Thursday 30 April 2015

दोनों हाथों से लपकने होंगे आर्थिक मौके (जयंतीलाल भंडारी)

हाल में जर्मनी स्थित नियंत्रण सलाहकार व शोध कंपनी डेल्फी ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने और निर्यात के मौकों को मुट्ठी में करने की दृष्टि से भारत बेहद अनुकूल स्थिति में है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी और चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी की हालत में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विकास की नई प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। इसी तरह आईएमएफ की प्रमुख क्रिस्टीना लेगार्ड का कहना है कि विश्व अर्थव्यवस्था में इस समय फैली नरमी की धुंध के बीच भारत रोशनी की किरण है। कई देश जहां निम्न विकास दर से जूझ रहे हैं, वहीं भारत की विकास दर चालू वित्त वर्ष में 7.5 फीसद के स्तर को छू सकती है। यह भी कहा गया है कि इस साल भारत की वृद्धि दर चीन से आगे निकल सकती है और 2019 तक भारतीय अर्थव्यवस्था 2009 की तुलना में दोगुनी हो सकती है। एक बात जो इस दौर में भारत को आकर्षक बनाए हुए है वह है उभरते बाजारों में बड़े निवेश योग्य विकल्पों की कमी के बीच भारत की अधिक आर्थिक अनुकूलता। आईएमएफ और विश्व बैंक की वाशिंगटन में इसी माह आयोजित मीटिंग में शिरकत करते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने नई सरकार की नीतियों के कारोबारियों के अनुकूल होने की बात मजबूती से कही। उससे विदेशी निवेशकों में भारत के प्रति विास बढ़ने की संभावना बढ़ी है। नए आंकड़े बता रहे हैं कि देश में एफडीआई का प्रवाह जनवरी 2015 में जनवरी 2014 की तुलना में दोगुना होकर 4.48 अरब डॉलर रहा। यह पिछले 29 माह का सबसे अधिक आंकड़ा है। अब निर्यात के मौकों का लाभ उठाने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2015-20 के लिए बहुप्रतीक्षित विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) की घोषणा की गई है। इस नीति के तहत 2020 तक नियंतण्र निर्यात में भारत का हिस्सा दो फीसद से बढ़ाकर 3.5 फीसद पर पहुंचाने तथा वर्ष 2019-20 में देश का निर्यात करीब 900 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है। निर्यात में हर साल 14 फीसद बढ़त हासिल करने की कोशिश की जाएगी। यद्यपि नई विदेश व्यापार नीति के तहत भारत से वस्तु और सेवा निर्यात बढ़ाने की योजनाओं के साथ-साथ निर्यात वृद्धि के लिए कई सौगातें दी गई हैं, लेकिन निर्यात के ऊंचे लक्ष्यों को पाने के लिए उन चुनौतियों का जोरदार सामना करना होगा जो इस समय निर्यात परिदृश्य पर खड़ी हुई हैं। वाणिज्य मंत्रालय के नए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014-15 में निर्यात करीब 310 अरब डॉलर रहा है, जबकि निर्यात का लक्ष्य 340 अरब डॉलर निर्धारित किया गया था। यह निर्यात वित्तीय वर्ष 2013-14 में किए गए 312 अरब डॉलर के निर्यात मूल्य से भी कम है। नई विदेश व्यापार नीति के समक्ष विश्व बाजार में जिंसों के घटे हुए भावों की बड़ी चुनौती है। पेट्रोलियम उत्पाद और कृषि जिंसों के निर्यात में भारी गिरावट आई है। देश के लिए निर्यात के मोर्चे पर एक बड़ी चुनौती यह है कि मौजूदा डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत निर्यात सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से खत्म करना है। निर्यात प्रोत्साहन मानदंडों को सब्सिडी पर निर्भरता कम कर ज्यादा व्यवस्थित बनाने की प्रतिबद्धता सरकार के सामने है। निसंदेह निर्यात के मोर्चे पर चीन की चुनौती सामने खड़ी है। यद्यपि कुछ विदेश व्यापार विशेषज्ञ यह मान रहे थे कि विकास दर घटने, मंदी और बढ़ी हुई श्रम लागत के कारण वर्ष 2014-15 में चीन के निर्यात मूल्य में कमी आएगी और उसका लाभ भारत को निर्यात बढ़ाने में मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चीन का निर्यात वर्ष 2013-14 में 2340 अरब डॉलर था। यह अनुमानित है कि 2014-15 में चीन का निर्यात तेजी से नहीं बढ़ा, लेकिन पिछले वर्ष की तुलना में कुछ अधिक ही हुआ है। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि न तो ‘‘मेक इन इंडिया’ का नारा सुनकर दुनियाभर की कंपनियां विनिर्माण के गढ़ के तौर पर चीन के बजाय भारत को प्राथमिकता देने जा रही हैं और न ही नई विदेश व्यापार नीति के कारगर क्रियान्वयन के बिना भारतीय निर्यात तेजी से बढ़ने जा रहा है। निश्चित रूप से नई विदेश व्यापार नीति के तहत देश से निर्यात बढ़ाने और ‘‘मेक इन इंडिया’ के नारे को साकार करने के लिए अब नए सार्थक प्रयास जरूरी हैं। खासकर यूरोपीय देशों में धीमी पड़ती आर्थिक गतिविधियों के बीच भी भारत के लिए निर्यात के अवसर बनाने होंगे। नई विदेश व्यापार नीति के तहत प्रस्तुत एमईआईएस तथा एसईआईएस के चमकीले बिंदुओं के तहत कारगर प्रयास करने होंगे। व्यापारिक रूप से संगठित क्षेत्रों के विभिन्न समूहों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) और उनसे संबंधित नई रणनीति बनाकर निर्यात में वृद्धि करनी होगी। चीन सहित प्रतिस्पर्धी देशों से निर्यात मुकाबले के लिए बनाई गई रणनीति को कारगर बनाने के लिए, खासकर नई नीति के तहत ट्रांजेक्शन लागत को कम करने के लिए निर्धारित किए गए 21 विभागों में ऐसा उपयुक्त समन्वय जरूरी होगा जिससे निर्यात संबंधी प्रक्रिया सरल बन जाए। यह भी जरूरी होगा कि देश के निर्यातकों को चीन की तरह आधारढांचा संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। निर्यात लक्ष्य पाने के लिए आंतरिक मोर्चे पर भी कई तरह के काम करने होंगे। देश में कारोबार के अनुकूल माहौल बनाना होगा। नौकरशाही के कामकाज की संस्कृति में बदलाव करना होगा। सरकार के द्वारा सेज का सही ढांचा विकसित करना होगा। विदेश व्यापार बढ़ाने के लिए बेहतर प्रॉडक्ट क्वालिटी पर फोकस करना होगा ताकि हमारे उत्पाद नियंतण्र मापदंडों पर खरे उतर पाएं। देश में विनिर्माण बहुत पिछड़ा हुआ है। भारत की जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 15 फीसद है, जबकि चीन में यह 30 फीसद है। देश में विनिर्माण क्षेत्र की सालाना वृद्धि दर जो वर्ष 2000 से 2010 के बीच करीब 10 फीसद थी, अब नकारात्मक हो गई है। हमें देश के आर्थिक मौके बढ़ाने वाले कई महत्वपूर्ण आधारों का पूरा लाभ उठाना होगा। अमेरिका में आई तेजी का लाभ उठाकर भारत वहां अपना निर्यात बढ़ा सकता है। अप्रत्यक्ष करों से संबंधित जीएसटी एक अप्रैल 2016 से लागू किया जाना पूर्णतया संभावित है। इससे भारतीय निर्यातकों को लाभ होगा। जिस तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बहुत घट गए हैं, उसका लाभ निर्यात बढ़ाने में लिया जाना चाहिए। आर्थिक एवं श्रम सुधारों की डगर पर आगे बढ़ने का लाभ भी लिया जाना चाहिए। भारत ने हाल में बीमा क्षेत्र में 49 फीसद एफडीआई को मंजूरी दी है। साथ ही सरकार ने नए बजट 2015-16 के तहत कारपोरेट कर को चीन की तरह कम कर 30 से 25 फीसद पर लाए जाने हेतु कदम उठाए हैं। इससे भारतीय निर्यातकों को लाभ होगा। नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे भारत के लिए विदेशी निवेश व निर्यात बढ़ाने के वर्तमान सकारात्मक अवसर को हाथ से न जाने दें। जरूरी है कि देश में जो आर्थिक उत्साह पैदा हुआ है उसके आधार पर सरकारी नीतियों में ढांचागत परिवर्तन की दिशा में तेजी से कदम उठाए जाएं। भारत को जबरदस्त प्रतिस्पर्धी देश बनाया जाना और श्रम व मौद्रिक नीति में सुधार के साथ-साथ नौकरशाही और राजकोषीय अनुशासन में सुधार पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।(RS)

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