Wednesday 8 June 2016

यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार की कठिन राह (डॉ. भरत झुनझुनवाला )

भारत सरकार द्वारा यूरोपियन यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौता संपन्न करने का प्रयास किया जा रहा है। इन्हें फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) कहा जाता है। यूरोपियन यूनियन में यूरोप के प्रमुख देश जैसे फ्रांस, जर्मनी तथा इटली सम्मिलित हैं। एफटीए संपन्न होने के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार आसान हो जाता है। दोनों देशों द्वारा न्यून आयात कर लगाए जाते हैं। एफटीए संपन्न होने से यूरोपियन बाजार हमारे निर्यातों के लिए खुल जाएंगे। भारत में फैक्टियां लगेंगी। कपड़े, टेलीविजन तथा कार जैसे माल तथा साफ्टवेयर जैसी सेवाओं के निर्यात से भारत में भारी मात्र में रोजगार बनेंगे। चीन ने इस नीति को अपना कर अपनी जनता की आय में भारी वृद्धि हासिल की है। इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए नीति आयोग के प्रमुख अरविंद पनगड़िया ने कहा है कि हमें विश्व बाजार पर कब्जा स्थापित करना चाहिए। सरकार के इस मंतव्य का स्वागत है। 1यूरोपियन यूनियन के साथ पिछले कई वर्षो से एफटीए संपन्न करने की बात चल रही है। 2015 में भारत ने वार्ता को रद कर दिया था, क्योंकि यूरोपियन यूनियन ने भारतीय कंपनी जीवीके बायोसाइंस द्वारा निर्मित 700 दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया था। जीवीके बायोसाइंस के एक कर्मचारी ने तमाम वैश्विक संस्थाओं को ईमेल भेजकर शिकायत की कि कंपनी द्वारा अंतराराष्ट्रीय मानकों का उलंघन करके दवाएं बनाई जा रही हैं। तब यूरोपीय यूनियन ने जीवीके कंपनी का निरीक्षण किया। पाया कि वास्तव में कमियां थीं। इसके बाद इस कंपनी द्वारा बनाई गई दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया। जवाब में भारत ने एफटीए की वार्ता को रद कर दिया। इस प्रकरण से जाहिर होता है कि एफटीए तथा पेटेंट कानूनों के बीच घनिष्ठ संबंध है। विकसित देश अपने बाजार को हमारे निर्यात के लिए तब ही खोलते हैं जब उनकी कंपनियों को पेटेंट की कड़ी सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। एफटीए के अंतर्गत बढ़े हुए निर्यातों से हमें लाभ होता है। लेकिन साथ-साथ कड़े पेटेंट कानून से हमें महंगे माल खरीदने पड़ते हैं और हानि होती है। एफटीए के आकलन के लिए जरूरी है कि लाभ-हानि, दोनों का समग्र आकलन किया जाये। मेरी जानकारी में नीति आयोग ने ऐसा अध्ययन नहीं कराया है। विकसित देशों के बाजार हमारे लिए खुलेंगे, इसमें भी संदेह है। वर्ष 1995 में डब्ल्यूटीओ संधि के संपन्न होने के बाद विश्व व्यापार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। लेकिन अब इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। विकसित देशों की जनता एफटीए के विरोध में खड़ी हो रही है। अमेरिका में इस वर्ष के अंत में होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव के प्रत्याशियों ने आयातों पर अधिक टैक्स लगाने की वकालत की है। डेमोक्रेटिक प्रत्याशी हेलरी क्लिंटन ने कहा है कि मैक्सिको तथा कनाडा के साथ संपन्न हुए एफटीए में सुधार की जरूरत है। रिपब्लिकन प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप ने भी सभी एफटीए में संशोधन करने की मांग की है। ऐसा ही वातावरण इंग्लैंड में बन रहा है।
वर्तमान में इंग्लैंड यूरोपीय यूनियन का सदस्य है। यूरोपीय देशों में बने माल तथा उनके श्रमिकों को इंग्लैंड में आने-जाने की पूरी छूट है। इससे इंग्लैंड के श्रमिकों के रोजगार का हनन हो रहा है। इंग्लैंड में जून 2016 में जनमत संग्रह होना है कि इंग्लैंड यूरोपीय यूनियन में बना रहे या बाहर आ जाए। ताजा समाचारों के अनुसार लोग बाहर आने के पक्ष में तेजी से बढ़ रहे हैं। स्पष्ट है कि विकसित देशों के मुक्त व्यापार के विरुद्ध जनमत बन रहा है। लोगों का अनुभव है कि मुक्त व्यापार से बड़ी कंपनियों को लाभ होता है और आम जनता को हानि। जैसे भारतीय तथा यूरोपीय यूनियन के बीच एफटीए संपन्न हो जाए तो जीवीके बायोसाइंस को यूरोप में दवा बेचने का अवसर मिल जाएगा, परंतु यूरोपीय कंपनियों को पेटेंट से जनता को महंगी दवा खरीदनी पड़ेगी। 1नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जोसेफ सगलिट्ज ने इस बात को बार-बार कहा है कि मुक्त व्यापार से कंपनियों को लाभ तथा लोगों को हानि होती है। इस परिस्थिति में यूरोपियन यूनियन से हम एफटीए संपन्न करा लें तो भी इसके सफल होने में संदेह बना रहेगा। जो आवाज एफटीए के विरोध में आज अमेरिका और इंग्लैंड में उठ रही है वह कल यूरोपीय यूनियन में भी उठेगी। फिर भी यूरोपीय यूनियन के साथ एफटीए संपन्न करने से हमें लाभ होगा, क्योंकि हमारे यहां श्रमिकों के वेतन कम हैं। भारत में माल की उत्पादन लागत कम आती है। लेकिन चीन के सामने हमारी परिस्थिति इसके ठीक विपरीत है। अत: यदि हम मुक्त व्यापार के सिद्धांत को मानते हैं तो चीन से सस्ते माल का आयात होगा और भारतीय श्रमिकों के रोजगार का हनन होगा-बिल्कुल उसी तरह जैसे कि हमारे माल के निर्यात से अमेरिकी श्रमिकों का हो रहा है।
अरविंद पनगड़िया जैसे अर्थशास्त्रियों का मानना है कि विकसित देशों के साथ एफटीए संपन्न करके हम आगे बढ़ेंगे। यह विचारधारा असफल होगी। पहला कारण कि यूरोपीय यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौता संपन्न हो जाए तो यूरोपीय कंपनियों को पेटेंट कानून के अंतर्गत भारत में महंगा माल बेचने की छूट मिल जाएगी। बढ़े हुए निर्यातों से हमें हुआ लाभ इस महंगे माल को खरीदने से निरस्त हो जाएगा। दूसरा कारण है कि विकसित देशों में एफटीए के विरोध में स्वर जोर पकड़ रहा है। ऐसे में यूरोपीय यूनियन द्वारा एफटीए तभी संपन्न किया जाएगा जब उनकी कंपनियों को भारत में छूट ज्यादा मिले और हमारे निर्यातों को उनके देश में प्रवेश की छूट कम मिले। तीसरा कारण है कि हम यदि मुक्त व्यापार के नियम को मानते हैं तो चीन के लिए अपने बाजार को खोलना पड़ेगा। हमारे श्रमिकों के रोजगार नष्ट होंगे। अतएव मुक्त बाजार के रास्ते हमारे श्रमिकों का हित नहीं स्थापित होगा, जैसा अमेरिका तथा इंग्लैंड में हो रहा है। अपने घरेलू बाजार के विस्तार पर ध्यान देना ही हमारे लिए हितकारी होगा। >> 1(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं और आइआइएम बेंगलुरू में प्रोफेसर रह चुके हैं)(DJ)

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