Thursday 30 April 2015

गरीबी बढ़ाने का बैंक (डॉ. भरत झुनझुनवाला)

विश्व बैंक के गवर्नर बोर्ड को संबोधित करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि भारत जैसे विकासशील देशों को विश्व बैंक द्वारा अधिक मात्र में ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए। बैंक से ऋण लेकर हम हाईवे इत्यादि बनाएंगे जिससे आर्थिक विकास को गति मिलेगी और गरीबी दूर होगी, लेकिन सत्यता इससे परे है। वास्तव में विश्व बैंक के कार्यकलापों से गरीबी बढ़ती है और आम आदमी त्रस्त होता है। ट्रुथ आउट वेबसाइट पर बताया गया है कि विश्व बैंक ने ग्वाटेमाला में चिक्साय जलविद्युत परियोजना के लिए भारी मात्र में ऋण दिए। वेबसाइट के अनुसार उस समय ग्वाटेमाला पर ‘क्रूर सैन्य शासन’ काबिज था। परियोजना को लागू करने में 440 आदिवासी माया लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इसी प्रकार विश्व बैंक की सहयोगी संस्था इंटरनेशनल फाइनेंस कारपोरेशन ने होंडुरास में पॉम आयल का उत्पादन करने वाली कंपनी डिनांट को लोन दिया। लोन देने के पहले होंडुरास में लोकतांत्रिक सरकार थी। इस सरकार का तख्ता पलट करके सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली। तख्ता पलट के मात्र पांच माह बाद विश्व बैंक ने यह लोन दिया। सैन्य सरकार को सजा देने के स्थान पर विश्व बैंक ने उन्हें पुरस्कार दिया। मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्यरत संगठनों के अनुसार जिस क्षेत्र में कंपनी कार्यरत थी वहां किसानों के आंदोलनों से जुड़े 102 लोगों की हत्या कर दी गई। इनमें से कई हत्याओं को कंपनी के सिक्योरिटी स्टॉफ द्वारा अंजाम दिया गया बताया जाता है।
अपने देश में परिस्थिति भिन्न नहीं है। विश्व बैंक ने उत्तराखंड में विष्णुगाड-पीपलकोटी जलविद्युत परियोजना को लोन दिया है। अन्य स्थानीय लोगों के साथ मैंने बैंक के सामने शिकायत दर्ज की कि इस परियोजना के कारण गरीबी बढ़ेगी। परियोजना द्वारा टनल बनाने के लिए विस्फोटकों का भारी मात्र में उपयोग करने से गरीब लोगों के मकानों में दरारें पड़ गई हैं। भूस्खलन हो रहे हैं जिससे जान-माल की हानि हो रही है। डैम के बनने से मछलियां अपने प्रजनन क्षेत्र तक नहीं पहुंच पाएंगी और गरीब लोग मछली से होने वाली आय से वंचित हो जाएंगे। डैम बनने से बालू डैम के पीछे जमा हो जाएगी और स्थानीय लोगों को मकान बनाने के लिए मैदानी क्षेत्रों से महंगी बालू लानी होगी। बद्रीनाथ जाने वाले तीर्थ यात्री नदी के मुक्त बहाव से मिलने वाले सुख से वंचित हो जाएंगे। ये सभी दुष्प्रभाव गरीबों पर पड़ेंगे। लेकिन परियोजना द्वारा उत्पादित बिजली देहरादून तथा दिल्ली के अमीरों के विकास के लिए सप्लाई की जाएगी। हमने कहा कि परियोजना के प्रभाव का गरीब तथा अमीर पर पड़ने वाले प्रभाव का अलग-अलग आकलन कराया जाए जिससे साफ हो जाए कि परियोजना किसके हित में है और किसके अहित में। निराशाजनक है कि विश्व बैंक ने ऐसा अध्ययन करने से इन्कार कर दिया।
पीपलकोटी परियोजना में लोगों के मानवाधिकारों का भी खुलकर हनन हो रहा है। हाट गांव के कुछ बाशिंदों ने परियोजना को अपनी जमीन देने से इन्कार कर दिया। इन्होंने आपत्ति उठाई कि परियोजना द्वारा पास की अधिग्रहीत जमीन पर विस्फोट तथा खनन करने से पशु परेशान हैं, धूल से खेती खराब हो रही है तथा जल स्नोत सूख रहे हैं। लोगों ने परियोजना के कार्य को रोकना चाहा। विश्व बैंक ने कंपनी को कह रखा था कि हाट गांव के बाशिंदों से वार्ता करके मसले को सुलझा लें, परंतु कंपनी ने कचहरी तथा पुलिस का सहारा लेकर स्थानीय लोगों की आवाज को दबा दिया। लोगों ने बैंक को पुन: शिकायत की, परंतु बैंक ने लोगों की अनदेखी कर दी जिससे साबित होता है कि स्थानीय लोगों के दमन को बैंक की सहमति थी।
विश्व बैंक की मूल विचारधारा अमीरियत को बढ़ाने की है। बैंक का मानना है कि अमीर बढ़ेंगे तो गरीबों को मिलने वाला रिसाव भी बढ़ेगा जैसे अमीर के घर मक्खन ज्यादा निकाला जाए तो गरीब को कुछ छाछ मिल ही जाती है। बैंक का मानना है कि पीपलकोटी जैसी परियोजनाओं से जितनी गरीबी बढ़ेगी उससे ज्यादा लाभ अमीरों द्वारा बांटी गई छाछ से होगा। जैसे किसान के घर, मछली, गायें, जंगल और बालू नष्ट हो जाएं, परंतु उसे मनेरगा से 100 दिन का रोजगार मिल जाए तो बैंक अति प्रसन्न होगा, क्योंकि मनेरगा से ‘अति गरीबी’ नियंत्रण में आएगी। बैंक को इस बात से कुछ लेना-देना नहीं है कि समृद्ध किसान गरीब हो जाएंगे। ध्यान दें कि बैंक के अध्यक्ष जिम यांग किम ने 2030 तक विश्व में ‘अति गरीबी’ के उन्मूलन का लक्ष्य रखा है। उन्होंने गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य नहीं रखा है, क्योंकि वह जानते हैं कि बैंक के कार्यकलापों से गरीबी तो बढ़ेगी ही। बैंक के लिए अपेक्षाकृत समृद्ध लोगों को गरीब बनाना एक सार्थक प्रक्रिया है, क्योंकि उनके गरीब बनने से बड़ी कंपनियों को भारी लाभ होता है और इनसे टैक्स वसूल करके अति गरीबी को दूर किया जा सकता है। बैंक की नीति है कि कक्षा दो में पढ़ने वाले बच्चे को भी कक्षा एक में भर्ती करा दो जिससे गांव के सभी बच्चों को कक्षा एक में भर्ती किया जा सके।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि विश्व बैंक को ‘ईमानदार ब्रोकर, संयोजक तथा सलाहकार’ की भूमिका निर्वाह करनी चाहिए। ऐसा करना बहुत ही घातक होगा। बैंक के हाथ में कमान देने का अर्थ होगा कि किसान मरेगा और मनरेगा बढ़ेगा। व्यक्ति को डॉक्टर परख कर चयनित करना चाहिए। जिस डॉक्टर के नुस्खे के नाम पर गरीबी बढ़ाने तथा मानवाधिकारों के हनन का वैश्विक रिकार्ड हो ऐसे डॉक्टर की क्या सार्थकता है?
ब्लूमबर्ग की रपट के अनुसार वर्तमान में प्रति वर्ष 100 हजार करोड़ रुपये का औद्योगिक देशों से विकासशील देशों की ओर बहाव हो रहा है। इसमें पूंजी निवेश तथा दान में दी गई रकम शामिल है। इसकी तुलना में विश्व बैंक द्वारा वर्ष 2013 में दिए गए नए लोन मात्र 35 करोड़ रुपये थे जो कि निजी पूंजी के बहाव के सामने ऊंट के मुंह में जीरा के समान थे। वित्तमंत्री ने अपने संबोधन में भी स्वीकार किया कि निजी पूंजी निवेश तथा प्रवासियों द्वारा भेजे गए रेमिटेंस के सामने विश्व बैंक जैसी संस्थाओं द्वारा दिया गया ऋण बहुत कम है। हम इस छोटी रकम को हासिल करने के प्रयास में अपनी आर्थिक नीतियों को अनायास ही गरीब विरोधी बना रहे है। इंदिरा गांधी ने फोर्ड फाउंडेशन को देश से बाहर कर दिया था। समय आ गया है कि विश्व बैंक को देश से बाहर कर दिया जाए जिससे देश की जनता को कुछ सुकून मिले।(DJ)
(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

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