Tuesday 21 June 2016

निर्यात को गति जरूरी जयंतीलाल भंडारी

यकीनन पिछले दो वर्षो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा दुनिया के विभिन्न देशों की यात्राओं के दौरान भारत से निर्यात बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद निर्यात घट गए। लेकिन आयात में भी कमी से विदेश व्यापार घाटा भी कम हुआ है। हाल ही में वाणिज्य मंत्रालय के द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015-16 में देश से कुल 261 अरब डॉलर मूल्य के माल और सेवाओं का निर्यात किया गया जबकि 379 अरब डॉलर का आयात किया गया। परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2015-16 में देश का व्यापार घाटा कम होकर 118 अरब डॉलर रहा, जो इससे पिछले साल 137 अरब डॉलर था। वर्ष 2015-16 का निर्यात निर्धारित निर्यात लक्ष्य से 16 फीसद कम रहा है। चिंताजनक यह भी है कि 13 मई 2016 को प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार देश से वस्तुओं का निर्यात लगातार 17वें महीने घटा है। विचारणीय यह है कि पिछले दो वर्षो में जहां नियंतण्र व्यापार और निर्यात मांग के क्षेत्र में कमी आई है। वहीं भारत जैसे ही कई निर्यातक देश पिछले वर्ष 2015-16 में निर्यात डगर पर आगे बढ़े हैं। खासतौर से वियतनाम, बांग्लादेश और मलयेशिया ऐसे देश हैं,जहां औसतन निर्यात 7-8 फीसद बढ़ा है। यद्यपि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण देश का आयात बिल निर्यात के मुकाबले कम है। लेकिन कुछ बड़े जोखिम अभी बरकरार हैं। यदि देश में औद्योगिक वृद्धि उम्मीद के मुताबिक गति पकड़ती है तो आयात में इजाफा होगा। इसी तरह यदि तेल कीमतों में बढ़ोतरी हुई तो भी आयात बिल एकदम बढ़ेगा। निसंदेह निर्यात के नए चिंताजनक आंकड़ों ने देश के ऊंचे निर्यात लक्ष्य के सामने प्रश्नचिह्न लगा दिया है। इस समय भारत को विश्व निर्यात बाजार में विभिन्न देशों से मिल रही निर्यात चुनौतियों का सामना करने के लिए नई रणनीति बनानी होगी। भारत को सबसे बड़ी निर्यात चुनौती चीन से मिल रही है। जिन देशों के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) हुए हैं, उनमें से अधिकांश देशों के साथ चीन के भी एफटीए हैं। इतना ही नहीं, भारत के मुकाबले कई छोटे-छोटे देश मसलन बांग्लादेश, वियतनाम, थाईलैंड जैसे देशों ने अपने निर्यातकों को सुविधाओं का ढेर देकर भारतीय निर्यातकों के सामने कड़ी प्रतिस्पर्धा खड़ी कर दी है। निर्यात चुनौतियों के तहत एक चुनौती यह भी है कि देश में विदेशों से माल लेकर भारत आने वाले जहाजों के पास सामान्यतया वापस ले जाने के लिए बहुत कम सामान होता है। इसके चलते समुद्री माल ढुलाई की दरें बढ़ जाती हैं। साथ ही भारतीय बंदरगाह शुल्क के मामले में भी पड़ोसी देशों से महंगे हैं।निश्चित रूप से भारत को निर्यात का गढ़ बढ़ाने का सपना साकार करने के लिए मोदी सरकार को ऐसी रणनीति पर काम करना होगा, जिसके तहत निर्यात की मुश्किलें कम हों। सरकार द्वारा निर्यात वृद्धि के दीर्घकालिक प्रयासों के तहत निर्यात कारोबार का कमजोर बुनियादी ढांचा सुधारा जाना होगा। खासतौर से समुद्री व्यापार से संबंधित बुनियादी ढांचे पर विशेष ध्यान देना होगा। स्थिति यह है कि चीन का 10वां सबसे बड़ा बंदरगाह भी भारत के सबसे बड़े बंदरगाह से 50 प्रतिशत तक बड़ा है। इतना ही नहीं, देश के कुल 12 बड़े बंदरगाहों का जितना कारोबार है, उससे अधिक अकेले सिंगापुर की पोर्ट सिटी का है। साथ ह,ी कोलंबो बंदरगाह अकेले ही भारत के सभी बंदरगाहों की तुलना में अधिक कंटेनर ट्रैफिक संभालता है। ऐसे में भारतीय बंदरगाहों की क्षमता वृद्धि की जाए। भारत से निर्यात बढ़ाने के लिए निर्यातक इकाइयों के लिए ऋण पर ब्याज दर में कमी की जाए। निर्यात उद्योगों से संबंधित कच्चे माल पर कम आयात शुल्क लगाया जाए। जीएसटी को शीघ्र लाया जाए। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि पिछले दो वर्षो से लगातार निर्यात में गिरावट के रुख को रोकने के लिए कम-से-कम कुछ ऐसे देशों के बाजार भी जोड़े जाने होंगे, जहां गिरावट अधिक नहीं है। निर्यात में जिन क्षेत्रों में गिरावट देखी गई उनमें पेट्रोलियम उत्पाद (47.88 फीसद), इंजीनियरिंग (29 फीसद), चमड़ा और चमड़ा उत्पाद (12.78 फीसद) और कालीन (22 फीसद) है। निर्यातकों ने लगातार गिरावट पर चिंता जाहिर की है।वस्तुत: इस समय निर्यात बढ़ाने वाले कई महत्त्वपूर्ण आधारों का पूरा लाभ भारत द्वारा उठाया जा सकता है। जिस तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम घट गए हैं, साथ ही कच्चे तेल की कीमतों में कमी से विदेशी मुद्राकोष, मुद्रास्फीति, भुगतान संतुलन और सब्सिडी के मानकों पर भारत की सकारात्मक स्थिति हो गई है, उसका लाभ निर्यात बढ़ाने में लिया जा सकता है। आर्थिक एवं श्रम सुधारों की डगर पर आगे बढ़ने का लाभ भी लिया जा सकता है। ऐसे में अब देश के नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे भारत के लिए निर्यात के वर्तमान सकारात्मक अवसर को हाथ से न जाने दें। जरूरी है कि निर्यातकों को उपयुक्त प्रोत्साहन दिए जाएं। साथ ही, सरकार द्वारा बेहतर विदेशी बाजार पहुंच उपलब्ध कराने का पूरा प्रयास किया जाए। भारतीय निर्यात संगठनों का परिसंघ (फियो) ने निर्यात में गिरावट को लेकर चिंता जाहिर करते हुए सरकार से मांग की है कि सरकार निर्यात को गति देने के लिए प्रोत्साहनमूलक उपायों की घोषणा करे। संगठन ने कर्ज के मकसद से निर्यात को प्राथमिकता वाले क्षेत्र में शामिल करने और सभी निर्यातकों के लिए ब्याज सब्सिडी बहाल करने की मांग की है। हम आशा करें कि मोदी सरकार अपने कार्यकाल के तीसरे वर्ष में प्रवेश करने के साथ भारत को निर्यात का नया नियंतण्र केंद्र बनाने के लिए शीघ्र ही उपयोगी नई निर्यात रणनीतिप्रस्तुत करेगी और उसके कारगर क्रियान्वयन पर ध्यान देगी। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को निर्यात में गिरावट को रोकने के लिए तत्काल ब्याज अनुदान स्कीम जैसे कुछ कदम उठाने चाहिए। हमारी इंडस्ट्री में निर्यातक तो खुश हैं, लेकिन बहुत ऐसी खामियां हैं जिनके कारण बाहर के पूंजीपति यहां आकर निवेश करना नहीं चाहते या जो करना चाहते हैं उन्हें तमाम तरह की समस्याएं आती हैं, दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं, रिश्वतखोरी है। ‘‘मेक इन इंडिया’ को सफल बनाने के लिए इन कमियों को दूर करना होगा।(RS)

No comments:

Post a Comment