Friday 24 June 2016

अंतरिक्ष में इसरो की पताका (शुकदेव प्रसाद)

आखिरकार इंतजार पूरा हुआ और हमारे ध्रुवीय रॉकेट मिशन (पीएसएलवी-सी-34) ने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफल उड़ान भरी और इसी के साथ उसने एक साथ 20 उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण करके एक अभिनव रिकॉर्ड बना दिया। उपग्रहों के इस बेड़े में तीन स्वदेशी और 17 विदेशी उपग्रह थे। इससे पूर्व भी इसरो ऐसा चमत्कार कर चुका है जब हमारे ध्रुवीय रॉकेट (पीएसएलवी-सी 9) ने 28 अप्रैल, 2008 को एक साथ 10 उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में सफल प्रक्षेपण किया था। ऐसा कहा जाता है कि रूस ने कभी 13 उपग्रहों का एक साथ सफल प्रक्षेपण किया था, लेकिन इसके बारे में इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष जी. माधवन नायर की टिप्पणी थी कि हमें जानकारी नहीं है कि अंत में इसका क्या परिणाम रहा? इस प्रक्षेपण में सबसे प्रमुख भारतीय उपग्रह ‘काटरेसैट-2सी’ है। ध्रुवीय रॉकेट ने ‘काटरेसैट-2सी’ के साथ इस सफल प्रक्षेपण में अन्य 19 उपग्रहों को 514 किलोमीटर की ऊंचाई वाली ध्रुवीय कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। सभी उपग्रहों का कुल भार 1288 किलोग्राम है। इन उपग्रहों में इंडोनेशिया का एक उपग्रह (लापान-ए 3), कनाडा के दो उपग्रह (एम3 एम सैट, जीएचजीसैट-डी), जर्मन उपग्रह बीरोस, अमेरिका के 13 उपग्रहों (स्काई सैट जेन 2-1 और 12 डोव उपग्रह) के साथ दो भारतीय मिनी उपग्रह ‘सत्यभामा’ और ‘स्वयं’ भी हैं जिन्हें सत्यभामा विश्वविद्यालय, चेन्नई और कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग पुणो के छात्रों ने बनाया है जो मात्र डेढ़ और एक किलोग्राम वजनी हैं। इसरो पहले भी कई मौकों पर भारतीय विद्यार्थियों को प्रोत्साहित कर चुका है। कदाचित वे कल इसरो की टोली के अभिन्न अंग बन जाएं और हमारे सपनों में रंग भर सकें। ध्रुवीय रॉकेट की यह उड़ान उस अमेरिका के लिए एक सबक है जिसने कभी अपनी सीनेट से एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें कहा गया था कि अमेरिका कभी भी भारत भूमि से अपने उपग्रहों का प्रक्षेपण नहीं करेगा। मगर वक्त का मिजाज तो देखिए वही अमेरिका इसरो के सामने नतमस्तक है। वैसे भी इससे पहले भी हम अमेरिका का दर्प दमन करके उसे सबक सिखा चुके हैं जब उसने 2015 में चार समरूप ‘लीमर’ नैनो उपग्रहों का इसरो द्वारा प्रक्षेपण कराया था। यह अमेरिकी इतिहास की पहली घटना थी। 1ध्रुवीय रॉकेट (मिशन पीएसएलवी-सी30) ने 28 सितंबर, 2015 को भारतीय उपग्रह एस्ट्रोसैट के साथ ही कनाडा के एक उपग्रह इंडोनेशिया के एक उपग्रह के साथ ही चार अमेरिकी नैनो उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया था। रही बात काटरेसैट-2सी की तो इसका प्रक्षेपण वक्त का तकाजा था, क्योंकि पिछले तीन वर्षो में हमने किसी भू-प्रेक्षण उपग्रह का प्रक्षेपण नहीं किया था। वे उपग्रह अब अवसान की ओर अग्रसर हैं, क्योंकि इनकी कार्यकारी अवधि मात्र पांच वर्ष की होती है। काटरेसैट श्रृंखला का पहला उपग्रह ‘काटरेसैट-1’ ध्रुवीय रॉकेट (मिशन पीएसएलवी-सी6) से छोड़ा गया था। आगे चलकर 10 जनवरी, 2007 को पीएसएलवी-सी9 ने ‘काटरेसैट-2’ का सफल प्रक्षेपण किया जो सही अर्थो में भारत का दूसरा सैन्य उपग्रह था। भारत का पहला सैन्य जासूसी उपग्रह ‘टेस’ (टेक्नोलॉजी एक्सपेरिमेंट सैटेलाइट) था जिसे ध्रुवीय रॉकेट ने 22 अक्टूबर, 2001 (पीएसएलवी-सी 3) ने लांच किया था। ‘काटरेसैट-2’ के पैन कैमरे 70 वर्ग सेंटीमीटर दायरे की तस्वीर लेने में सक्षम थे जिससे न सिर्फ सीमा पार, अपितु पड़ोसी मुल्कों के संपूर्ण भू-भाग और समुद्री इलाकों में चल रही सैन्य गतिविधियों की सटीक जानकारी हमें मिल रही थी। इसकी कार्यकारी पांच वर्षीय अवधि समाप्त हो चुकी है। इस क्रम में ‘काटरेसैट-2ए’ का प्रक्षेपण 28 अप्रैल, 2008 को, ‘काटरेसैट-2बी’ का प्रक्षेपण 12 जुलाई, 2010 को सकुशल संपन्न हुआ। ‘काटरेसैट-2सी’ का सफल प्रक्षेपण संपन्न हुआ। ‘काटरेसैट-2सी’ की विशिष्टता यह है कि इसमें जो पैन (पैनक्रोमेटिक कैमरे) लगे हैं उनकी क्षमता 70 वर्ग सेंटीमीटर से बढ़ाकर 60 वर्ग सेंटीमीटर कर दी गई है। इसका तात्पर्य यह है कि उपग्रह 60 वर्ग सेंटीमीटर के दायरे की भारत भूमि की चप्पे-चप्पे पर अपनी पैनी नजर रख सकता है। यह अपने आप में एक महती उपलब्धि है जिससे सशस्त्र बलों की सैन्य क्षमता में और इजाफा होगा। यूं तो हम इसे काटरेसैट (नक्शा नवीशी) कहते हैं, लेकिन यह भारत का सैन्य जासूसी उपग्रह है।1अब हमारी ध्रुवीय रॉकेट की प्रौद्योगिकी परिपक्व हो चुकी है और इसकी विश्वसनीयता ही वह आधार है कि दूसरे राष्ट्र भी हमसे प्रक्षेपण कराते हैं। इतनी सस्ती लांचिंग कॉस्ट में कोई भी स्पेस एजेंसी ऐसा साहस कर ही नहीं सकती। दरअसल यही इसरो का कमाल है। अब इसरो अपने आप में एक महाशक्ति देश वाली संस्था बन गया है। उसकी रॉकेट प्रणाली दुनिया भर में अद्वितीय है। इसरो ने 1963 में जो सफर शुरू किया था उसमें कई मील के पत्थर गाड़े हैं। हालांकि अभी हमारी जीएसएलवी रॉकेट प्रणाली पूरी तरह परिपक्व नहीं हुई है, लेकिन यह इसरो के तकनीकविदो का कमाल है कि हमारा ध्रुवीय रॉकेट जो मात्र नौ सौ किमी तक जा सकता है उसी की मदद से हमने अपना चंद्रयान भी भेजा और मगंलयान भी। मंगलयान का अभियान जितना अपनी सटीकता के लिए चर्चा में रहा उतना ही मितव्ययिता के लिए भी। इसरो हाल में अपना एक रिकवरी कैपसूल भी भेज चुका है। इसे 12 दिनों तक अंतरिक्ष में रखने के बाद सकुशल बंगाल की खाड़ी में उतार लिया गया था। यह स्पेस शटल बनाने करे दिशा में पहला प्रयास था। 1(लेखक विज्ञान मामलों के जानकार हैं)(DJ)

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