Monday 10 October 2016

भारत-नेपाल : बेहतर की शुरुआत (संगीता थपलियाल)

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल के भारत दौरे को दोनों देशों के परस्पर संबंधों में सुधार के रूप में देखा जा रहा है। नेपाल में 2015 में नया संविधान लागू होने की र्चचा के बाद दोनों देशों के बीच तनाव के चलते परस्पर संबंधों में ठहराव आ गया था। भारत के बार-बार आग्रह-‘‘सभी पक्षों और राजनीतिक दलों के बीच सर्वसम्मति बनाकर संविधान लागू कराया जाए’-के प्रति प्रमुख राजनीतिक दलों नेपाली कांग्रेस तथा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफनेपाल (यूनाइटेड मार्क्‍सिस्ट लेनिनिस्ट)-सीपीएन (यूएमएल) ने कोई ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया था। भारत से विदेश सचिव एस. जयशंकर, जो संविधान की घोषणा के ठीक एक दिन पहले नेपाल पहुंचे थे, जैसे प्रमुख भारतीयों के जल्दबाजी में किए दौरों को नेपाल की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप के रूप में देखा गया। नेपाल में संविधान का विरोधकर रहे लोगों के कारण भी नेपाल के साथभारत के संबंध प्रभावित हुए। मधेसियों ने अपनी भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाते हुए दोनों देशों के मध्य व्यापार एवं आवागमन के नाकों को अवरुद्ध कर दिया था। समूचे घटनाक्रम में अपनी भूमिका से भारत के नकार के बावजूद नेपालियों का मानना था कि अवरोध लगाने के लिए भारत ने मधेसी प्रदर्शनकारियों को समर्थन दिया था। प्रधानमंत्री केपी ओली ने जिस तरह स्थिति को संभाला उससे हालात और बिगड़ गए। मधेसी और जौन्ती जैसे प्रदर्शनकारियों से वार्ता करने के बजाय ओली ने ऊर्जा आपूत्तर्ि, जिसे आंदोलनकारियों ने अवरुद्ध कर दिया था, बनाए रखने के लिए चीन के साथबातचीत करके समझौतों पर हस्ताक्षर करने को तरजीह दी। चीन अनुदान के रूप में 1000 मीट्रिक टन ईधन की आपूत्तर्ि करने को सहमत हो गया था। लेकिन खराब मौसम और अपर्याप्त ढांचागत सुविधाएं होने के कारण चीन से आपूत्तर्ि नाकाफी रही। खाद्य पदार्थो, दवाओं आदि की कमी हो गईथी। नेपाल ने भारत से घिरी अपनी सीमाओं और आवागमन के लिहाज से भारत पर निर्भरता से निजात पाने के लिए चीन के साथ सड़क और रेल नेटवर्क जैसे यातायात साधनों की बाबत भी समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस कड़ी में तिब्बत क्षेत्रमें सात नए व्यापार मार्ग खोले गए ताकि स्थानीय स्तर पर सीमा व्यापार सुगम हो सके। नेपाल में बहुत से लोगों ने ओली की इस बात के लिए आलोचना की कि वह देश में हालात को सामान्य बनाने के लिए प्रदर्शनकारियों से बातचीत नहीं कर रहे या कुछ लोग इस बात से भी खफा थे कि घरेलू मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण किया जा रहा था। कुछने इसे ओली और भारतीय नेतृत्व के बीच अहम का टकराव करार दिया। लेकिन कुछको इस बात पर खुशी थी कि वह भारत के सामने उठ खड़े हुएथे। नेपाल की घरेलू राजनीति के चलते नेपाली कांग्रेस (एनसी) तथा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी-सेंटर)-सीपीएन (एम-सी)-एक दूसरे के करीब आ गई। फलस्वरूप प्रचंड प्रधानमंत्री के तौर पर आसीन हुए हैं। उनके नेतृत्व में नौ माह के लिए सरकार बनी है। तत्पश्चात बाद नौ माह तक के लिए नेपाली कांग्रेस की सरकार रहेगी। पहले के विपरीत जब प्रचंड ने 2008 में प्रधानमंत्री बनने के उपरांत अपना पहला दौरा चीन का किया था, इस बार वह भारत के दौरे पर पहुंचे। उनका दौरा परेशानियों से खाली नहीं था। उनकी अपनी पार्टी समेत राजनीतिक पार्टियों का उन पर दबाव था कि देश के ‘‘राष्ट्रीय हित’ के खिलाफभारत के साथकिसी भी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए जाने चाहिए। संभवत: तात्पर्य यह था कि ऐसा समझौता न कर लिया जाए जो उनकी पार्टी के लिए चुनावी राजनीति में दिक्कतों का सबब बन जाए। नेपाल से रवाना होने से पहले प्रचंड ने लोगों को आास्त किया कि नये समझौते के बजाय पुराने समझौतों के क्रियान्वयन पर ही बातचीत करेंगे। उन्होंने लोगों से अपील की कि बंदिश लगाने के बजाय उन्हें खुलकर फैसले करने दिए जाएं। प्रधानमंत्री मोदी ने प्रचंड को ‘‘नेपाल में शांति की प्रेरक शक्ति’ करार दिया। पहले भी कई मौकों पर मोदी ने माओवादियों की इस बात के लिए प्रशंसा की थी कि हिंसा छोड़कर मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने के लिएउन्होंने संविधानिक तौर-तरीकों को अपनाया। मोदी ने विास व्यक्त किया कि प्रचंड के नेतृत्व में ‘‘नेपाल अपने विविध समाज के सभी वगरे की आकांक्षाएं पूरी करते हुए समावेशी बातचीत के जरिए सफलतापूर्वक संविधान को लागू कर सकेगा।’ प्रचंड ने कहा है कि वह मधेसियों और जौन्तियों जैसे हाशिये पर पड़े समुदायों को राष्ट्र निर्माण के कार्य में अपने साथ जोड़ेंगे। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि हाशिये पर पड़े समुदाय भी माओवादियों के प्रति हमदर्दी रखने वाले उनके समर्थक रहे हैं। नागरिक युद्ध के दौरान माओवादियों ने मधेसियों, जौन्तियों, संघवाद पर महिलाओं और दलितों, राज्य पुनर्गठन, सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण की मांगें जोर-शोर से उठाईथीं। समी पक्षों को साथलेकर संविधान का मुद्दा उठाकर प्रचंड चाहते हैं कि उन मतभेदों को पाटा जाए जो 2014 में नया संविधान लागू किए जाने के दौरान उनके एनसी और यूएमएल का समर्थन किए जाने के फैसले से उभर आएथे।प्रचंड भारत, नेपाल और चीन के बीच अच्छे संबंधों के हामी हैं। देखा जाना है कि वह कितना बेहतर संतुलन बनाए रखते हैं। भारत के अपने पहले आधिकारिक दौरे से उन्होंने सफलतापूर्वक दोनों देशों के तनावपूर्ण संबंधों को सुधारने की दिशा में प्रयास किया है। ‘‘सर्वसम्मति के माध्यम से संविधान’ पर भारत के रुख से सहमति जता कर उन्होंने अपने घरेलू मोर्चे पर फायदा उठाने का प्रयास किया है। इससे उन्हें अपना खोया हुआ कुछजनाधार, खासकर हाशिये पर पड़े समूहों में, फिर से हासिल करने में सफलता मिलना तय है। वह ओली की घरेलू राजनीति और भारत के साथसंबंधों के मोर्चो पर अपरिपक्वता की आलोचना करते रहे हैं। प्रचंड की तात्कालिक चिंता है कि संवैधानिक संशोधनों और उनके क्रियान्वयन को अच्छे से सिरे चढ़ाया जाए। उनकी सरकार स्थानीय चुनाव कराना चाहती है। इसके लिए स्थानीय इकाइयों का गठन व प्रांतों के पुनर्गठन को अंतिम रूप देना होगा। प्रांतीय और आम चुनाव से पूर्व यह करना होगा। प्रचंड व नेपाली कांग्रेस के समक्ष बड़ी चुनौती है। (चेयरपर्सन, सेंटर फॉर इनर एशियन स्टडीज, जेएनयू)(RS)

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