Monday 10 October 2016

किराये की कोख : वरदान या अभिशाप! (सुभाषिनी अली)


केद्रीय मंत्रिमंडल ने 25 अगस्त को सरोगेसी (नियमन) विधेयक, 2016 को पारित कर दिया है। सरकार ने कहा है कि संसद में मतदान के लिए पेश किए जाने से पहले, इस विधेयक को निर्वचन समिति को भेजा जाएगा। यह कदम बहुत ही जरूरी है। समाज के सभी तबकों और संगठनों को निर्वाचन समिति में विचार के लिए अपने सुझाव, संशोधन तथा टिप्पणियों को पेश करना चाहिए, ताकि यह संसदीय समिति इस सब को ध्यान में रखते हुए, संसद के सामने अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश करे।सरोगेसी या किराए की कोख का उपयोग, एक चिकित्सकीय प्रक्रिया है, जिसका सहारा अब बढ़ती संख्या में नि:संतान दंपति तथा दूसरे लोग भी ले रहे हैं ताकि संतान का सुख हासिल कर सकें। इस चिकित्सकीय प्रक्रिया में किराए की कोख बनकर कोई महिला अपने गर्भ में किसी अन्य महिला के निषेचित अंड को पालती है तथा उससे बच्चे को जन्म देती है। दूसरी महिला की कोख का निषेचित अंड किराए की कोख की भूमिका अदा करने वाली महिला के गर्भाशय में रोप दिया जाता है। इस तरह, सरोगेसी से बेशक बहुत से लोगों की जिंदगियों में खुशियां आती हैं। लेकिन दुर्भाग्य से नि:संतान लोगों की किसी तरह से संतान हासिल करने की तीव्र उत्कंठा का फायदा उठाकर, डॉक्टरी के पेशे से जुड़े बहुत से लोग अनाप-शनाप कमाई भी कर रहे हैं।ये लोग सिर्फ सरोगेसी की प्रक्रिया से जुड़ी चिकित्सकीय प्रक्रियाओं का दाम ही नहीं वसूलते हैं बल्कि सरोगेट माताओं को ‘‘जुटाने’ का भी इंतजाम करते हैं। वे इस भूमिका के लिए ज्यादातर गरीब, अशिक्षित या कम पढ़ी-लिखी, जरूरतमंद महिलाओं को ही पकड़ते हैं। बेशक किराए की कोख की भूमिका अदा करने के लिए इन महिलाओं को भी पैसा मिलता है, फिर भी सच्चाई यही है कि इस मामले में सब कुछ जुटाने वाले ही सबसे तगड़ी फीस बटोर रहे होते हैं। इस तरह, बहुत से नि:संतान लोगों की अपनी संतान देखने की ललक का मुनाफाखोरी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और एक मानवीय आवश्यकता की पूर्ति करने वाली इस चिकित्सकीय प्रक्रिया को एक तगड़ी कमाई के धंधे में तब्दील कर दिया गया है। इस क्रम में बहुत ही कमजोर स्थिति की महिलाओं का तरह-तरह से शोषण भी होता है।इसीलिए हमेशा से ही यह मांग उठती रही है कि सरोगेसी का नियमन होना चाहिए और इसे सिर्फ दो पक्षों के बीच के कारोबारी सौदे की तरह नहीं लिया जाना चाहिए। वास्तव में सरोगेसी की प्रक्रिया का जिस तरह अक्सर किराए पर कोख लेने के रूप में जिक्र किया जाता है, वह इसे नंगई से एक धंधे की तरह लिए जाने को ही दिखाता है। इस सिलसिले में यह याद दिलाना अप्रासांगिक नहीं होगा कि आस्ट्रेलिया, चीन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, मैक्सिको, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, फिलीपींस, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, थाईलैंड तथा नेपाल आदि अनेक देशों में व्यापारिक सरोगेसी पर पाबंदी लगी हुई है। सरकार की ओर से पेश किए गए विधेयक की एक स्वागतयोग्य बात यह है कि इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सरोगेसी की प्रक्रिया में किसी तरह के व्यापारिक लेन-देन की इजाजत नहीं होगी। आवश्यक चिकित्सकीय सेवाओं के खर्चो को इस रोक से अलग रखा गया है। यह रोक हमारे समाज के सबसे गरीब तबके की महिलाओं को इस प्रक्रिया के जरिए हो सकने वाले शोषण से बचाने के लिए बहुत ही जरूरी है। ऐसी महिलाओं की गरीबी तथा कमजोर हैसियत का फायदा उठाकर ही कुछ लोग सरोगेसी के धंधे में भारी कमाई कर रहे हैं। हमारे देश में यह धंधा बढ़कर 2500 करोड़ रुपये का हो चुका बताया जाता है। हम उन लोगों से सहमत नहीं हैं, जो इस तरह की दलीलें पेश कर रहे हैं कि गरीब-लाचार महिलाओं को इस मामले में ‘‘स्वेच्छा से निर्णय’ करने की दिया जाना चाहिए और सरोगेसी को उनके लिए आजीविका के एक साधन की तरह देखा जाना चाहिए। यह किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है। ‘‘अंग व्यापार’ के गरीबों के स्वास्य, शरीर तथा जीवन पर, भयावह दुष्प्रभावों की जैसी जानकारियां सामने आ रही हैं, उनको देखते हुए इसमें ज्यादा बहस की गुंजाइश रह ही नहीं जाती है कि अंग बेचने या किराए की कोख बनने की ‘‘आजादी’ नहीं दी जा सकती है और नहीं दी जानी चाहिए।फिर भी इस विधेयक में कुछ ऐसे प्रावधान भी हैं, जिनसे हम सहमत नहीं हो सकते हैं। मिसाल के तौर पर हम इससे सहमत नहीं हैं कि किसी अकेले पुरु ष या स्त्री को या समलैंगिक दंपति को, सरोगेसी के जरिए संतान प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा। याद रहे कि इन सभी श्रेणियों के लोगों के लिए बच्चे गोद लेने की इजाजत है। फिर उन्हें सरोगेसी के जरिए संतान हासिल करने के अधिकार से क्यों वंचित किया जा रहा है? इस तरह के प्रावधान दकियानूसी मानसिकता को ही दिखाते हैं। इस विधेयक का मसौदा तैयार करने वाले मंत्रियों के ग्रुप की सदस्य, सुषमा स्वराज का यह बयान कि इन प्रावधानों को शामिल करते हुए हमारे देश के सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रखा गया है, इसी का सबूत है।इस विधेयक में ऐसे दंपतियों के भी सरोगेसी से दूसरी संतान हासिल करने पर रोक लगायी गई है, जिनके पास पहले ही स्वाभाविक या सरोगेसी के जरिए संतान कोई एक संतान मौजूद है। विधेयक में यह भी कहा गया है कि कोई भी दंपति शादी के पांच साल बाद ही सरोगेसी का सहारा ले सकता है। इसमें सरोगेट के माता-पिता के लिए न्यूनतम आयु संबंधी पाबंदियां भी लगाई गई हैं। ये बंदिशें काफी बेतुकी लगती हैं।
सरोगेसी को आजीविका के एक साधन की तरह देखा जाना चाहिए। ‘‘अंग व्यापार’ के गरीबों के स्वास्य, शरीर तथा जीवन पर, भयावह दुष्प्रभावों की जैसी जानकारियां सामने आ रही हैं, उनको देखते हुए इसमें ज्यादा बहस की गुंजाइश रह ही नहीं जाती है कि अंग बेचने या किराए की कोख बनने की ‘‘आजादी’ नहीं दी जा सकती है और नहीं दी जानी चाहिए(RS)

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