Wednesday 6 May 2015

इलेक्ट्रॉनिक कचरे का जहरीला संकट (मुकुल श्रीवास्तव)

भारत इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा करने वाला दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश बन चुका है। भारत ने 2014 में 17 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरण कचरे के रूप में निकाले। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। तकनीक के इस जमाने में हर वह शब्द जिसके साथ ‘‘ई’ जुड़ जाता है, प्रगति का पर्याय बन जाता है। इस समय इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप, टैबलेट आदि हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। नित नई तकनीक के साथ अपने आप को जोड़े रखने के जुनून में हम भूल जाते हैं कि पुराने कंप्यूटर का क्या होगा। पुरानी सीडी व दूसरे ई-वेस्ट को कूड़ेदान में डालते वक्त हम कभी ध्यान ही नहीं देते कि यह कबाड़ हमारे लिए कितना खतरनाक हो सकता है। वैसे पहली नजर में ऐसा लगता भी नहीं है। बस, यही है ई-वेस्ट का शांत खतरा। बदलती जीवनशैली और बढ़ते शहरीकरण के चलते इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का ज्यादा प्रयोग होने लगा है, मगर इससे पैदा होने वाले ई-कचरे के दुष्परिणाम से लोग बेखबर है।तकनीक की इस दौड़ में हम कभी इस तय की ओर नहीं सोचते कि जब इन उपकरणों की उपयोगिता खत्म हो जाएगी, तब इनका क्या किया जाएगा। ई-कचरे के अंतर्गत वे सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आते हैं जिनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। ई-कचरा या ई-वेस्ट एक ऐसा शब्द है जो तरक्की के इस प्रतीक के दूसरे पहलू की ओर इशारा करता है। वह पहलू है पर्यावरण का विनाश। पिछले साल दुनिया में सबसे ज्यादा 1.6 करोड़ टन ई-कचरा एशिया में पैदा हुआ। इनमें चीन में 60 लाख टन, जापान में 22 लाख टन और भारत में 17 लाख टन ई-कचरा पैदा हुआ। वहीं यूरोप में सबसे ज्यादा ई-कचरा करने वाले देशों में नार्वे पहले, स्विट्जरलैंड दूसरे, आइसलैंड तीसरे, डेनमार्क चौथे और ब्रिटेन पांचवें पायदान पर रहा। वहीं सबसे कम 19 लाख टन ई-कचरा अफ्रीका में पैदा हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 में ई-कचरे की मात्रा 21 फीसद तक बढ़कर 5 करोड़ टन पहुंचने की संभावना है। जहां अमेरिका में पिछले पांच सालों में ई-कचरे में 13 फीसद बढ़ोतरी हुई है, वहीं चीन में दोगुनी वृद्धि हुई है। आशंका है कि 2017 तक चीन, अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा। पिछले साल पैदा हुए ई-कचरे में महज सात फीसद मोबाइल फोन, कैलकुलेटर, पीसी, प्रिंटर और छोटे आईटी उपकरण रहे, वहीं करीब 60 फीसद हिस्सा घरों और कारोबार में इस्तेमाल होने वाले वैक्यूम क्लीनर, टोस्टर्स, इलेक्ट्रिक रेजर्स, वीडियो कैमरा, वॉशिंग मशीन और इलेक्ट्रिक स्टोव जैसे उपकरणों का था। ई-कचरे का सबसे अधिक उत्सर्जन विकसित देशों द्वारा किया जाता है जिसमें अमेरिका अव्वल है। विकसित देशों में पैदा होने वाला अधिकतर ई-कचरा प्रशमन के लिए एशिया और पश्चिमी अफ्रीका के गरीब अथवा अल्प-विकसित देशों में भेज दिया जाता है। यह ई-कचरा इन देशों के लिए भीषण मुसीबत का रूप लेता जा रहा है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग 4 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है। राज्यसभा सचिवालय द्वारा ‘‘ई-वेस्ट इन इंडिया’ के नाम से प्रकाशित एक दस्तावेज के अनुसार भारत में उत्पन्न होने वाले कुल ई-कचरे का लगभग 70 प्रतिशत केवल दस राज्यों और लगभग 60 प्रतिशत कुल 65 शहरों से आता है। ई-कचरे के उत्पादन में मामले में महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे समृद्ध राज्य और मुंबई व दिल्ली जैसे महानगर अव्वल हैं। एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश का लगभग 90 प्रतिशत ई-कचरा असंगठित क्षेत्र के अप्रशिक्षित लोगों द्वारा निस्तारित किया जाता है। ये लोग आवश्यक सुरक्षा मानकों से अनभिज्ञ होते हैं। एक खबर के अनुसार इस वक्त देश में लगभग 16 कंपनियां ई-कचरे के प्रशमन के काम में लगी हैं। इनकी कुल निस्तारण क्षमता देश में पैदा होने वाले कुल ई-कचरे के 10 प्रतिशत से भी कम है।विगत वर्षो में ई-कचरे की मात्रा में लगातार तीव्र वृद्धि हो रही है और प्रतिवर्ष लगभग 20 से 50 मीट्रिक टन ई-कचरा विश्व भर में फेंका जा रहा है। ठोस कचरे में सबसे तेज वृद्धि दर ई-कचरे में ही देखी जा रही है, क्योंकि लोग अब अपने टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल, प्रिंटर आदि को पहले से अधिक जल्दी बदलने लगे हैं। इनमें सबसे ज्यादा दिक्कत पैदा हो रही है कंप्यूटर और मोबाइल से, क्योंकि इनका तकनीकी विकास इतनी तीव्र गति से हो रहा है कि ये बहुत ही कम समय में पुराने हो जाते हैं और इन्हें बदलना पड़ता है। भविष्य में ई-कचरे की समस्या कितनी विकराल हो सकती है, इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षो में विकसित देशों में कंप्यूटर और मोबाइल उपकरणों की औसत आयु घट कर मात्र दो साल रह गई है। घटते दामों और बढ़ती क्रय शक्ति के कारण ई-उपकरणों की संख्या और प्रतिस्थापना दर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। ई-कचरा पूरे विश्व में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है। घरेलू ई-कचरे जैसे अनुपयोगी टीवी और रेफ्रिजरेटर में लगभग एक हजार विषैले पदार्थ होते हैं जो मिट्टी एवं भू-जल को प्रदूषित करते हैं। इन पदार्थो के संपर्क में आने पर सरदर्द, उल्टी, मतली, आंखों में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। ई-कचरे का पुनर्चकण्रएवं निस्तारण अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने ई-कचरे के प्रबंधन के लिए विस्तृत नियम बनाए हैं जो 1 मई, 2012 से प्रभाव में आ गए हैं। ई-कचरा (प्रबंधन एवं संचालन नियम) 2011 के अंतर्गत ई-कचरे के पुनर्चकण्रएवं निस्तारण के लिए विस्तृत निर्देश दिए गए हैं। हालांकि इन दिशा-निर्देशों का पालन किस सीमा तक किया जा रहा है यह कह पाना कठिन है। जानकारी के अभाव में ई-कचरे के शमन में लगे लोग कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। अकेले दिल्ली में ही एशिया का लगभग 85 प्रतिशत ई-कचरा शमन के लिए आता है, परंतु इसके निस्तारण के लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है। आवश्यक जानकारी एवं सुविधाओं के अभाव में ई-कचरे के निस्तारण में लगे लोग न केवल अपने स्वास्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि पर्यावरण को भी दूषित कर रहे हैं। ई-कचरे में कई जहरीले और खतरनाक रसायन तथा अन्य पदार्थ जैसे सीसा, कांसा, पारा, कैडमियम आदि शामिल होते हैं जो उचित शमन पण्राली के अभाव में पर्यावरण के लिए काफी खतरा पैदा करते हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने ई-कचरे के केवल 5 प्रतिशत का ही पुनर्चकण्रकर पाता है।ई-कचरे के प्रबंधन की जिम्मेदारी उत्पादक, उपभोक्ता एवं सरकार की सम्मिलित रूप से होनी चाहिए। उत्पादक की जिम्मेदारी है कि वह कम से कम हानिकारक पदार्थो का प्रयोग करें एवं ई-कचरे के प्रशमन का उचित प्रबंधन करें। उपभोक्ता की जिम्मेदारी है कि वह ई-कचरे को इधर-उधर न फेंक कर उसे पुनर्चकण्रके लिए उचित संस्था को दें, तथा सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ई-कचरे के प्रबंधन के ठोस और व्यावहारिक नियम बनाए और उनका पालन सुनिश्चित करे।

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