Friday 24 June 2016

अंतरिक्ष : इसरो ने रचा इतिहास (ओउम प्रकाश शर्मा)

बूधवार की सुबह जब भारतीय ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन यानी पोलर सैटेलाइट लॉंच व्हीकल यानी पीएसएलवी-सी34 ने विभिन्न देशों के 20 उपग्रहों को लेकर अपनी उड़ान भरी तो भारतीय अन्तरिक्ष विज्ञान के इतिहास में एक और अध्याय जुड़ गया। पीएसएलवी-सी34 द्वारा प्रक्षेपित किए गए 20 उपग्रहों में तीन भारतीय उपग्रह ‘‘कार्टोसैट’, ‘‘सत्यभामासैट’ और ‘‘स्वयं’ हैं; 13 अमेरिकी उपग्रह हैं; 2 उपग्रह कनाडा के हैं तथा एक-एक उपग्रह इंडोनेशिया और जर्मनी का है। पीएसएलवी-सी34 पर ले जाए गए सभी 20 उपग्रहों का वजन लगभग 1288 किलोग्राम है। पीएसएलवी दुनिया का सबसे अधिक भरोसेमंद प्रक्षेपण यान है और इसकी यह 36 वीं उड़ान थी। 320 टन वजन वाले पीएसएलवी-सी34 ने उड़ान भरने के 17 मिनट बाद 7.7 किलोमीटर की गति से 90 मिनट में पृवी का चक्कर लगाया और फिर इसने उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षाओं में छोड़ना प्रारम्भ किया। सबसे पहले 727.5 किलोग्राम वजन वाले भारतीय उपग्रह ‘‘कार्टोसैट-2सी’ को 505 किलोमीटर पर स्थित पोलर सन सिंक्रोनस यानी सूर्य समकालिक कक्षा में स्थापित किया। ‘‘कार्टोसैट-2सी’ पृवी की निगरानी करने वाला भारतीय रेमोट सेन्सिंग सैटिलाइट है, जो सब-मीटर रिसॉल्यूशन में तस्वीरें खींच सकता है। इस उपग्रह में पेंक्रोमेटिक तथा मल्टीस्पेक्ट्रल कैमरे लगे हुए हैं, जिनकी मदद से ली गई तस्वीरें कार्टोग्राफिक उपयोग, शहरी व ग्रामीण उपयोग, तटीय भूमि उपयोग, तथा सड़क नेटवर्क प्रवंधन, जल वितरण एवं जमीन के इस्तेमाल की मैपिंग जैसे अनेक अनुप्रयोगों के लिए मददगार होंगी। उसके बाद अन्य उपग्रहों को उनकी पूर्व निर्धारित कक्षाओं में स्थापित किया। चेन्नई की सत्यभामा यूनिर्वसटिी का 1.5 किलोग्राम वजन वाला ‘‘सत्यभामासैट’ नामक उपग्रह ग्रीन हाउस गैसों से सम्बन्धित आंकड़े एकत्र करेगा, जबकि पुणो के कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों द्वारा तैयार किया गया ‘‘स्वयं’ उपग्रह हैम रेडियो कम्यूनिटी को संदेश भेजने का कार्य करेगा, जिससे सुदूर क्षेत्रों में भी पॉइंट-टू-पॉइंट कम्युनिकेशन हो सकता है। पीएसएलवी द्वारा ‘‘स्वयं’ को 515.3 किलोमीटर की ऊंचाई पर इसकी कक्षा में छोड़ा गया। यहां विद्यार्थियों द्वारा तैयार किए गए उपग्रह ‘‘स्वयं’ के बारे में कुछ और जानना उचित होगा। एक किलोग्राम वजन वाला घनाकार उपग्रह ‘‘स्वयं’ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणो के लगभग 170 विद्यार्थियों द्वारा 8 वर्ष की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया गया है। इसकी खास बात यह है कि इसमें एक ऐसा पैसिव सिस्टम लगा हुआ है, जिसके कारण इसे स्टेबलाइज होने यानी संयत होने के लिए तथा पृवी के चुम्बकीय क्षेत्र की ओर मुड़ने के लिए किसी विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता भी नहीं होती है। दरअसल, इसमें अपने आप को स्टेबलाइज करने के लिए दो हिस्टेरेसिस रॉड तथा एक चुंबक लगी हैं। विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई इस विशेष युक्ति को इसरो ने भी सराहा है। दरअसल, ‘‘स्वयं’ का पैसिव एटिट्यूड कंट्रोल सिस्टम भारत में पहली बार इस्तेमाल किया गया है। इस उपग्रह का डिजाइन इस तरह किया गया है कि इसका जीवन काल एक वर्ष का होगा, जिसे जरूरत पड़ने पर दो वर्षो तक बढ़ाया भी जा सकता है। विद्यार्थियों द्वारा तैयार किए गए इस स्वदेशी उपग्रह की सफलता के बाद लगने लगा है कि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान के लिए विद्यार्थियों की अहम भूमिका हो सकती है। पीएसएलवी-सी34 द्वारा प्रक्षेपित किए गए अमेरिका-निर्मिंत 13 छोटे उपग्रहों में गूगल की एक कंपनी टेरा बेला द्वारा बनाया गया पृवी की तस्वीरें खींचने वाला हाई-टेक उपग्रह स्काईसैट जेन-2 भी शामिल है। 110 किलोग्राम वजन वाला यह स्काईसैट जेन-2 सब-मीटर रिसॉल्यूशन की तस्वीरें खींचने तथा हाई-डेफिनिशन वीडियो बनाने में सक्षम है। एक ही बार में प्रक्षेपित किए गए 20 उपग्रहों में से प्रत्येक एक-दूसरे से बिल्कुल अलग और स्वतंत्र है। यह पहली बार है जब कि किसी भारतीय प्रक्षेपण यान द्वारा इतनी बड़ी संख्या में उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े गए हैं। इससे पहले वर्ष 2008 में 28 अप्रैल को इसरो ने पीएसएलवी के द्वारा एक साथ 10 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेज कर एक विश्व रिकॉर्ड बनाया था, लेकिन इसके पांच वर्ष बाद वर्ष 2013 में अमेरिका ने मिनोटॉर-1 रॉकेट द्वारा एक साथ 29 उपग्रह भेजकर यह रिकॉर्ड तोड़ दिया। लेकिन अगले ही वर्ष रूस ने डीएनईपीआर रॉकेट द्वारा एक साथ 33 उपग्रह भेजकर एक साथ सबसे अधिक उपग्रह भेजकर यह रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया। इस प्रक्षेपण की खास बात है मल्टी पॉइंट डिलीवरी यानी एक ही प्रक्षेपण यान द्वारा कई उपग्रहों को अलग-अलग ऊंचाई की अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित करना। इससे पहले इसरो ने एक से अधिक उपग्रह तो छोड़े थे लेकिन वे लगभग एक ही ऊंचाई की कक्षाओं में थे। इसके अलावा, अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों की तुलना में इसकी लागत भी 10 गुना तक कम है। यही नहीं, इसरो अब तक लगभग 20 अलग-अलग देशों के 57 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित कर चुका है, और इस तरह भारत ने अब तक लगभग 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर कमाए हैं। 2016 से 2017 तक इसरो का लक्ष्य 25 से ज्यादा उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजना है। उपग्रह प्रक्षेपण के लिए इसरो द्वारा तैयार की गई सस्ती और स्वदेशी तकनीक के कारण अभी भी लगभग 20 देश अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए इसरो के संपर्क में हैं। ऐतिहासिक उपलब्धियों से यह बात तो स्पष्ट है कि भारतीय वैज्ञानिकों की क्षमता और प्रतिभा विश्व के किसी भी देश के वैज्ञानिकों से कम नहीं है। यही नहीं, जब भारतीय विद्यार्थी भी ‘‘सत्यभामासैट’ और ‘‘स्वयं’ जैसे हल्के एवं सस्ते उपग्रह तैयार कर सकते हैं, तो यदि उन्हें उचित साधन, सुविधाएं और मार्गदर्शन दिया जाए तो ये नन्हें वैज्ञानिक भी दुनिया में भारत का नाम रौशन करेंगे।(RS)

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