देश-दुनिया का पर्यावरण पूरी तरह से खतरे में पड़ चुका है। पर्यावरण के घटकों में हवा का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यह बात दूसरी है कि अन्य पर्यावरणीय घटकों की तरह वह न तो दिखाई देती है और न स्पर्श की जा सकती है। यह भी सच है कि इसके बिना हम ज्यादा देर जी नहीं सकते। हम हर पल सांस लेते हैं और औसतन हर मिनट में 25 से 30 बार इसकी आवश्यकता पड़ती है। अगर किसी कारणवश ये सांसें अटक जाएं तो तत्काल जान आफत में पड़ जाती है। दुर्भाग्य से हर पल मिल रही हवा के प्रति हम चिंतित नहीं दिखते। 1विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रपट देश के प्रदूषण की तरफ एक गंभीर इशारा कर रही है। इसके अनुसार भारत के 20 शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में ऊपरी पायदान में हैं। देश की राजधानी दिल्ली दुनिया में प्रदूषित शहरों में 11वां स्थान रखती है, जबकि देश में इसकी रैंक पांचवीं है। यह बात गौर करने योग्य है कि ज्यादातर प्रदूषित शहर उत्तर भारत में हैं। उत्तर भारत दुनिया का सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला क्षेत्र भी है। बढ़ती आबादी पर्यावरण के हर घटक के लिए प्रतिकूल होती है। एक अन्य रपट भी चौंकाने वाली है। इसके अनुसार भारत का कार्बन उत्सर्जन ग्राफ 213 करोड़ टन तक पहुंच गया है। यह सबसे ज्यादा उर्जा उपयोग व उत्पादन के कारण है। इस बड़े उत्सर्जन को सोखने के लिए वनों का विस्तार जरूरी है, क्योंकि उत्सर्जित कार्बन वनों के लिए भोजन की तरह है। इस रपट के अनुसार कुल उत्सर्जन का करीब 12 प्रतिशत ही देश के वन सोख रहे हैं और बाकी निश्चित रूप से देश में प्रदूषण का हिस्सा बन रहा है। वन प्रकृति के वे उद्योग हैं जिनका कच्चा माल कार्बन के कण हैं। वनों को ठीक-ठाक हालात में रखकर हम कुछ हद तक प्रदूषण को नियंत्रित कर सकते हैं। देश के पूरे क्षेत्रफल के मात्र 21 प्रतिशत में ही वन हैं जिनकी गुणवत्ता में भी कई प्रश्नचिन्ह हैं। देश का ऐसा एक भी राज्य नहीं जहां भारी भरकम वन विभाग न हो पर पिछले पांच दशकों में वनों के विस्तार में कोई विशेष बढ़ोत्तरी नहीं हुई, बल्कि हम उसे भी संरक्षित रखने में सक्षम नहीं रहे। उत्तराखंड को ही देखिए, इस बार की वनाग्नि ने सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ डालें।
वन देश के फेफड़ों की तरह हैं जो शुद्ध वायु का संचार करते हैं। यह जानना हमारे लिए बहुत आवश्यक है कि हर पल मिलने वाली सांस कितनी पर्याप्त व स्वच्छ है। पानी और मिट्टी में बढ़ता प्रदूषण तो बहुत बाद में नुकसान देगा, परंतु दूषित प्राणवायु तत्काल ही असर दिखाती है। बढ़ते प्रदूषण में सबसे ज्यादा प्रभावित महिलाएं व बच्चे होते हैं। प्रदूषण आंतरिक व वाह्य, दो रूपों में देखा जाता है। आंतरिक हमारे घरों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण व बाहरी जो उद्योगों, मोटरगाड़ी, एसी आदि से होता है। विकसित देशों मेंवाह्य प्रदूषण ज्यादा है, जबकि विकासशील देशों में आंतरिक। प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियां भी विभिन्न तरह की हैं। 1हालात अगर ऐसे ही रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हवा के लाले पड़ जाएंगे। यह बदलती भोगवादी सभ्यता ही है जिसका परिणाम बिगड़ती हवा है। तमाम सुविधाओं ने अपरोक्ष रूप से ऊर्जा की आवश्यकता को बढ़ाया है। सबसे बड़ी समस्या हमारी अपनी जीवनशैली है। अगर जल्दी ही कोई रास्ता नहीं निकला तो हवा का संकट हमारा जीना मुश्किल कर देगा।
(लेखक जाने-माने पर्यावरणविद् हैं)(DJ)
वन देश के फेफड़ों की तरह हैं जो शुद्ध वायु का संचार करते हैं। यह जानना हमारे लिए बहुत आवश्यक है कि हर पल मिलने वाली सांस कितनी पर्याप्त व स्वच्छ है। पानी और मिट्टी में बढ़ता प्रदूषण तो बहुत बाद में नुकसान देगा, परंतु दूषित प्राणवायु तत्काल ही असर दिखाती है। बढ़ते प्रदूषण में सबसे ज्यादा प्रभावित महिलाएं व बच्चे होते हैं। प्रदूषण आंतरिक व वाह्य, दो रूपों में देखा जाता है। आंतरिक हमारे घरों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण व बाहरी जो उद्योगों, मोटरगाड़ी, एसी आदि से होता है। विकसित देशों मेंवाह्य प्रदूषण ज्यादा है, जबकि विकासशील देशों में आंतरिक। प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियां भी विभिन्न तरह की हैं। 1हालात अगर ऐसे ही रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हवा के लाले पड़ जाएंगे। यह बदलती भोगवादी सभ्यता ही है जिसका परिणाम बिगड़ती हवा है। तमाम सुविधाओं ने अपरोक्ष रूप से ऊर्जा की आवश्यकता को बढ़ाया है। सबसे बड़ी समस्या हमारी अपनी जीवनशैली है। अगर जल्दी ही कोई रास्ता नहीं निकला तो हवा का संकट हमारा जीना मुश्किल कर देगा।
(लेखक जाने-माने पर्यावरणविद् हैं)(DJ)
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