Wednesday 6 May 2015

भूकम्प से बचाने वाली हो स्मार्ट सिटी (प्रमोद भार्गव)

भारत सरकार ने सौ स्मार्ट शहर बसाने का फैसला उस समय लिया है, जब नेपाल समेत भारत भूकम्प खतरा झेल रहा है। आधुनिक सुख-सुविधाओं से लैस महानगर के बगल में नया उपनगर बसाना अहम हो सकता है, लेकिन सौ शहरों में ज्यादातर वे हैं,जो भूकम्प की उस बुनियाद पर खड़े हैं जिसके नीचे 57 फीसद हिस्से में विनाशकारी ऊर्जा अंगड़ाई ले रही है। बावजूद हमारे यहां व्यापक पैमाने पर भूकंप-रोधी भवनों का निर्माण नहीं हो रहा है। यह लापरवाही सरकारी और निजी दोनों स्तरों पर है। ऐसे में शोचनीय पहलू यह है कि भूकम्प से होने वाली त्रासदी में जो सबसे ज्यादा नुकसान होता है वह पक्के व बहुमंजिला भवनों के ढहने से ही होता है। ऐसे विडंबनापूर्ण हालत में स्मार्ट शहरों की नींव रखने से पहले भूकम्प रोधी मानकों का कड़ाई से पालन करने के साथ धरती के डोलने के समय एहतियात के लिए क्या कदम उठाएं जाए, इस हेतु पर्याप्त जागरूकता की जरूरत है।केंद्र की भाजपानीत सरकार ने पहले आम बजट में सौ स्मार्ट सिटी बसाने की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री मोदी की यह महत्वाकांक्षी योजना भाजपा के दृष्टि-पत्र में भी शामिल थी। भाजपा ने अपने चुनावी वादे पर अमल का फैसला केंद्रीय मंत्रिमंडल में ले लिया है। 2008 में महानगरीय आबादी से संबंधित एक रिपोर्ट के मुताबिक 34 करोड़ लोग शहरों में निवास करते हैं। अनुमान है कि 2030 तक यह आंकड़ा 59 करोड़ और 2050 में 81 करोड़ हो जाएगा। ऐसे में किसी भी सरकार का कर्त्तव्य बनता है कि वह शहरों को भविष्य की संभावनाओं के साथ आधुनिक व सुविधा संपन्न बनाए। इस नाते स्मार्ट सिटी मिशन और अटल शहरी रूपांतरण एवं पुनरुद्धार मिशन के तहत शहरों के कायाकल्प के लिए पांच वर्षो में एक लाख करोड़ रपए खर्च करने का जो निर्णय लिया है, वह उचित है क्योंकि इसमें अधोसंरचना, साफ पानी, साफ-सफाई, कचरा प्रबंधन, यातायात और भीड़ को नियंतण्रकरने जैसे बेहद अहम मुद्दे शामिल हैं। स्मार्ट शहरों में कमजोर आय वर्ग के लोगों को सस्ती दरों पर छोटे घर दिए जाने का भी प्रावधान है। इस परियोजना को मोदी के डिजिटल इंडिया मिशन का भी अहम हिस्सा माना जा रहा है, क्योंकि ये शहर वाई-फाई जैसी संचार तकनीक से भी जोड़े जाएंगे। लेकिन इस पूरी परियोजना में भूकम्प रोधी निर्माण की अनिवार्यता का कहीं जिक्र नहीं है? जबकि दिल्ली, मुबंई, कोलकाता, अहमदाबाद, पटना समेत 38 महानगर जो स्मार्ट परियोजना में षामिल हैं, भूकंप प्रभावित खतरनाक क्षेत्रों में आते हैं। गौरतलब है कि तमाम वैज्ञानिक प्रगाति के बावजूद भूकम्प की भविष्यवाणी दो मिनट पहले करना भी संभव नहीं है। भूकम्प संबंधी विश्वव्यापी शोध भूगर्भीय खुलासे और धरती की आंतरिक हलचल बयान करने में सक्षम हो गए हैं। भूकम्पीय तरंगों से प्रभावित क्षेत्र भी वैज्ञानिकों ने चिह्नित कर दिए हैं लेकिन ये किस क्षेत्र, किस समय और किस तीव्रता से धरती पर विभीषिका रचेंगे, इसका पूर्व खुलासा संभव नहीं हुआ है। लिहाजा भारत पहले जापान की तर्ज पर भूकम्प से निरपेक्ष रहने वाली तकनीक हासिल करे और फिर इस योजना को आगे बढ़ाए?हमारे यहां सबसे आधुनिक व स्मार्ट निर्माण दिल्ली मेट्रो है। इसमें करीब 23 लाख यात्री रोजाना सफर करते हैं। बावजूद विश्वस्तरीय भवन निर्माण और पथ संचालन के मानकों से जुड़ी यह रेल सरंचना 7.5 तीव्रता वाले भूकम्प का सामना करने में अक्षम है। संयुक्त राष्ट्र की आपदा के खतरे कम करने संबंधी ग्लोबल एसेसमेंट रिपोर्ट के मुताबिक भी दिल्ली मेट्रो भूकम्प व बाढ़ के हिसाब से सुरक्षित नहीं है। मेट्रो में इंसानी त्रासदी इसलिए ज्यादा हो सकती है,क्योंकि यह एक साथ सुरंग, उपरिमागी पथ से गुजरती है। गोया,जब दिल्ली मेट्रो निर्माण भूकम्प की कसौटी पर खरा नहीं है तो कैसे उम्मीद की जाए कि पहले से ही आबादी का संकट झेल रहे शहरों का विस्तार भूकम्परोधी अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से संपन्न होगा? दरअसल जापान ने अपने देश में भूकम्प रोधी भवन निर्माण और जीवन शैली विकसित करके साबित कर दिया है कि भूकम्प के बावजूद त्रासदी कम भी की जा सकती है और उससे बचा भी जा सकता है। जापान में आए दिन भूकम्प आते हैं और लोग बिना जन-धन हानि के बच जाते हैं। नेपाल में रिक्टर पैमाने के हिसाब 7.9 तीव्रता का भूकम्प आया और 6000 से भी ज्यादा लोग मारे गए। जबकि 2011 में फुकुशिमा में 8.5 तीव्रता के भूकम्प में कुछ ही लोग हताहत हुए। हम बखूबी जानते हैं कि भारत और नेपाल एक जैसे मानसिक धरातल के देश हैं। इसलिए किसी कुदरती आपदा की त्रासदी दोनों जगह कमोबेश एक जैसी होती है। हमने भी भूकम्प रोधी भवन निर्माण और नगर विकास योजनाएं विकसित नहीं की हैं और नेपाल भी तथाकथित आधुनिक विकास की इसी बदहाली में जी रहा है। नतीजतन भूकम्प आने पर सबसे ज्यादा जन-धन हानि भवनों के ढहने से हुई है। वैसे अपने यहां हम लातूर, कच्छ उत्तरकाशी व चमोली का भूकम्प झेल चुके हैं। बावजूद कोई सबक लेने की बजाय कथित शहरी विकास का पहलू जस का तस बना है।भारतीय उपमहाद्वीप का आधा हिस्सा भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है और यही वह क्षेत्र है,जहां धनी और बेतरतीब आबादी निवासरत है। लिहाजा भवन निर्माण की भूकम्प रोधी तकनीक अपनाने के साथ भूकम्प के सिलसिले में व्यापक जन-जगरूकता भी जरूरी है। अक्सर भूकम्प की आहट के बावजूद ज्यादातर लोग घरों में से बाहर नहीं निकलते हैं। इस लिहाज से रिहायशी बहुमंजिला में जनहानि कितनी विकट होगी अंदाजा लगा रोंगटे खड़े हो जाते हैं। बेशक देश में स्मार्ट शहर विकसित हों लेकिन शहरी विकास-नियोजन में भूकम्प रोधी उपेक्षित सावधानियां अनिवार्यत: बरती जानी चाहिए। सरकार ऐसी नीतियां अमल में लाएं, जिससे गांव और छोटे कस्बों में रहने वाले लोगों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार, आवास, शिक्षा, चिकित्सा सुविधा, बिजली, संचार और परिवहन सुविधाएं हासिल हों। ऐसा होगा तो गांवों से पलायन नहीं होगा और शहर आबादी के अतिरिक्त बोझ से बचे रहेंगे। नतीजतन सौ स्मार्ट शहरों की जरूरत ही नहीं रहेगी।

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