Monday 20 April 2015

किसके कब्जे में रहे इंटरनेट

इंटरनेट की आजादी का अर्थ सिर्फ यह नहीं है कि लोगों को उस पर कुछ कहने-सुनने की स्वतंत्रता हासिल हो, बल्कि यह भी है कि उसे अपने फायदे के लिए नियंत्रित करने का अधिकार किसी कंपनी या किसी बड़े देश के पास न हो। इस नजरिये से देखें, तो आज दुनिया में हर इंटरनेट-साक्षर व्यक्ति (नेटीजन) के पास अपना ईमेल, फेसबुक और ट्विटर अकाउंट है। लोग यह दावा भी कर सकते हैं कि इंटरनेट से जुड़े उनके अकाउंट नितांत व्यक्तिगत और गोपनीय हैं। लेकिन अमेरिकी व्हिसल क्लोअर एडवर्ड स्नोडेन साफ कर चुके हैं कि पूरी दुनिया के इंटरनेट पर ज्यादातर नियंत्रण अमेरिका के हाथों में है। इंटरनेट पर अमेरिकी कक्जे के बारे में भारत समेत कई देश चिंता प्रकट कर चुके हैं। पिछले साल रूस के राष्ट्रपित व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि इंटरनेट को अमेरिकी खुफिया एजेंसी- सीआइए ने विकसित किया था। लिहाजा इस पर अमेरिकी नियंत्रण अब भी कायम है। मामला सिर्फ इंटरनेट पर कक्जे का नहीं है, बल्कि पुतिन के शक्दों में कहें तो अमेरिका इसके जरिये पूरी दुनिया से ‘सूचना के टकराव’ में संलिप्त है। यानी वह इंटरनेट पर अपने प्रभुत्व के बल पर वे सारी खुफिया सूचनाएं जमा कर लेता है, जिनका उपयोग वह किसी भी देश के खिलाफ अपने हितों के पक्ष में कर सकता है। इस तरह सूचना पर एकाधिकार का यह मामला वैश्विक असंतुलन की स्थिति पैदा कर रहा है जिससे अमेरिका को छोड़ बाकी दुनिया का चिंतित होना स्वाभाविक है। इसी चिंता के संदर्भ में पिछले साल ब्राजील की राजधानी साओ पाउलो में इंटरनेट प्रशासन पर दुनिया के हिस्सेदारों की एक बैठक आयोजित की गई थी जिसमें इंटरनेट को अमेरिकी नियंत्रण से मुक्त कराने के बारे में विचार-विमर्श किया गया था। ब्राजील ने अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) के विशेषाों द्वारा इंटरनेट के जरिये सूचना की सेंधमारी का विरोध किया था और इंटरनेट पर अंतरराष्ट्रीय प्रशासन स्थापित करने की मांग की थी। ब्राजील सम्मेलन को भारत के अलावा चीन, रूस, दक्षिण अफ्रीका और ईरान ने महत्वपूर्ण माना था और इसके जरिये अपने प्रस्ताव भेजकर यह अपील की कि इंटरनेट पर वैश्विक बिरादरी का मालिकाना हक कायम हो और इसका संचालन-प्रशासन कई देशों की ओर से सामूहिक तौर पर चलाया जाए, न कि उस पर सिर्फ अमेरिका का आधिपत्य हो। इसके लिए भारत इंटरनेट को इक्विनेट बनाने की पेशकश कर चुका है। इंटरनेट को इक्विनेट कहने से आशय यह है कि इंटरनेट पर सभी देशों की समान हिस्सेदारी हो और उसमें सभी मुल्कों को बराबरी से अपनी आवाज रखने का अधिकार मिले। हकीकत यह है कि ताकतवर और तकनीकी रूप से ज्यादा सक्षम अमेरिका जैसे देशों ने इस खुलेपन और इंटरनेट की आजादी का फायदा अपने राष्ट्रीय हितों में उठाया है और वे हमारी सूचनाओं और जानकारियों का जमकर दोहन कर रहे हैं जो उनके सर्वरों में जमा हैं। जीमेल, फेसबुक, ट्विटर जैसी ज्यादातर इंटरनेट सेवाओं को संचालित करने वाले सर्वर अमेरिका में स्थित हैं। इसका आशय यह हुआ कि इनके जरिये हम जो भी खतो-खिताबत करते हैं, उसका एक-एक अक्षर देश से बाहर मौजूद इन्हीं सर्वरों से होकर गुजरता है। अब जबकि बात इतनी आगे बढ़ चुकी है, तो प्रश्न उठ रहा है कि क्या इंटरनेट की ऐसी आजादी मुमकिन है जिसमें अमेरिका जैसे ताकतवर मुल्कों का दखल मुमिकन न हो। यदि इंटरनेट को अमेरिकी नियंत्रण से मुक्त कराना है, तो कुछ वैसे उपाय करने होंगे, जैसे रूस और चीन ने किए हैं। पिछले साल रूसी संसद ने एक ऐसा कानून पारित किया जिसके तहत सोशल मीडिया वेबसाइट्स के संचालकों को न केवल अपने सर्वर रूस में लगाने होंगे, बल्कि यूजर्स की जानकारियों को छह महीने तक सुरक्षित रखना होगा। इस कानून में ऐसे प्रावधान भी किए गए जिनके तहत सरकार किसी अदालती आदेश के बिना किसी भी वेबसाइट को काली सूची में डाल सकती है, क्लॉग हटा सकती है। सूचनाओं की लीकेज रोकने और इंटरनेट के जरिए दूसरे देशों से संचालित होने वाली आपराधिक गतिविधियों की जिम्मेदारी तय करने की व्यवस्था की जो मांग भारत सहित तमाम अन्य देश कर रहे हैं, वे बहुत जरूरी हैं। साइबरस्पेस एक आजाद और सुरक्षित तंत्र होना चाहिए, यह मौजूदा वक्त की एक जरूरी मांग है ताकि दुनिया के सभी देश भरोसे के साथ इंटरनेट की सेवाओं का लाभ उठा सकें। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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