Saturday 11 June 2016

चीन की जकड़ में पाकिस्तान (ब्रह्मा चेलानी )

जबसे चीन शक्तिशाली हो गया है तबसे वह न सिर्फ पक्षपाती हो गया है, बल्कि एक मित्रहीन देश की तरह पेश आने लगा है। हाल ही में जब उसने अपने पूर्व सहयोगी उत्तर कोरिया के खिलाफ नए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को अनुमति देने के लिए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका का साथ दिया तो इस संदेह को पुन: बल मिला कि उसका पाकिस्तान ही एकमात्र सहयोगी है। भारत के प्रति चीन और पाकिस्तान की साझा दुश्मनी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में सबसे करीबी और स्थायी संबंधों में से एक है। हालांकि इस संबंध ने पाकिस्तान को चीन का उपभोक्ता और बलि का बकरा बना दिया है। वास्तव में पाकिस्तान के जिहादी चेहरे ने चीन को यह अवसर मुहैया कराया है कि वह वहां अपनी रणनीतिक घुसपैठ में वृद्धि कर सके। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अपने हजारों सैनिकों को तैनात करने के बाद बीजिंग अरब सागर और हंिदू महासागर तक सीधी पहुंच बनाने के लिए पाकिस्तान को एक स्थल कोरिडोर के रूप में बदलने में लगा है। 1बीजिंग पाकिस्तान को अपने हर सुख-दुख का साथी बताता है। लंबे समय से वे अपने संबंधों को पर्वतों से भी ऊंचा, महासागरों से भी गहरा, स्टील से भी मजबूत और शहद से भी मीठा जैसे लच्छेदार शब्दों के जरिये व्यक्त करते रहे हैं। चीन और पाकिस्तान में बहुत कम समानता है, सिवाय इसके कि दोनों संशोधनवादी देश हैं और अपनी मौजूदा सीमाओं के साथ संतुष्ट नहीं हैं। पाकिस्तान जहां विदेशी खैरात पर निर्भर है वहीं चीन का विदेशी मुद्रा कोष लबालब भरा हुआ है। अभी तक दोनों की साठगांठ उनके इसी सिद्धांत पर टिकी है कि मेरे दुश्मन का दुश्मन मेरा प्रिय दोस्त है। दरअसल पाकिस्तान चीन का एक सहयोगी होने से अधिक एक ग्राहक अथवा उपभोक्ता देश है। हाल ही में जारी हुई पेंटागन रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान, जो कि चीन के परंपरागत हथियारों का प्रमुख उपभोक्ता है, अपने यहां चीनी नौसेना का एक केंद्र तैयार करना चाहता है, ताकि वह हंिदू महासागर क्षेत्र में अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सके। यह चीन ही था जिसने अमेरिकी प्रतिबंध या भारतीय संबंधों की परवाह किए बगैर पाकिस्तान को परमाणु हथियारों का जखीरा तैयार करने में मदद की थी। इसके अलावा वह पाकिस्तान को गुप्त तरीके से परमाणु बम बनाने और मिसाइल तैयार करने में सहयोग दे रहा है। 1चीन ने भी परिस्थितियों का लाभ पाक को अपने पुराने परमाणु रिएक्टरों और चीनी सैनिकों द्वारा छांट दी गई प्रोटोटाइप हथियार प्रणालियों को बेचने के लिए उठाया है। चीन कराची के समीप दो एसी-1000 रिएक्टरों का निर्माण कर रहा है, जिनका मॉडल फ्रेंच डिजाइन के अनुकूल है, लेकिन चीन ने अपने यहां अभी इस मॉडल को लागू नहीं किया है। विशेषज्ञों ने आशंका व्यक्त की है कि बड़े पैमाने पर चीन की सामरिक परियोजनाएं पाक को चीन के नवीनतम उपनिवेश में बदल रही हैं। इन परियोजनाओं का विस्तार 46 अरब डॉलर की लागत वाले चीन-पाक आर्थिक कोरिडोर से लेकर चीनी हाईवे, बांध निर्माण और विवादित कश्मीर तक में है। यह आर्थिक कोरिडोर चीन के शिनजियांग क्षेत्र को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगा, जिसका निर्माण चीन द्वारा किया जा रहा है। चीन ने पाकिस्तान को अपने सिल्क रोड उपक्रम की केंद्रीय धुरी बना रखा है।1इस कोरिडोर की मदद से मध्य-पूर्व तक चीन की दूरी 12000 किलोमीटर तक कम हो जाएगी और हंिदू महासागर तक उसकी पहुंच हो जाएगी, जहां वह भारत को चुनौती देने की स्थिति में आ जाएगा। गत वर्ष चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के पाकिस्तान दौरे के दौरान दोनों देशों में हुए तमाम सौदों ने बीजिंग के साम्राज्यवादी दृष्टिकोण को रेखांकित किया। उन सौदों में 1.4 अरब डॉलर की लागत से करोट बांध सहित आर्थिक कोरिडोर के निर्माण से लेकर नई बिजली परियोजनाओं के विकास की बात शामिल की गई। आर्थिक कोरिडोर का निर्माण सिल्क रोड फंड के तहत चीन करेगा। बिजली परियोजनाओं पर भी चीन का अधिकार होगा। यह कोरिडोर चीन के आर्थिक और सुरक्षा ग्राहक के रूप में पाकिस्तान की पहचान को और सुदृढ़ करेगा। 1इस तरह पूरे पाकिस्तान पर चीन की मजबूत होती पकड़ पाकिस्तान को बीजिंग के चंगुल से म्यांमार और श्रीलंका के निकलने के उदाहरण का अनुसरण करने से रोकेगी। इन सौदों और रियायतों के बदले में चीन पाकिस्तान को सुरक्षा आश्वासन और राजनीतिक संरक्षण खासकर संयुक्त राष्ट्र में कूटनीतिक कवच प्रदान कर रहा है। इसका एक हालिया उदाहरण तब देखने में आया जब चीन ने पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को वीटो कर दिया था। गत महीने ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने कहा था कि चीन ने भारत को अमेरिका के समर्थन से परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य बनने से रोकने में पाकिस्तान की मदद की है। चीन के ये कदम पाकिस्तान को खुश करने के लिए हैं। चीन के अहसानों तले दबे पाकिस्तान ने उसे ग्वादर बंदरगाह को 40 सालों तक चलाने के लिए विशेष अधिकार दे रखा है, जिसके आने वाले दिनों में चीनी नौसेना के अड्डे में बदलने की संभावना है। दरअसल पाकिस्तान ने विशेष रूप से चीन द्वारा बनाए जा रहे कोरिडोर की सुरक्षा के लिए करीब 13000 जवानों से लैस एक नई आर्मी डिवीजन का गठन किया है। इसके साथ ही जनजातीय अतिवादियों और इस्लामिक बंदूकधारियों से चीनी नागरिकों और निर्माण स्थलों को बचाने के लिए पाकिस्तान ने पुलिस बल भी तैनात कर रखा है। 1कुछ साल पहले जब चीन ने कोरिडोर योजना की नींव रखी तो उसके बाद से ही उसने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अपने सैनिकों की तैनाती आरंभ कर दी। उसकी मंशा पहाड़ी क्षेत्रों में अपनी रणनीतिक परियोजनाओं को सुरक्षित करना है। पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था में जिस तरह आत्मविश्वास का अभाव नजर आ रहा है उससे लग रहा है कि आने वाले दिनों में चीन पाकिस्तान में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा सकता है, खासकर ग्वादर के आसपास के इलाकों में। सच्चाई यह है कि अमेरिका मदद के नाम पर अरबों डॉलर की राशि पाकिस्तान की झोली में डाल रहा है तो दूसरी ओर चीन अपनी कारगुजारियों से इसे अपनी रियासत का हिस्सा बनाता जा रहा है। लेकिन जिस तरह से पाकिस्तान चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को साधने का एक जरिया बना है, कुछ ही समय की बात है जब उसे लगेगा कि उसका संरक्षक ही उसे परेशान कर रहा है।1(लेखक सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च में प्रोफेसर हैं)(DJ)

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