Tuesday 14 June 2016

इतिहास की नई रोशनी (बलबीर पुंज)

अभी हाल में विश्व की सबसे सम्मानित और प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका नेचर में एक शोध लेख छपा, जिसने कई मिथकों का निर्णायक ढंग से खंडन कर यह स्थापित किया कि सिंधु घाटी सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है, न कि 5000 वर्ष जैसा कि अभी तक कहा जाता रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि भारतीय सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता है। इस शोध ने कई मिथक प्रमाणिक तरीके से ध्वस्त भी किए है। उनमें पहला यह कि भारत की वैदिक सभ्यता के अनुयायी अर्थात आर्य लोग बाहर से आए थे और यहां उन्होंने स्थानीय लोगों की संस्कृति नष्ट कर दी थी और उन्हें दास बना लिया था या सुदूर दक्षिण में खदेड़ दिया था। दूसरा, अब यह स्थापित हो गया है कि सरस्वती नदी कोई कल्पना की उड़ान नहीं है, बल्कि एक वास्तविकता है। इसके किनारे एक महान वैदिक सभ्यता का जन्म और विकास हुआ था। इसके साथ-साथ यह भी सिद्ध हो गया है कि जब हजारों वर्ष पूर्व विश्व के अधिकांश भागों में मानव पाषाण युग में जीवन ज्ञापन करते थे उस समय तक भारत में शहरी सभ्यता का विकास हो चुका था। कुल मिलाकर हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज एक साधन संपन्न और विकसित सभ्य समाज की रचना कर चुके थे। 1नए शोध के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता मिस्न और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं से भी पुरानी है। जहां मिस्न की सभ्यता के प्रमाण 7000 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व तक रहने के मिलते हैं वहीं मेसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व तक प्रमाण है। शोधार्थियों ने इस बात के भी प्रमाण खोजे हैं कि हड़प्पा सभ्यता से 1000 पूर्व भी कोई सभ्यता थी। शोध में यह बात सामने आई है कि सिंधु सभ्यता मौसम में बदलाव के चलते विलुप्त हो गई। इस सभ्यता का फैलाव भारत के बड़े हिस्से में था और इसका विस्तार सरस्वती नदी के किनारे या घग्घर और हाकड़ा नदी तक था। शोधकर्ता यह पता लगाने में जुटे थे कि क्या सिंधु सभ्यता का विस्तार हरियाणा के भिराणा और राखीगढ़ी में भी था। उन्होंने भिराणा में खुदाई की और वहां से उन्हें हड्डियां, गायों की सींग, बकरियों, हिरन और चिंकारे के अवशेष मिले। इन सभी का कार्बन-14 के माध्यम से परीक्षण किया गया, जिसमें पाया गया कि किस तरह उस दौर के सभ्यता को पर्यावरणीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। पहले मॉनसून कमजोर होना शुरू हुआ था, लेकिन अचरज की बात यह रही कि लोगों ने उस समय घरों में पानी को संग्रहीत करने की व्यवस्था कर ली थी। अब तक इस सभ्यता के प्रमाण भारत के लोथल, धोलाविरा और कालीबंगन, जबकि पाकिस्तान के हड़प्पा और मोहनजो-दारो में मिले थे। 1पुरातत्व वैज्ञानिक अब इस नतीजे पर पहुंच गए हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता की राजधानी हरियाणा के जिला हिसार में स्थित राखीगढ़ी गांव में थी। पुणो डेक्कन कॉलेज के खुदाई व पुरातत्व विशेषज्ञ और हरियाणा के पुरातत्व विभाग द्वारा किए गए शोध के अनुसार यह तय हो गया है कि राखीगढ़ी की स्थापना हजारों वर्ष पूर्व हो चुकी थी। यहां पहली बार 1963 में खोदाई हुई थी और तब इसे सिंधु-सरस्वती सभ्यता का सबसे बड़ा नगर माना गया। शोधार्थियों ने घोषणाएं की थीं कि यहां दफन नगर कभी मोहनजो-दारो और हड़प्पा से बड़ा रहा होगा। 1997 से 2000 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यहां और खोदाई की, जिससे पता चला कि राखीगढ़ी नगर लगभग 3.5 किलोमीटर की परिधि में फैला था। शोधकर्ताओं के अनुसार यह शहर विलुप्त सरस्वती नदी के किनारों पर ही स्थित था। किसी भी सभ्यता का विकास स्वाभाविक रूप से नदी किनारे ही होता है। 1बकौल शोध विशेषज्ञ, आकार और आबादी की दृष्टि से राखीगढ़ी सबसे बड़ा शहर था। प्राप्त विवरणों के अनुसार यहां की सभी गलियां 1.92 मीटर चौड़ी थी। चारदीवारियों के मध्य कुछ गड्ढे भी मिले हैं, जो संभवत: किन्हीं धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी प्रथाओं के लिए प्रयुक्त होते थे। इसके अलावा असंख्य प्रतिमाएं, तांबे के बर्तन और एक भट्ठी के अवशेष भी मिले हैं। शमशान गृह के अवशेष भी शोधकर्ताओं को प्राप्त हुए हैं, जहां से 8 नरकंकाल भी पाए गए हैं जिनका डीएनए टेस्ट किया जा रहा है। राखीगढ़ी में हाकड़ा वेयर नाम से चिह्न्ति ऐसे अवशेष भी मिले हैं जिनका निर्माण काल सिंधु घाटी सभ्यता और सरस्वती नदी घाटी के काल से मेल खाता है। विगत वर्ष सरस्वती नदी की खोज में शोधकर्ताओं को बड़ी सफलता हाथ लगी थी। हरियाणा में यमुनानगर के आदिबद्री से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर सरस्वती नदी की खोज में खोदाई शुरू हुई थी, जिसमें धरातल से केवल सात-आठ फीट की खोदाई पर ही वहां जलधारा एकाएक फूट पड़ी। दावा है कि यह सरस्वती नदी का पवित्र जल है। वेद और पुराणों में सरस्वती का वर्णन नदी के रूप में नहीं, बल्कि वाणी तथा विद्या की देवी के रूप में हुआ है। स्कंदपुराण और महाभारत में इसका विवरण है। कई भू विज्ञानी मानते हैं और ऋग्वेद में भी कहा गया है कि हजारों वर्ष पूर्व सतलुज और यमुना के बीच एक विशाल नदी थी, जो हिमालय से लेकर अरब सागर तक बहती थी। खोजों से सिद्ध हुआ है कि किसी समय इस क्षेत्र में भीषण भूकंप के कारण जमीन के नीचे के पहाड़ ऊपर उठ गए और सरस्वती नदी का जल पीछे की ओर चला गया। 1तमिलनाडु में नए उत्खनन के आधार पर प्राचीन तमिल जीवनशैली से जुड़े नए साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। शिवगंगा जिले का अनजाना कीझादी गांव उत्खनन के बाद ऐतिहासिक संदर्भ प्राप्त कर चुका है। उत्खनन में चार दर्जन वर्गाकार क्षेत्र मिले हैं जिसे पुरातत्वविद संगम काल के सबसे महत्वपूर्ण रिहाइशी स्थान मान रहे हैं। यहां पहली बार 2013-14 में खोज कार्य शुरू हुआ था। फिर 2015 में यहां शीशा, मनके, मूर्तियां, चक्कियां, ईंटें, लौह सामग्री और मिट्टी के टूटे बर्तन मिले। यहां मिले साक्ष्य साबित करते हैं कि प्राचीनकाल में भी विदेशों से व्यापार होता था। पुरातत्वविदों के अनुसार यहां जो ईंटे मिली हैं वे संगम काल में इस्तेमाल होने वाली ईंटों के आकार की हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति से संबंधित साक्ष्य व तर्को को मार्क्‍सवादी इतिहासकार आज भी मानने को तैयार नहीं हैं, परंतु उपरोक्त शोध से उनके दावों का खंडन हो रहा है। सरस्वती नदी और सभ्यताओं को लेकर फैला भ्रम छंटता जा रहा है और इतिहास की विकृत धारणाएं भी धवस्त हो रही हैं। अब यह स्थापित सत्य है कि हमारे पूर्वज कहीं बाहर से नहीं आए थे और हम सभी युगों-युगों से इसी धरती की संतान है। 1(लेखक भाजपा के राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं)(DJ)

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