Thursday 30 April 2015

आपदा का मुकाबला (प्रो. संतोष कुमार )

लगभग आधे भारत के साथ-साथ हिमालयी राष्ट्र नेपाल और उसके आसपास के देशों में आए भूकंप ने पूरे क्षेत्र को हिला कर रख दिया है। इस क्षेत्र में भूकंप की घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं, लेकिन इस बार भूकंप रिक्टर स्केल पर 7.9 प्रतिशत की तीव्रता लेकर आएगा, इसकी किसी ने शायद ही कल्पना की हो। यह एक बड़े खतरे का संकेत भी है। नेपाल में भूकंप ने बड़ी तबाही के निशान छोड़े हैं। भारत ने जिस तत्परता से नेपाल के लिए मदद का हाथ आगे बढ़ाया और आनन-फानन राहत एवं बचाव कार्यो की शुरुआत कर दी वह उल्लेखनीय भी है और आपदाओं से निपटने में भारत की बेहतर होती तैयारी का एक और प्रमाण भी। पूरे हिमालयी क्षेत्र में भूकंपों का यदि इतिहास देखें तो छोटी तीव्रता के 200-250 और सात अथवा उससे अधिक तीव्रता के पांच-छह बड़े भूकंप आ चुके हैं। इस तरह से आने वाले भूकंपों का चक्र बताता है कि पचास, सौ और डेढ़ सौ वर्ष के अंतराल में बड़े भूकंपों का दोहराव होता रहता है। इस आधार पर देखा जाए तो हिमालयी क्षेत्र में और अधिक बड़े भूकंप के आने की आशंका अभी भी बनी हुई है, लेकिन यह कब आएगा, कोई नहीं जानता और न ही हमारे पास अभी तक कोई ऐसी तकनीक विकसित हो सकी है जिससे भूकंपों का पूर्व आकलन किया जा सके अथवा उसकी भविष्यवाणी की जा सके। इसके लिए अभी भी हम जानवरों की हरकत, सांपों की गतिविधि, चिड़ियों के व्यवहार, मौसम में बदलाव और अनुमानों पर निर्भर हैं।
इस संदर्भ में एक अच्छी बात यह हुई है कि पूरे विश्व के कुल 184 देशों ने मार्च के महीने में जापान में एक बैठक की और भूकंप समेत आने वाली किसी भी आपदा के लिए मिलजुलकर काम करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई। इस बैठक में यह बात उभरकर सामने आई कि दक्षिण एशिया क्षेत्र में कभी भी कोई बड़ी आपदा आ सकती है। ऐसी किसी स्थिति में जान-माल की संभावना कम से कम हो और स्थितियों से प्रभावी रूप से निपटा जा सके, इसके लिए सभी देशों ने मिलजुलकर काम करने और सहयोग करने की बात कही है। यह अच्छा संकेत है, क्योंकि अभी तक वैश्विक स्तर पर आपदाओं को लेकर अभी तक ऐसे किसी सहयोग और संगठन का अभाव था। इस अभाव को दूर करने की जरूरत एक लंबे अर्से से महसूस की जा रही थी।
यदि हम नेपाल के भूकंप के संदर्भ में विचार करें तो वहां पहले आए भूकंप का केंद्र जहां राजधानी काठमांडू की उत्तर-पश्चिम दिशा में लामजुंग में रहा वहीं इसके अगले दिन आए भूकंप का केंद्र काठमांडू से 80 किमी पूर्व कोदारी में रहा। बाद में आने वाले भूकंप की तीव्रता प्राय: कम होती है, जिसे आफ्टर शॉक कहा जाता है, लेकिन कोदारी में आए भूकंप की तीव्रता 6.9 आंकी गई, जो अप्रत्याशित ही कही जाएगी। हालिया भूकंप से भले ही बड़ी तबाही नेपाल में हुई, लेकिन इसके झटके भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, चीन आदि अन्य दक्षिण एशियाई देशों में भी महसूस किए गए। भारत में बिहार और उत्तर प्रदेश अधिक प्रभावित हुए और कई लोगों के मरने की खबरें हैं। इस त्रसदी से हुए नुकसान का सही-सही आकलन अभी तक नहीं हो सका है।
भारत ने जिस तत्परता से नेपाल के लिए मदद का हाथ आगे बढ़ाया और आनन-फानन राहत एवं बचाव कार्यो की शुरुआत कर दी वह उल्लेखनीय भी है और आपदाओं से निपटने में भारत की बेहतर होती तैयारी का एक और प्रमाण भी। आपदा की स्थितियों से निपटने में भारत दिन-प्रतिदिन बेहतर हो रहा है। इसे हम हुदहुद, केदारनाथ, कश्मीर की बाढ़ जैसी आपदाओं के समय देख भी चुके हैं। आपदा से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा कार्रवाई बल) और राज्य के स्तर पर एसडीआरएफ के गठन ने बहुत ही अच्छे नतीजे दिए हैं। केंद्र और राज्य सरकारें आपदा की किसी भी स्थिति में मिलजुलकर कार्य करती हैं, लेकिन कुछ राज्यों ने अभी तक एसडीआरएफ का गठन नहीं किया है। वर्तमान संकट को देखते यह अपेक्षित है कि सभी राज्य सरकारें केंद्र के साथ मिलजुलकर बचाव और राहत के कार्य में शामिल हों। ओडिशा में आए तूफान से जिस तरह निपटा गया, उसकी सराहना पूरी दुनिया में हुई। ध्यान देने योग्य है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने इसके लिए भले ही पर्याप्त राशि मुहैया कराई है, लेकिन इसमें और अधिक बढ़ोतरी की जरूरत है ताकि प्रभावित लोगों को बचाव और राहत कार्य के बाद एक निर्धारित समयसीमा में पुनर्वास उपलब्ध कराया जा सके। आपदा की प्रक्रिया कभी खत्म नहीं होती इसलिए इससे निपटने के लिए हमें सदैव तत्पर रहना होगा, क्योंकि कभी भी और कहीं भी कोई आपदा हमारा इम्तिहान ले सकती है।
भारत में सघन आबादी वाले कई क्षेत्र, दिल्ली आदि ऐसे हैं जहां यदि कभी इतनी अधिक तीव्रता वाला भूकंप आए तो स्थिति को संभालना काफी मुश्किल होगा, क्योंकि यहां पहले से बनी तमाम इमारतें जहां जर्जर और कमजोर स्थिति में हैं वहीं नई इमारतों को बनाते समय इसमें पर्याप्त भूकंपरोधी मानकों का अनुपालन शायद ही किया जाता है। इसके लिए हमें पुराने भवनों का सर्वे करना होगा और यह जानना होगा कि उनमें कितने रहने योग्य हैं। आपदा के समय चलाए जाने वाले राहत कार्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि हम पहले से ही अपनी तैयारी मजबूत रखें। ऐसा करने से बड़े पैमाने पर लोगों के जीवन की रक्षा की जा सकेगी। हमें अपनी तैयारी को दीर्घकालिक और तात्कालिक रूप से विभाजित करके देखना होगा। फिलहाल संकट से निपटने के लिए एक अधिक व्यापक रणनीति तैयार की गई है जिसमें सार्क देशों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर और स्थानीय स्तर पर आपदा से निपटने की योजना है। आगामी 15 वर्षो तक इसी पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
भूकंप से संबंधित शोध के मुताबिक बड़े भूकंपों के आने का 50 साल का चक्र पूरा हो रहा है, इसलिए अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में हमें विशेष सतर्कता और तैयारी रखनी होगी। इसके लिए हमें भूकंप के बाद के प्रभावों से अधिक असरकारक तरीके से निपटना होगा, जैसा कि 2001 के बाद गुजरात में हुआ। इसके लिए सड़कों, भवनों, बुनियादी सुविधाओं आदि पर विशेष ध्यान देना होगा। प्राकृतिक और मानवीय गतिविधियों के कारण हिमालयी क्षेत्र में भूकंप की संभावना बनी हुई है। धरती के अंदर कुछ ऐसे बदलाव हो रहे हैं जो भूकंप सरीखी त्रसदी को जन्म देते हैं। हमें इन प्रभावों को समझना होगा और उनके अनुरूप अपनी तैयारी करनी होगी। फिलहाल हमारे सामने नेपाल और भूकंप प्रभावित अपने क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्य को सही तरह पूरा करने की चुनौती है। भारत ने पिछले कुछ वर्षो में अपने आपदा प्रबंधन का कौशल दुनिया को दिखाया है। यह सिलसिला आगे भी इसी तरह जारी रहना चाहिए। एक देश की ताकत की पहचान इससे भी होती है कि वह आपदाओं का सामना किस तरह करता है।
(लेखक सार्क आपदा प्रबंधन केंद्र के निदेशक हैं)

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