Monday 13 June 2016

जरूरी है निवेश बढ़ाना (जयंतीलाल भंडारी)

यकीनन भारत में ढांचागत क्षेत्र में देशी-विदेशी निवेश देश की बुनियादी आर्थिक जरूरत है। हाल ही में ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ‘‘मूडीज’ के द्वारा प्रकाित अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के द्वारा अटकी पड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को गति दिए जाने से भारत की विकास दर 2016-17 में आठ फीसद तक पहुंच सकती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने भी अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा कि भारत के द्वारा बुनियादी ढांचे पर जोर दिए जाने से जहां ग्रोथ की संभावना बढ़ी है, वहीं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आकर्षित करने और आर्थिक विकास के मौकों को मुट्ठी में करने की अनुकूल स्थिति भी निर्मित होते हुए दिखाई दे रही है। इन दिनों भारत में ढांचागत क्षेत्र में निवेश संबंधी नियंतण्र रिपोटरे में और भारत में ढांचागत निवे संबंधी नियंतण्र बैठकों में निवेश की नई संभावनाएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। 31 मई को जापान के टोक्यो में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने नियंतण्र निवेशकों से मुलाकात की और बताया कि भारत में बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश को सबसे अधिक लाभकारी बनाने की व्यवस्थाएं सुनिश्चित की गई हैं। कहा गया कि सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय निवेश व बुनियादी ढांचा कोष (एनआईआईएफ) की स्थापना की है। यह वाणिज्यिक रूप से व्यावहारिक नई, पुरानी व रूकी हुई परियोजनाओं में वित्त पोषण के लिए एक निवेश कोष है। निवेशकों के साथ बैठक में जेटली ने सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों को एफडीआई के लिए खोलने तथा भारत में निवेशक अनुकूल माहौल बनाने के लिए उठाए गए कदमों के जरिए दूसरी पीढ़ी के सुधारात्मक कदमों को भी रेखांकित किया। इस बैठक के दौरान जापानी निवेशकों सहित नियंतण्र निवेशक भारत में ढांचागत निवेश को लेकर सकारात्मक दिखाई दिए। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अब तक देश के तेज विकास में एक प्रमुख बाधा कमजोर बुनियादी ढांचा रहा है। यद्यपि मोदी सरकार ने पिछले दो वर्षो में बुनियादी ढांचे के तहत निवेश और प्रबंध में खासी सक्रियता दिखाई है। प्रमुखतया सड़क, पुल, रेलवे, बंदरगाह, एयरपोर्ट, ऊर्जा, संचार, जल-मल निकास व्यवस्था, जल आपूत्तर्ि, विनिर्माण एवं कृषि क्षेत्र का ढांचागत आधार मजबूत करने के लिए कदम बढ़ाए हैं, लेकिन अभी देश में बुनियादी ढांचे की मजबूती के लिए मीलों आगे जाना है। निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में नीतिगत बदलावों से अर्थव्यवस्था निकट भविष्य में तेज वृद्धि दर से आगे बढ़ेगी। यदि हम पिछले दो वर्षो में देश में बुनियादी ढांचे की प्रगति का परिदृश्य देखें तो पाते हैं कि सरकार ने स्पेक्ट्रम, कोयला और खनन में व्यवस्थागत सुधार किए हैं। यह सारा काम भी पारदर्शिता से हुआ है। अब कोयले के क्षेत्र में सरकारी कंपनियों के साथ ही निजी क्षेत्र की कंपनियां और केवल खनन कार्य करने वाली कंपनियां भी होंगी। इस तरह संसाधनों का अधिक-से-अधिक इस्तेमाल हो सकेगा। निस्संदेह पिछले दो वर्षो में सड़क क्षेत्र में सरकार ने जहां रुकी हुई सड़क परियोजनाओं को दोबारा शुरू किया है, वहीं नई परियोजनाएं भी शुरू की हैं। सरकार ने पिछले कई वर्षो से लंबित कुल 3.8 लाख करोड़ रुपये की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में से 3.5 लाख करोड़ रुपये मूल्य की परियोजनाओं को दोबारा शुरू किया है। स्थिति यह है कि हर रोज होने वाला सड़क निर्माण पिछली सरकार के आखिरी दो वर्ष के 8.5 किलोमीटर से बढ़कर वर्ष 2014-15 में 11.9 किमी और 2015-16 में 16.5 किलोमीटर हो चुका है। रेलवे क्षेत्र में औसत ट्रैक विस्तार वर्ष 2015-16 में 7 किमी प्रतिदिन रहा जबकि इससे पहले के छह सालों के दौरान यह औसतन 4.3 किमी प्रतिदिन था। इसी तरह वर्ष 2015-16 के दौरान रेलवे निवेश पिछले पांच साल के औसत की तुलना में दोगुना हो गया। देश के बड़े बंदरगाहों के प्रदर्शन में भी सुधार देखने को मिला है। इनका परिचालन मुनाफा वर्ष 2013-14 के 16.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2014-15 में 43 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2015-16 में देश के बंदरगाहों की क्षमता में 9.3 करोड़ टन का इजाफा हुआ, जो अब तक का सर्वाधिक इजाफा है। गौरतलब है कि वर्ष 2014-15 में कोयला उत्पादन 3.2 करोड़ टन बढ़ा है जबकि पिछले चार सालों को मिलाकर यह महज 3.1 करोड़ टन बढ़ा था। पिछले दो वर्षो में सौर ऊर्जा क्षेत्र में भी सरकार के कदम तेजी से आगे बढ़े हैं। स्पष्ट है कि अब बुनियादी ढांचे में निवेश ही वह धुरी है जिसके इर्द-गिर्द देश की भावी विकास गाथा घूम रही है। ऐसे में यह ध्यान रखा जाना होगा कि विस्तृत एवं दक्ष ढांचागत नेटवर्क के लिए जीडीपी का कम से कम 9-10 प्रतिशत निवेश किया जाना जरूरी है। सार्वजनिक खर्च और बुनियादी निवेश आधारित प्रोत्साहन की नीति एकदम स्पष्ट होना जरूरी है। विनिर्माण क्षेत्र के तहत ढांचागत विकास के लिए भारी धन की व्यवस्था किए जाने की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में ढांचागत आधार तैयार करना भी जरूरी है। विभिन्न ढांचागत जरूरतों को देखते हुए उपयुक्त तकनीक का विकास भी जरूरी है। एक ऐसे समय में जब मोदी सरकार ने पिछले दो वर्षो में देश में ढांचागत विकास के मद्देनजर अनेक सुधारात्मक उपायों पर काम शुरू किया है। तब जरूरी होगा कि अब भारत को नियंतण्र स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए ढांचागत विकास के नीति-नियमों और दिशा-निर्देशों में बड़े बदलाव और उनके कारगर क्रियान्वयन की डगर पर अवश्य आगे बढ़ा जाए। हम आशा करें कि अब नरेन्द्र मोदी सरकार अपने कार्यकाल के तीसरे वर्ष में सड़क, रेलवे, ग्रामीण बुनियादी ढांचा, शहरी कायाकल्प, सौर ऊर्जा और बिजली का पारेषण एवं वितरण के एजेंडे को तेजी से आगे बढ़ाएगी। यह कदम निस्संदेह सफलता के नये मानदंड स्थापित करेगी और देश के विकास में अहम योगदान कर सकेगी। केंद्र सरकार के पास फिलहाल करीब तीन साल का वक्त है। इन कीमती बचे वक्त में सरकार के साथ ही जनता की भी कई तरह की आशाएं और अपेक्षाएं हैं, जिसे पूरा करने का दबाव मोदी सरकार पर है।(RS)

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