Monday 10 October 2016

एक-दूसरे के दुश्मन बनते राज्य (विवेक शुक्ला)


क्यों अपने देश के बहुत से राज्य एक-दूसरे से लड़ रहे हैं? क्यों नदी के जल के बंटवारे से लेकर एयरपोर्ट के नाम पर कलह हो रही है? क्या अपने देश के सूबे एक दूसरे से विकास के मामले में आगे बढ़ने के बजाय संकुचित मसलों पर लड़ते रहेंगे? अफसोस, लगता तो यही है। अभी कुछ दिन पहले ही तो देश की आइटी राजधानी बेंगलुरु झुलस रही थी। तमिल मूल के नागरिकों के साथ मारपीट हुई। उनकी दुकानों वगैरह को आग के हवाले कर दिया गया। वजह कावेरी जल विवाद है। सुप्रीम कोर्ट के कावेरी के जल के बंटवारे को लेकर दिए गए फैसले के बाद कर्नाटक में आगजनी हुई।
इधर वह मामला कुछ शांत हुआ तो अब कभी एक रहे पंजाब और हरियाणा आमने-सामने हैं। इनमें सतलुज-यमुना लिंक नहर के जल के बंटवारे पर लंबे समय से चल रही रस्साकशी के बाद अब एक नया क्लेश शुरू हो गया है। किच-किच की वजह मोहाली में निर्मित हवाई अड्डे के नाम को लेकर है। दरअसल चंडीगढ़ एयरपोर्ट मामले में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को पत्र लिखकर नाराजगी जताई है। बीते दिनों इस एयरपोर्ट से इंटरनेशनल फ्लाइट्स का श्रीगणोश शुरू हुआ। उस दिन पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल एक सरकारी प्रतिनिधिमंडल के साथ इस पहली फ्लाइट से गए। उस दौरान एयरपोर्ट के आसपास पंजाब सरकार के विज्ञापनों में चंडीगढ़ के बजाय मोहाली एयरपोर्ट लिखने पर मनोहर लाल खट्टर लाल-पीले हो गए। खट्टर कह रहे हैं, अभी तक एयरपोर्ट का नाम केंद्र सरकार ने नहीं रखा है और पंजाब का इस पर अपना हक जताना सही नहीं है। पंजाब सरकार ने मोहाली एयरपोर्ट से इंटरनेशनल फ्लाइट शुरू होने पर एयरपोर्ट पर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और अखबारों में विज्ञापन दिए। पंजाब सरकार ने इसे अपनी उपल}िध बताया है और एयरपोर्ट को चंडीगढ़ नहीं, बल्कि मोहाली इंटरनेशनल एयरपोर्ट बताने की कोशिश की है, जबकि हरियाणा ने भी इस एयरपोर्ट के निर्माण के दौरान बराबर का पैसा खर्च किया है।
हालांकि कुल मिलाकर लगता है कि आजकल मौसम नदी के जल के बंटवारे के बिंदु पर लड़ने का है। छत्तीसगढ़ और ओडिशा की जीवनदायनी महानदी के जल के बंटवारे के मसले पर दोनों राज्यों के बीच भी तलवारें खींच गई हैं। हालात बिगड़ रहे हैं। ओडिशा में स्थानीय राजनीतिक दल लगातार बंद का आह्वान कर रहे हैं तो छत्तीसगढ़ में भी लोग ओडिशा के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में अरपा, भैंसाझार बांध परियोजना के निर्माण से ओडिशा सरकार नाराज है। उसका मानना है कि इस बांध के निर्माण से राज्य के कई इलाकों में सूखे के हालात बनेंगे, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार की दलील है कि वो सिर्फ महानदी का बैक वॉटर रोक रहा है। यह पानी आगे जाकर ओडिशा में समुद्र में मिल जाता है। महानदी छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर से निकलकर ओडिशा की ओर बहती है। फिर यह भुवनेश्वर और पूरी के करीब समुद्र में मिल जाती है। बस गनीमत इतनी है कि अभी तक महानदी के पानी के बंटवारे पर ओडिशा या छत्तीसगढ़ का कोई शहर नहीं जला। जैसे बेंगलुरु जला था। दोनों राज्यों के नागरिकों ने एक-दूसरे के अपने यहां रहने वाले नागरिकों के साथ मारपीट या बदसलूकी नहीं की। यानी कावेरी से लेकर महानदी तक विवाद गहराते जा रहे हैं। इनका कोई स्थायी समाधान सामने आ नहीं रहा है। कावेरी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी कर्नाटक में हिंसा हुई। विभिन्न राज्य आपस में बिना सोचे-समङो लड़ रहे हैं। ये सिलसिला थमना चाहिए। नहीं तो हालात बेकाबू हो जाएंगे। फिलहाल राय केंद्र या कोर्ट की मध्यस्थता को भी नहीं मान रहे। हालात घोर अराजकता की तरफ बढ़ रहे हैं।
राज्यों के बीच विवादों की फेहरिस्त सच में लंबी है। बेलगाम को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच 1956 से ही सीमा विवाद चल रहा है। बेलगाम मराठी बहुल इलाका है जो कर्नाटक राज्य में आता है। महाराष्ट्र लंबे समय से बेलगाम के अपने में विलय की मांग करता रहा है। कुछ समय पहले इस मुद्दे पर आंदोलन करने वाले मराठी भाषियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था। लाठी चार्ज का महाराष्ट्र के सभी राजनीतिक दलों ने विरोध किया था। महाराष्ट्र के सभी दल बेलगाम और आसपास के इलाकों को महाराष्ट्र में मिलाने या केंद्रशासित घोषित करने की मांग करते रहे हैं। दरअसल बेलगाम में बड़ी संख्या में मराठीभाषी लोग रहते हैं। फिलहाल ये इलाका कर्नाटक में है। महाराष्ट्र और कर्नाटक में लंबे समय तक केंद्र के साथ कांग्रेस की सरकारें रहीं। फिर भी बेलगाम या सतलज-यमुना लिंक नहर जैसे मसले सुलझ नहीं पाए। समझ नहीं आता कि राज्यों के आपसी विवादों के हल क्यों निकल रहे? रंजिशें स्थायी हो गई हैं। इनको हल करने को लेकर लगता है कि कोई गंभीरता से प्रयास भी नहीं कर रहा। सब मामले को ठंडे बस्ते में डाल कर रखना चाहते हैं। सबको भय रहता है कि अगर विवाद को हल करने के क्रम में उन्हें नुकसान हुआ तो उनके राय की जनता उन्हें माफ नहीं करेगी।
और देश के नक्शे में आते ही तेलंगाना ने आंध्र प्रदेश से पंगा लेना शुरू कर दिया था। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री कभी-कभी लगता है कि सामान्य शिष्टाचार भी भूल गए हैं। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और तेलांगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव आपस में जिस तरह से व्यवहार कर रहे हैं, जाहिर तौर पर उसकी उनसे कतई अपेक्षा नहीं की जा सकती। दोनों का एक-दूसरे को लेकर रुख शर्मनाक है। आंध्र प्रदेश की सियासत को जानने-समझने वालों को पता है कि एक दौर में दोनों साथ थे, पर बाद में उन्होंने तेलंगाना राज्य की राजनीति करनी चालू कर दी। इसके चलते दोनों में दूरियां बढ़ीं। राजनीति में नेताओं और दलों में वाद-विवाद होते हैं। ये सामान्य बात है, पर विवाद किसी भी हालत में वैमनस्य में नहीं बदलने चाहिए। नायडू और राव जिस तरह से एक-दूसरे को लेकर आचरण करते हैं और आरोप लगाते हैं, उससे कोई भी निराश होगा। बेहतर होता कि आंध्र प्रदेश के बंटवारे के बाद दोनों राज्य आगे बढ़ते। दोनों में विकास होता। इससे देश को ही लाभ होता, पर यहां तो हद हो रही है। ये तो एक-दूसरे के जानी दुश्मन बनकर सामने आ रहे हैं। दोनों एक-दूसरे का चेहरा भी देखने से बचते हैं। नायडू और राव एक-दूसरे से बात भी कम ही करते हैं। दिल्ली के आंध्र भवन में जब नायडू-राव होते हैं तो वे एक-दूसरे से शिष्टाचारवश भी मुलाकात नहीं करते। पृथक तेलंगाना को लेकर चलने वाले आंदोलन के समय से ही आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के नेताओं और जनता में दूरियां बढ़ने लगी थीं। एक-दूसरे से शिकायतों के दौर शुरू हो गए थे। कुछ इस तरह के हालात बन गए थे कि मानो दो शत्रु राष्ट्र हों। तब ही लग रहा था कि ये राय आपस में मिल-जुलकर शायद न रह पाएं। वह सब अब सामने आ रहा है।
और सिर्फ राज्य ही एक-दूसरे के खिलाफ जंग नहीं कर रहे। अब एक राज्य के नागरिकों के लिए दूसरे राज्य में रहना चुनौती हो रहा है। पूर्वोत्तर र राज्योंमें हिंदी भाषी गोली के निशाने पर हैं, तो उत्तर भारत में नार्थ-ईस्ट के नागरिकों को तमाम तरह के अपमान ङोलने पड़ते हैं। महाराष्ट्र में बिहारी पिट रहे हैं। बेहतर ये होता कि पड़ोसी राज्य एक-दूसरे के खिलाफ कटुता रखने या फैलाने के बजाय अपने प्रदेशों के चौतरफा विकास पर फोकस करते। अपने यहां पर विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक-दूसरे से आगे बढ़ने की हरचंद कोशिश करते, पर मौजूदा सूरतेहाल पर नजर डालने पर लगता है कि अभी सूबों के बीच विवादों के स्थायी हल निकलना दूर की संभावना है। चीनी कहावत है कि पड़ोसी कभी प्रेम और मैत्री के वातावरण में नहीं रह सकते। यानी पड़ोसी तो लड़ेंगे ही। इनमें छत्तीस का आंकड़ा रहेगा ही। इनमें आपसी तकरार और टकराहट खत्म होने का नाम नहीं लेती। तो राज्यों की आपसी किच-किच जारी रहने वाली है।(DJ)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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