनता एवं वहां की निर्वाचित सरकार को ही करना है। परंतु इसमें देरी न हो अन्यथा समस्या और संकट फिर पैदा हो जाएगा। इससे नेपाल में फिर राजनीतिक अस्थिरता कायम हो सकती है। प्रचंड ने शीघ्र ही मधेसियों और जनजातियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठकर इसे सुलझाने का वायदा किया है और हमें उस वायदे पर विास करना चाहिए। आवश्यकतानुसार उसमें सहयोग भी करना होगा। मूल बात संबंधों में विास और अपनत्व के भाव का है। प्रचंड ने अभी तक तो ऐसा प्रदर्शित किया है। भारत ने इसे ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया है कि दोनों देशों के बीच लगातार उच्चस्तरीय बातचीत होती रहनी चाहिए। इस योजना के तहत राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अगले महीने काठमांडू जाएंगे जबकि नेपाल की राष्ट्रपति विद्या भंडारी भी भारत आएंगी। इसके अलावा, प्रधानमंत्री ने भी नेपाल के प्रधानमंत्री का आमंतण्र स्वीकार किया है। इससे विास और सहकार को सुदृढ़ करने में मदद मिलेगी। (RS)

No comments:

Post a Comment