Thursday 9 June 2016

आसान नहीं डाकघर बैंकिंग की डगर (सतीश सिंह)

रिजर्व बैंक ने भारतीय डाक को भारतीय पोस्ट पेमेंट बैंक (आइपीपीबी) या भुगतान बैंक का लाइसेंस दे दिया है। केंद्र सरकार ने आइपीपीबी शुरू करने की अपनी मंजूरी दे दी है। वर्ष 2017 के मार्च महीने में यह बैंक खुल जायेगा और सितंबर, 2017 से यह काम करना शुरू कर देगा। अभी आइपीपीबी को 650 शाखाएं खोलने की इजाजत मिली है। इसके लिये 3500 नये कर्मचारियों की भर्ती की जायेगी। 5000 एटीएम भी खोले जायेंगे। यह बैंक पेशेवर तरीके से संचालित किया जायेगा। इस काम में 1.70 लाख कार्यरत मौजूदा डाक कर्मचारी भी सहयोग करेंगे। शुरुआती दौर में यह 800 करोड़ रुपये की पूंजी से काम करना शुरू करेगा, जिसमें 400 करोड़ रुपये शेयर के जरिये 400 करोड़ रुपये अनुदान की मदद से जुटाया जायेगा। इस बैंक में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी सरकार की होगी।
विगत एक साल में डाक विभाग ने 27215 डाकघरों को नेटवर्क के जरिये आपस में जोड़ा है। बाकी डाकघरों को भी कोर बैंकिंग से जोड़ने का प्रस्ताव है। प्रस्तावित आइपीपीबी के विस्तार के लिये अर्नेस्ट एंड यंग द्वारा सुझाए गये हाइब्रिड मॉडल पर काम किया जा रहा है। इसके तहत मौजूदा डाककर्मी 650 प्रस्तावित आइपीपीबी के शाखाओं का संचालन करेंगे। सबसे पहले आइपीपीबी महानगरों और रायों की राजधानियों में अपनी शाखाए खोलेगा। चार सालों के अंदर इसका विस्तार जिला मुख्यालयों तक किया जायेगा। आइपीपीबी के लिए सरकार डाक विभाग का निगमीकरण करेगी। प्रस्तावित ढांचे के तहत विभाग को पांच स्वतंत्र होल्डिंग कंपनियों में विभाजित किया जाएगा, जिसके तहत बैंकिंग और बीमा खंडो के लिए इकाइयां स्थापित की जायेंगी।
पूर्व में 500 करोड़ रुपये की न्यूनतम पूंजी अहर्ता प्राप्त करने के लिए सरकार के समक्ष इस संबंध में एक केबिनेट नोट पेश किया गया था। पहले आइपीपीबी 50 शाखाओं के साथ बैंकिंग कारोबार शुरू करना चाहता था। उसने नये बैंक खोलने से जुड़ी शतोर्ं से जुड़ी औपचारिकताओं को पूरा भी कर लिया था, लेकिन किसी कारणवश यह योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी। विभाग ने आधुनिकीकरण और बैंकिंग सेवा के लिए इन्फोसिस, टीसीएस, सिफी, रिलायंस आदि कंपनियों के साथ करारनामा किया था। वित्तीय प्रणाली में सुधार (एफएसआई) की जिम्मेदारी इंफोसिस को दी गई थी। कोर सिस्टम इंटीग्रेटर (सीएसआइ) का काम टीसीएस, डाटा सेंटर का काम रिलायंस और नेटवर्क का काम सिफी को सौंपा गया था।
आइपीपीबी इंटरनेट, मोबाइल, डिजिटल बैंकिंग और एसएमएस जैसी सुविधाएं ग्राहकों को मुहैया कराना चाहता है। वित्त वर्ष 2017-18 तक यह अपनी सभी शाखाओं में एटीएम की सुविधा भी देना चाहता है। अनुमान है कि आइपीपीबी से मौजूदा सभी बैंकों को जबर्दस्त चुनौती मिलेगी, क्योंकि वित्तीय समावेशन एवं अन्य सामाजिक सरोकारों को पूरा करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथ ही, सूचना एवं प्रौधोगिकी, परिचालन से जुड़े जोखिम, बैकिंग प्रणाली को मजबूत करने, बढ़ती प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने एवं ग्राहकों की अनंत इछाओं को पूरा करने में भी यह समर्थ है। आजादी के वक्त डाकघरों की संख्या 23344 थी, जो 31 मार्च, 2009 तक बढ़कर 1,55015 हो गई, जो सभी वाणिजियक बैंकों की शाखाओं से लगभग दोगुना थी। उल्लेखनीय है कि इनमें से 89.76 प्रतिशत यानि 139144 शाखाएं ग्रामीण इलाकों में थीं। सुदूर ग्रामीण इलाकों में डाकघरों की गहरी पैठ है। ग्रामीणों का इसपर अटूट भरोसा है। ग्रामीण इलाकों में डाककर्मी चौबीस घंटे सेवा देते हैं। आमतौर पर डाककर्मी खेती-बाड़ी के साथ-साथ डाकघर की नौकरी करते हैं। अमूमन डाकघर का कार्य घर से संचालित किया जाता है। ऐसे व्यवहारिक स्वरूप के कारण ही 31 मार्च, 2007 तक डाकघरों में कुल 323781 करोड़ रुपये जमा किये गये थे, जो दिसंबर, 2014 में बढ़कर 6 लाख करोड़ से अधिक हो गये थे। मौजूदा समय में ग्रामीण इलाकों में प्र्याप्त संख्या में बैंकों की शाखाएं नहीं हैं। जहां बैंक की शाखा है, वहां भी सभी लोग बैंक से जुड़ नहीं पाये हैं। इसलिए, कुछ सालों से वित्तीय समावेशन की संकल्पना को साकार करने की दिशा में डिपार्टमेंट ऑफ फाईनेंशियल सर्विसेज, डिपार्टमेंट ऑफ इकनॉमिक अफेयर्स, डिपार्टमेंट ऑफपोस्ट और इनवेस्ट इंडिया इकनॉमिक फाउंडेशन के द्वारा काम किया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार भारत की कुल आबादी के अनुपात में 68 प्रतिशत लोगों के पास बैंक खाते नहीं हैं। बीपीएल वर्ग में सिर्फ 18 प्रतिशत के पास ही बैंक खाता है। फिलवक्त, सार्वजानिक क्षेत्र के बैंकों की कुल शाखाओं का 40 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में है। जाहिर है वित्तीय समावेशन को लागू कराना बैंकों के लिये एक गंभीर चुनौती है, जिसके निदान के तौर पर प्रधानमंत्री जनधन योजना लागू की जा रही है।
यूरोपीय देशों में डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट के द्वारा ‘पोस्टल गिरो’ जैसी योजना के माध्यम से नागरिकों को बैंकिंग सुविधा मुहैया कराई जा रही है। इस योजना के तहत यूरोपवासियों को मनीआर्डर के साथ-साथ भुगतान की सुविधा भी घर पर दी जाती है। भारत में भी ऐसा किया जा सकता है। आज मोबाईल फोन और ग्रामीण इलाकों में डाकघर का बढ़िया नेटवर्क है। आईपीपीबी का फोकस ग्रामीण क्षेत्र पर रहेगा। यह पारंपरिक बैंकिंग के अलावा इंटरनेट व मोबाइल बैंकिंग, बीमा एवं फी आधारित सेवाएं, डिजिटल बैंकिंग आदि की सुविधा भी मुहैया करा सकता है।
बैंक के माध्यम से जमा और निकासी करना बैंकिंग कार्यवाही का सिर्फ एक पक्ष है। आज प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, बीपीएल वर्ग को ऋ ण सुविधा आदि भी सरकारी बैंकों के माध्यम से उपलब्ध कराई जा रही है। विगत सालों में केवाईसी के अनुपालन में लापरवाही बरतने के कारण बैंकों में धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसे वारदातों के आईपीपीबी में भी होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
स्पष्ट है सकारात्मक संभावनाओं के साथ आइपीपीबी के समक्ष तकनीकी, वित्तीय समावेशन एवं आर्थिक स्तर पर अनेक चुनौतियां हैं, जिसे एक समय-सीमा के अंदर उसको दूर करना होगा, अन्यथा यह दूसरे बैंकों से पिछड़ सकता है। एक बड़ा और व्यापक नेटवर्क वित्तीय समावेशन को लागू करने में मददगार तो जरुर है, लेकिन उसे ‘यूटोपिया’ नहीं माना जा सकता है। वित्तीय समावेशन का अर्थ होता है हर किसी को बैंक से जोड़ना। बैंक से जुड़े रहने पर ही किसी को सरकारी सहायता पारदर्शी तरीके से दी जा सकती है। लिहाजा, इस संकल्पना को साकार करना आइपीपीबी के लिये आसान नहीं होगा।
इन सबके बीच एक सवाल यह भी है कि मौजूदा कर्मचारियों को तकनीक के साथ कैसे जोड़ा जायेगा? ध्यान देने वाली बात यह है कि डाकघर में जितने भी पुराने कर्मचारी हैं, उनको मैनूवल काम करने की आदत रही है। अभी भी कंप्यूटर फ्रेंडली डाककर्मियों की बहुत कमी है।
ऐसे में इस पूरी योजना को सही तरीके से लागू करने के लिए इन कर्मियों को तकनीक का प्रशीक्षण देना भी जरूरी होगा। दूसरी बात यह भी है कि जिस मनोविज्ञान से ग्रामीण क्षेत्रों में डाकघर चलते रहे हैं, उस मनोविज्ञान को अचानक से कैसे बदला जा सकता है। काम करने के तौर-तरीकों को बदल पाना यानी पूरी तरह से बैंकिंग स्टाइल में काम करवा लेना भी आसान नहीं होगा। उपरोक्त योजना के तहत जिस पेशेवर अंदाज में काम कराने की सोच सरकार रख रही है, उसके अनुरूप धरातल पर काम कराने में बहुत मेहनत करने की जरूरत पड़ेगी। नए-पुराने कर्मियों के बीच के मनोविज्ञान को भी समझना होगा। ऐसे में सवाल का उठना लाजिमी है कि क्या डाकघरों को बुनियादी सुविधायों से लैस किये बिना प्रस्तावित आइपीपीबी को शुरू करना व्यावहारिक कदम है? व्यावहारिकता पर सवाल उठना इसलिए भी प्रासंगिक है, क्योंकि देश के सुदूर ग्रामीण इलाकों में अनेक डाकघर घाटे में चल रहे हैं और इस मुद्दे पर सरकार का रुख अभी भी स्पष्ट नहीं है।(DJ)

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