Tuesday 21 June 2016

नाजुक मोड़ पर ब्रिटेन (हर्ष वी. पंत)

ग्रेट ब्रिटेन की विपक्षी लेबर पार्टी की संसद सदस्य जो कॉक्स की हत्या उनके संसदीय क्षेत्र उत्तरी इंग्लैंड में उस वक्त हुई है जब उसके यूरोपीय संघ (ईयू) में बने रहने या यूरोपीय संघ से हटने पर जनमत संग्रह होने में कुछ ही दिन बचे हैं। जांच करने वाले अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हमलावर हमले के दौरान ब्रिटेन फस्र्ट बोल रहा था। इस घटना से स्पष्ट है कि ब्रिटेन में जनमत संग्रह को लेकर तनाव चरम पर है और जैसे-जैसे इसकी तिथि (23 जून) नजदीक आ रही है इसमें इजाफा होता जा रहा है। ब्रिटेन इस समय उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है। प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने 2015 के आम चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद जनमत संग्रह कराने का वादा किया था। दरअसल उनकी अपनी कंजरवेटिव पार्टी के सांसदों और यूके इंडिपेंडेंस पार्टी (यूकेआइपी) की ओर से इसकी मांग हो रही थी। उनका तर्क था कि 1975 में हुए जनमत संग्रह के बाद से वहां के हालात बहुत बदल गए हैं। परिणाम स्वरूप अब इसी सप्ताह ब्रिटेन के ईयू में रहने या बाहर निकलने पर जनमत संग्रह होना है। 1 ईयू 28 यूरोपियन देशों का एक समूह है, जिनमें आर्थिक और राजनीतिक संबंध हैं। इन देशों में आर्थिक सहयोग को गति देने के उद्देश्य से यह समूह वजूद में आया था। इसके पीछे विचार था कि यदि यूरोपीय देश आपस में तालमेल बना कर कारोबार को बढ़ावा दें तो एक-दूसरे से युद्ध से बचा जा सकता है। उसके बाद से इस दिशा में हुए समझौतों के उपरांत ईयू में शामिल देश एक बाजार में तब्दील हो गए। एक सदस्य देश के नागरिक या उत्पाद दूसरे सदस्य देश में बेरोकटोक कहीं भी आ जा सकते हैं। इसकी एक अपनी मुद्रा है, जिसका नाम यूरो है। अभी इस मुद्रा का प्रयोग ईयू के 19 सदस्य देश करते हैं। इसकी अपनी संसद है और यह पर्यावरण, परिवहन और उपभोक्ता अधिकार आदि तमाम विषयों पर नियम-कायदे तय करती है। ईयू में ब्रिटेन का एक अलग स्थान है। दरअसल ग्रेट ब्रिटेन की अपनी अलग मुद्रा और वीजा नियम हैं। हालांकि ईयू के साथ ब्रिटेन के संबंधों की शर्तो की लगातार चर्चा होती रही है। इस साल के आरंभ में ही कैमरन ने ईयू के दूसरे नेताओं से कहा था कि वे ब्रिटेन की सदस्यता से जुड़े नियमों को बदलें। कैमरन का कहना है कि यदि जनमत संग्रह के नतीजे ईयू में बने रहने के पक्ष में आते हैं तो वह 28 देशों के समूह में ब्रिटेन को विशेष दर्जा देने संबंधी समझौते और ब्रिटेन के लोगों को दिक्कत देने वाली नीतियों को बदलवाने में मदद करेंगे। जबकि उनके आलोचकों का कहना है कि इससे ब्रिटेन के लोगों का बहुत भला नहीं होने वाला है। 
यदि जनमत संग्रह के नतीजे ईयू से बाहर होने के पक्ष में आते हैं तो इससे ग्रेट ब्रिटेन और शेष यूरोप की अर्थव्यवस्था के सामने अनिश्चितता की स्थिति पैदा होगी। अब तक जो स्थिति नजर आ रही है उसमें ईयू से ब्रिटेन के बाहर निकलने की मांग कर रहे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इससे न सिर्फ बाजार, बल्कि ब्रिटेन की राजनीति में भी परेशानी पैदा हुई है। हालांकि हाल के दिनों में ग्लोबल इकोनामी की तस्वीर कुछ सुधरी है और ब्रिटेन के औद्योगिक उत्पादन में भी कुछ बढ़ोतरी दर्ज की गई है, लेकिन ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को जनमत संग्रह के नतीजों से अभी खतरा है। बैंक ऑफ इंग्लैंड ने जनमत संग्रह के खतरों के प्रति आगाह किया है कि इससे ग्लोबल वित्तीय बाजार को सबसे बड़े तात्कालिक जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। ब्रिटिश ट्रेजरी ने दावा किया है कि यदि ब्रिटेन ईयू से बाहर जाता है तो यह देश फिर मंदी के दौर में फंस जाएगा। वहीं ब्रिटिश चांसलर जॉर्ज ओसबर्न ने कहा है कि खतरों से निपटने के लिए ब्रिटेन को एक आपातकालीन बजट रखना होगा। उन्होंने उन कदमों की सूची भी गिना दी है जिन्हें तत्काल उठाना होगा जैसे कि आयकर में बढ़ोतरी और नेशनल हेल्थ सर्विस यानी एनएचएस में कटौती। उनके अनुसार यदि ब्रिटेन ईयू से निकलने का फैसला करता है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। इससे वित्तीय अस्थिरता पैदा होगी और ब्रिटेन के सामने आर्थिक रूप से असमंजस की स्थिति पैदा हो जाएगी। बड़े कारोबारी भी ब्रिटेन के ईयू में बने रहने के पक्ष में हैं, क्योंकि इससे उन्हें पूरे विश्व में अपनी पूंजी, श्रम और उत्पाद को भेजने में आसानी होती है। 1दूसरी तरफ ब्रिटेन को ईयू से बाहर होते देखने वाले बैंक ऑफ इंग्लैंड और टेजरी की लोगों को जानबूझकर भयभीत करने के लिए आलोचना कर रहे हैं। ब्रिटेन पलायन के मुद्दे से भी जूझ रहा है। यह मुद्दा तब केंद्र में आया है जब मध्य इंग्लैंड की जनसांख्यिकी में तेजी से बदलाव महसूस किया जा रहा है। कुछ लोगों का तर्क है कि ब्रिटेन की बहुनस्ली और बहुजातीय समाज की पहचान कायम रखने के लिए ईयू छोड़ना जरूरी है। उनका विचार है कि अभी की व्यवस्था के अनुसार सरकार ईयू से आने वाले लोगों की संख्या को सीमित नहीं कर सकती है। ब्रेक्जिट यानी ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के दूरगामी परिणाम होंगे। आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत सरकार जनमत संग्रह के संभावित नतीजों पर करीबी नजर बनाए हुए है। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने भी कहा है कि ब्रेक्जिट के बाद विश्व अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि उन्होंने कहा है कि भारत इससे प्रभावित नहीं होगा, क्योंकि उसके पास अच्छी नीति, दीर्घकालिक देनदारी और विदेशी मुद्रा का बड़ा भंडार है।1अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग सहित अन्य विश्व नेताओं की तरह मोदी ने भी ब्रिटेन को ईयू से बाहर नहीं जाने के लिए सलाह दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिटेन को यूरोपीय संघ का प्रवेश द्वार बताया है और कहा है कि भारत हमेशा एक मजबूत और एकजुट यूरोप का समर्थन करता है। भारतीय कंपनियां ब्रिटेन में निवेश करती रही हैं और वहीं से यूरोप के दूसरों देशों में अपना कारोबार फैलाती रही हैं। भारतीय कारोबारी समुदाय भी ब्रिटेन को ईयू में बने रहना देखना चाहता है। फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने कहा है कि ईयू से ब्रिटेन के बाहर जाने का फैसला भारतीय कारोबार के लिए अनिश्चितता पैदा करेगा। जाहिर है कि ब्रेक्जिट का ग्लोबल अर्थव्यवस्था और खासकर भारत पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा। यह पूरी तरह स्पष्ट है कि वैश्विक स्तर पर इससे वित्त का प्रवाह और मुद्रा विनिमय प्रभावित होगा। अब 23 जून को जनमत संग्रह के जो भी नतीजे आएंगे, एक बात साफ है कि ब्रिटेन पहले वाला ब्रिटेन नहीं रह जाएगा।1(लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर हैं)(DJ)

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