Saturday 25 April 2015

कानून और अधिकार : धारा 498 ए: दहेज प्रताड़ना के खिलाफ सहारा या हथियार (वंदना शाह )

इस धारा का मतलब है पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा किया गया अत्याचार। इस धारा में यदि कोई महिला शिकायत लिखाती है तो पति को तीन साल तक की जेल हो सकती है और दंड भी भरना पड़ सकता है। पहले तो यह समझें कि अत्याचार या बर्बरता की परिभाषा क्या है-
(1) जानबूझकर किया गया कोई ऐसा कार्य जो किसी महिला को आत्मघात करने पर मजबूर करे या फिर उसे गंभीर तरह से चोट पहुंचाई गई हो। ऐसी चोट जिससे उसके जीवन पर बन आए। भले ही वह शारीरिक हो या मानसिक।
(2) महिला को इस कदर प्रताड़ित करना कि वह अपने परिजनों के पास ससुराल पक्ष की मांग लेकर जाए। महिला से अपने मायके से कुछ लाने को कहा जाए।
यदि महिला को दहेज या किसी और कारण से परेशान किया जा रहा है तो वह शिकायत करने की हकदार है। ऐसे में उसके पति और ससुराल पक्ष के लोगों को जेल भेजा जा सकता है।
परंतु हाल ही के वर्षों में इस कानून का दुरुपयोग होने लगा है। कई बार महिलाओं ने अपने पति या उसके घरवालों को सबक सिखाने के लिए इस कानून का दुरुपयोग किया है। महिलाएं ससुराल पक्ष के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करा रही हैं।
मुंबई में कोलाबा का एक मामला है। पति किसी कंपनी में इवेंट मैनेजर था। घर आया तो एक बेडरूम के फ्लैट में उसकी 70 साल की मां को पुलिस घेरकर खड़ी थी। मां रो रही थी। बच्चे दिख नहीं रहे थे। मां ने कहा, तेरी पत्नी ने दहेज प्रताड़ना की शिकायत लिखाई है। पुलिस ड्यूटी कर रही थी। मां-बेटों को सप्ताहांत में कारावास में रखा गया। पत्नी ने पैसे के लिए यह सब किया। सम्मान से जीने वाला एक परिवार इस विचित्र कानून से तार-तार हो गया। हो सकता है कि उक्त महिला अपने पति पर तलाक के लिए दबाव डाल रही हो।
मेरा मानना है कि इससे मजबूत महिला वाली बात कहीं नहीं रह जाएगी और महिलाओं की बातों को गंभीरता से नहीं लिया जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है कि दहेज के मामलों में पुलिस एकदम गिरफ्तारी नहीं कर सकती। इससे इस कानून का दुरुपयोग रुकेगा। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सीके प्रसाद की अदालत ने कहा कि जब तक कानूनी रूप से दहेज मामले की जांच हो, गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। इस संबंध में सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया है कि वे पुलिस से इसकी तामील करने को कहे।
एक अन्य मामला परिवार अदालत का है। इसमें रमेश झवेरी नाम का एक ज्वैलर अदालत में जगुआर कार से आता था। उसके पहनावे और रहन-सहन से लगता था कि वह बेहद रईस है। उसकी पत्नी और उसमें जब मामला हल हुआ तो मात्र 7500 रु. प्रतिमाह गुजारा-भत्ता पत्नी को देने की बात कही गई। उस व्यक्ति ने यह साबित कर दिया कि उसके नाम पर कुछ भी नहीं है। यह सही है कि 498ए का दुरुपयोग होता है, लेकिन यदि पत्नी सीधी-सादी है तो तलाक के बाद वह फुटपाथ पर जीने को भी मजबूर हो सकती है।
ऐसे कई मामले हैं जो पत्नी और पति के बीच अदालत में चल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में रुचि अग्रवाल और अमित अग्रवाल (5 नवंबर 2004) का मामला, पंजाब-हरियाणा कोर्ट में सतवीर सिंह बनाम पंजाब राज्य का मामला (2 जुलाई 1997) का है। खराब बात यह है कि दहेज का डर इसके बाद भी बना रहता है। यह कहना पूरी तरह से गलत है कि दहेज को लेकर हत्याएं नहीं होती हैं, क्योंकि यह समाज में अभी भी व्याप्त हैं।
अभीभी ज्वलंत सवाल
हालही में एक मामला मेरे सामने आया, जिससे समझ में आया कि महिलाओं की स्थिति कितनी खराब है। 100 करोड़ की संपत्ति वाले एक व्यक्ति ने जाली दस्तावेजों के जरिए सारी संपत्ति अपने नाम करने के बाद पत्नी को घर से निकाल बाहर किया। ऐसे में महिला क्या करे?
सामाजिककानूनी पक्ष यह था
इसकानून का सामाजिक और वैधानिक पक्ष यह था कि इसे महिलाओं पर अत्याचार के खिलाफ लाया गया था। भावना यह थी कि इस कानून के जरिए दहेज लेन-देन की रवायत पर रोक लग सकेगी। इससे शादियां टूटने से बच सकेंगी और लड़की के घर वालों को ससुराल वालों की मांग पूरी करने के लिए कर्ज नहीं लेना पड़ेगा, ही बेटियों को कोख में खत्म करने की जरूरत होगी, लेकिन इस भावना के मकसद को लेकर यह कानून सफल नहं माना जाएगा।
शानो-शौकत से की जाने वाली शादियां और उसके खर्च में यह दिखता है। इस तरह से किसी किसी तौर पर लेन-देन हो ही जाता है। समाज में दहेज के नए तरीके नई बोतल में पुरानी शराब की तरह है। फिर भी कुछ हद तक सफलता मिली है। अब दुल्हनों को इस कानून की जानकारी है। यहां तक कि कई लड़कियों ने विवाह वेदियों पर इसकी मांग किए जाने पर जोरदार विरोध किया है। दहेज की अवधारणा को सामाजिक स्तर पर ही खत्म करने की जरूरत है। यह कानून इसी के लिए है कि जो महिलाएं इससे प्रताड़ित होकर जान तक देने को बाध्य हो जाती हैं, उनको इसका सहारा लेना चाहिए।
इसकी शुरुआत तो उन उपहारों को नकारने से ही हो जाना चाहिए जो लिए-दिए जाते हैं। यदि लड़की के पक्ष और लड़के के पक्ष में समानता ही रखना है तो शादी के खर्च को भी दोनों को बराबर बांट लेना चाहिए। यह सही है कि इस कानून को लेकर कुछ लोग दिग्भ्रमित कर इसका दुरुपयोग करते हैं, लेकिन वास्तव में यह बेसहारा, बेघर महिलाओं के लिए संबल है। जो महिलाएं इसका दुरुपयोग कर रही हैं, उनकी संख्या काफी कम है। इसे लेकर हो-हल्ला मचा हुआ है।
इन दिनों दहेज प्रताड़ना के खिलाफ कानून की धारा 498ए को लेकर बहस जारी है कि इसका महिलाएं दुरुपयोग कर रही हैं। इस धारा के दोनों ही पक्ष हैं। यह कुछ महिलाओं के लिए वरदान से कम नहीं है, क्योंकि दहेज के लिए होने वाली हत्याओं के कटु सत्य को नकारा नहीं जा सकता है। दहेज पीड़ितों के लिए यह सहारा है। वहीं, दूसरी तरफ गलत मंशा से इसका प्रयोग करने वाली महिलाओं के लिए यह एक हथियार की तरह है। वह इसके जरिए अपने गलत इरादों को अंजाम तक पहुंचाती है।

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