Tuesday 12 May 2015

श्रम कानून और कार्य संस्कृति की डगर (जयंतीलाल भंडारी)

हाल में देश में श्रम कानून की स्थिति और कार्य संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में दो नियंतण्र अध्ययन रिपोर्टे प्रकाशित हुई हैं। एक, विश्व बैंक की रिपोर्ट और दूसरी, अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय कारोबार आयोग (यूएसआईटीसी) की रिपोर्ट। विश्व बैंक की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक भारत के श्रम कानून दुनिया के सर्वाधिक प्रतिबंधनात्मक श्रम कानून हैं, जबकि यूएसआईटीसी रिपोर्ट का कहना है कि भारत में विदेशी निवेश और कारोबार संबंधी अनुकूल ठोस कदमों की कमी बनी हुई है। इन रिपोटरे के परिप्रेक्ष्य में देश के वर्तमान श्रम और औद्योगिक परिदृश्य के संबंध में सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों की ओर देखें तो पाते हैं कि देश के श्रम कानूनों में बदलाव जरूरी है। केंद्रीय श्रम मंत्रालय द्वारा हाल ही में कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजे गए तीन संशोधन विधेयकों के प्रति सरकार का अनुकूल रुख है। इन तीनों के जरिये श्रम कानून, कर्मचारी भविष्य निधि कानून और एक नये कानून को लाया जाएगा जिसके तहत छोटे कारखानों यानी 40 से कम कर्मचारियों वाली फैक्टरियों का नियमन किया जाएगा। बाल श्रम कानून में संशोधन के जरिये कुछ मौजूदा कानूनों के प्रावधान बदले जाएंगे और अनुपालन को आसान बनाया जाएगा। औद्योगिक विवाद अधिनियम को बदलने के लिए एक मसौदा कानून सार्वजनिक बहस के लिए जारी किया गया है। औद्योगिक विवाद अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन में अन्य बातों के अलावा यह भी चाहा गया है कि अब 100 के बजाय 300 कर्मचारियों की छंटनी होने पर ही सरकार हस्तक्षेप कर सके। ऐसे श्रम कानून संशोधन विधेयक से देश के कुल कारखानों में से करीब 70 फीसद को बड़ी राहत मिलेगी। इस विधेयक से उद्यमियों को अपने छोटे कारखानों का पंजीकरण कराने या उन्हें बंद करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक आवेदन देने की अनुमति होगी। यदि किसी कारखाने के लिए आवेदन मिलने पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो 30 दिनों के अंदर उसका स्वत: पंजीकरण हो जाएगा। अब कारखानों के लिए इंस्पेक्टर नहीैंहोंगे, बल्कि उनकी जगह समन्वयक होंगे, जो कारखाना लगाने और कारखाने को गतिशील करने में मदद करेंगे। कारखानों को बंद करने के मामले में उनके मालिक समन्वयक को संयंत्र बंद करने के 15 दिनों के अंदर ऑनलाइन सूचित कर सकते हैं। समन्वयक संयंत्र बंद करने की परिस्थितियों से संतुष्ट होने और कर्मचारियों के वेतन का निपटारा सुनिश्चित होने के बाद से कारखाने को अपनी पंजिका से हटा देंगे। श्रम संबंधी संशोधन विधेयक के तहत यह भी कहा गया है कि इसके तहत कामगारों के हित भी सवरेपरि बने रहेंगे। कामगारों के कल्याण के लिए सामाजिक सुरक्षा से जुड़ीं सभी योजनाएं कारखानों पर लागू रहेंगी। उदाहरण के लिए 20 से ज्यादा कामगारों वाले कारखानों के लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में योगदान देना अनिवार्य होगा। साथ ही, कामगारों को बैंक खाते के जरिये वेतन भुगतान किया जाएगा। कई वर्षो से अनुभव किया जा रहा है कि श्रम कानून भी उत्पादकता वृद्धि में बाधक बने हुए हैं। इसी परिप्रेक्ष्य में विधि आयोग ने 1998 में ऐसे कानूनों का अध्ययन किया था और ऐसे कानूनों की लंबी सूची तैयार की थी, जिन्हें समाप्त कर संबंधित कायरे को गतिशीलता दी जा सकती है। उच्चतम न्यायालय भी कई बार अप्रासंगिक हो चुके ऐसे कानूनों की कमियां गिनाता रहा है, जो काम को कठिन और लंबी अवधि का बनाते हैं। कई शोध अध्ययनों में तय उभर कर सामने आया है कि भारत में उदारीकरण की धीमी और जटिल प्रक्रिया के पीछे श्रम सुधारों की मंदगति प्रमुख कारण है। वर्ष 1991 के बाद से भारतीय उद्योगों को विश्वभर में प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के उद्देश्य से वित्तीय क्षेत्र, मुद्रा-बैंकिंग व्यवसाय, वाणिज्य, विनिमय दर और विदेशी निवेश क्षेत्र में नीतिगत बदलाव किए गए हैं। इन बदलावों के कारण श्रम कानूनों में बदलाव भी जरूरी दिखाई दे रहे हैं। अब भारत में निवेश बढ़ाने और मेक इन इंडिया अभियान के सफल होने की संभावनाएं साकार करने के लिए श्रम सुधार जरूरी हो गए हैं। यद्यपि अब तक देश में श्रम सुधार के मद्देनजर दो श्रम आयोग बने हैं, लेकिन उनकी सिफारिशों का क्रियान्वयन नहीं हुआ। प्रथम राष्ट्रीय श्रम आयोग का गठन 24 सितम्बर, 1966 को किया गया था। तीन साल बाद प्रथम श्रम आयोग द्वारा प्रस्तुत सिफारिशें मोटे तौर पर श्रम सुधार और श्रम संरक्षण पर केंद्रित थीं। फिर सरकार ने नई औद्योगिक-व्यावसायिक जरूरतों के लिए व्यापक श्रम कानून बनाने के बारे में सिफारिश करने के लिए रविन्द्र वर्मा की अध्यक्षता में 15 अक्टूबर, 1999 को दूसरे श्रम आयोग का गठन किया था। द्वितीय श्रम आयोग ने 29 जून, 2002 को श्रम संरक्षण और श्रम सुधार से जुड़ीं सिफारिशों का मसौदा सरकार को सौंपा था। इनमें से कई सिफारिशें नई श्रम कार्य जरूरतों को रेखांकित करती हैं। मसलन राष्ट्रीय छुट्टियों में कटौती, उद्योगों को बिना सरकार की इजाजत बंद करने और कर्मचारियों की छंटनी करने का अधिकार। इसके साथ-साथ द्वितीय श्रम आयोग ने चीन को मॉडल बनाकर श्रम कानूनों को उपयुक्त बनाने की भी सिफारिशें की हैं। चीन में श्रम कानूनों को अत्यधिक उदार और लचीला बनाकर कार्य संस्कृति विकसित की गई है। लेकिन द्वितीय श्रम आयोग की सिफारिशें सरकार के ठंडे बस्ते में बंद पड़ी रहीं। निस्संदेह अब देश में विदेशी निवेश और कारोबार संबंधी अनुकूलता के लिए कानूनों की सरलता के साथ नई कार्य संस्कृति को अपनाए जाने हेतु अधिक प्रयासों की जरूरत है। इस समय केंद्र सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए छठा वेतन आयोग लागू है। इसके तहत अच्छा वेतन एवं सुविधाएं मिल रही हैं। कोई छह वर्ष पहले 24 मार्च, 2008 को न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता वाले छठे वेतन आयोग ने अपनी जो रिपोर्ट तत्कालीन वित्त मंत्री को सौंपी थी, उसमें केंद्रीय कर्मचारियों को अच्छा वेतन देने के साथ-साथ उनसे नई कार्य संस्कृति की अपेक्षा की गई थी। इस रिपोर्ट की सिफारिशों के लागू होने से 40 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को लाभ मिला और उनके वेतन औसतन 40 प्रतिशत बढ़ गए। वेतन के साथ मिलने वाले अन्य लाभ भी बेहतर बनाए गए हैं। लेकिन छठे वेतन आयोग ने कार्य संस्कृति, समयबद्धता, अनुशासन, कर्मचारियों की संख्या व खर्च में कटौती, कागजी कायरे में कमी, अल्पावधि जांच, भ्रष्टाचार पर रोक, अनुबंधित सेवा, कार्यकुशलता आधारित पदोन्नति और लेटलतीफ कर्मचारियों की निगरानी पर जो सिफारिशें दी थीं, वे कार्यान्वित नहीं हुई हैं। देश के निजी क्षेत्र की तरह सरकारी सेवक नई कार्य संस्कृति की ओर आगे नहीं बढ़े। सरकारी क्षेत्र उत्पादकता और गुणवत्ता का परचम लहराते हुए दिखाई नहीं दे रहा है। बीते दशकों में भारी वेतन वृद्धियों के बाद भी देश की नौकरशाही के ढांचे में कार्य संस्कृति की कोई विशेष पहल नहीं दिखी है। यह भी उल्लेखनीय है कि देश में केंद्र एवं राज्य सरकारों के कर्मचारियों और अधिकारियों की संख्या देश की कुल आबादी के 1.2 फीसद के लगभग है, लेकिन बड़ी संख्या ऐसे लोगों की भी है, जिनके पास करने को कोई विशिष्ट काम नहीं है, और वेतन के अनुरूप उनकी कोई कार्य उत्पादकता नहीं है। आशा करें कि मोदी सरकार एक वर्ष पूर्ण करने के अवसर पर देश के श्रम कानूनों और कार्य संस्कृति को कारोबार के अनुकूल बनाने के कार्य पर प्राथमिकता से ध्यान देगी। सरकार मेक इन इंडिया अभियान को सफल बनाने और दुनिया के बाजार में भारतीय उद्योगों को पैर जमाने में मदद के लिए श्रम सुधारों की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी। काम की स्पीड बढ़ाने, काम वक्त पर पूरा करने और जवाबदेही के मद्देनजर मंत्रालयों और विभागों में काम करने के मौजूदा सिस्टम को बदलने के लिए मोदी सरकार ने पिछले एक वर्ष में जो आदेश जारी किए हैं, उनका कारगर और प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन किया जाएगा। (लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)(

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