Saturday 25 June 2016

ब्रिटेन का बड़ा फैसला (मनीषा प्रियम)

ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (ईयू) से नाता तोड़ने के मामले पर हुए जनमत संग्रह के नतीजे को देखते हुए यह तो स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि ब्रिटेन के निवासियों ने मामूली ही सही लेकिन बहुमत से यह स्वीकारा है कि वे बदलाव चाहते हैं। यूरोपीय संघ के भूगोल में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह सबसे बड़ा भूचाल माना जा सकता है। दो दशक से भी ज्यादा समय से यूरोपीय देशों के बीच साझा कारोबार और एक से दूसरे देश में बिना किसी रोकटोक के आना-जाना अब पुरानी बात हो जाएगी। इसका मतलब है कि यूरोप के अन्य राष्ट्रों के लोग नौकरी की तलाश में स्वतंत्र रूप से ब्रिटेन नहीं जा पाएंगे और इसी तरह ब्रिटेन के लोग स्वतंत्र रूप से यूरोप के दूसरे राष्ट्रों में नहीं जा पाएंगे। कहीं न कहीं इस पूरी अभिव्यक्ति में ब्रिटेन की यह मंशा स्पष्ट दिखाई देती है कि उस राष्ट्र का बहुमत अब ब्रिटेन की सीमाओं को संरक्षण में देखना चाहता है। ब्रिटेन के लोग खुली हुई सीमा को बंद कराना चाहते हैं और रोमानिया, स्पेन आदि ईयू के अन्य राष्ट्रों (जहां आर्थिक खुशहाली ब्रिटेन की तरह नहीं है) के लोगों को अपने दायरे में निर्बाध नहीं आने देना चाहते हैं। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर होने से ब्रिटेन के दूसरे देशों से राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदलेंगे और उसे एक बार फिर से दुनिया के दूसरे देशों से नए समझौते करने पड़ेंगे, जो आसान नहीं है। इस फैसले ने ब्रिटेन के लोगों में उभर रही राष्ट्रवाद की भावना को दर्शाया है। इससे जाहिर होता है कि यूरोप के देशों में संघवाद की भावना कमजोर पड़ रही है। जब-जब राष्ट्रवाद की भावना मजबूत हुई है तब-तब संघवाद ढीला पड़ा है। 1यूरोपीय देश इन दिनों आर्थिक मुद्दों से ज्यादा राजनीतिक मुद्दों को तरजीह देने लगे हैं। ब्रिटेन ने यूरोप के दूसरे देशों को रास्ता दिखा दिया है। यूरोप के अन्य देश राजनीतिक कारणों से ब्रिटेन का अनुसरण कर यूरोपीय संघ से बाहर जाने की मांग कर सकते हैं। ऐसे में यह संघ कमजोर राष्ट्रों का समूह रह जाएगा। ऐसा भी हो सकता है कि एक यूरोप का सपना ज्यादा दिनों तक न चले।1ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने का असर भारत सहित सभी दक्षिण एशियाई देशों पर पड़ेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था यूरोपीय संघ से गहराई से जुड़ी हुई है। ब्रिटेन के साथ भी इसके मजबूत संबंध हैं। यही वजह है कि जनमत संग्रह के नतीजे आने के तुरंत बाद भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव दिखाई देने लगा। शेयर बाजार में भारी गिरावट हुई। डॉलर और पाउंड के मुकाबले रुपया गिर गया। इससे साफ है कि आने वाले दिनों में डॉलर की मांग बढ़ जाएगी। लिहाजा निवेश भी अमेरिका का रुख करेगा। तेल की कीमतों पर भी असर देखने को मिलेगा, हालांकि उसमें कमी की संभावना है। आइटी सेक्टर का बड़ा नुकसान हो सकता है, क्योंकि उसकी बड़ी कमाई का हिस्सा ब्रिटेन से आता है। एक तरह से ब्रिटेन भारत के लिए यूरोप का प्रवेश द्वार है। ब्रिटेन में रहकर भारतीय कंपनियां यूरोप के दूसरे देशों में अपना कारोबार करती थीं। अब उन्हें सभी देशों से अलग-अलग नए करार करने होंगे। यह कठिन कार्य है। वहां भारतीय कंपनियों के लिए टैक्स फ्री सरीखी सुविधाएं थीं। अब यदि टैक्स लगता है तो उन्हें नुकसान होगा। कुल मिलाकर ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर जाने से अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना तय है। विश्व अर्थव्यवस्था का हिस्सा होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था इसकी मार से बच नहीं पाएगी। इस जनमत संग्रह के नतीजे का दूसरा महत्वपूर्ण आयाम यह है कि प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने त्यागपत्र देने का ऐलान किया है। उन्होंने ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्ष में जोर-शोर से आवाज उठाई थी। वहीं उनके विरोधी खेमे के सबसे बड़े नेता लंदन के पूर्व मेयर बोरिस जॉनसन और यूनाइटेड किंगडम इंडिपेंडेंस पार्टी के नेता निक फराज का मानना था कि अब ब्रिटेन को ईयू से बाहर आ जाना चाहिए। हालांकि कैमरन कुछ समय तक प्रधानमंत्री बने रहेंगे, लेकिन अब उनके दल को नया प्रधानमंत्री चुनना होगा, जो लोगों के फैसले पर अमल की रूपरेखा बनाएगा। 1ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से निकलने के फैसले के बाद वहां की अर्थव्यवस्था में होने वाले परिवर्तन दिखाई देने में अभी कुछ समय लगेगा, लेकिन यह गौर करने लायक है कि नतीजे आने के कुछ ही मिनटों के अंदर ब्रिटिश पाउंड नौ फीसद गिर गया। यही हाल दुनिया के तमाम शेयर बाजारों का भी रहा। यानी आशंका के माहौल में दुनियाभर के शीर्ष बाजारों में गिरावट का ही रुख बना रहा। आर्थिक क्षेत्र के कई विशेषज्ञों का मानना रहा है कि ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर जाने से यूरोप के दूसरे देशों की कंपनियां और उससे संबंधित नौकरियां भी ब्रिटेन से बाहर चली जाएंगी। इसका सीधा मतलब है कि आने वाले दिनों में ब्रिटेन में नौकरियों में बड़े पैमाने पर कटौती देखने को मिलेगी। इसके सामाजिक दुष्परिणाम भी सामने आएंगे। यह समझना कठिन है कि दुनिया में आर्थिक उथलपुथल और मंदी के दौर में ब्रिटेन के लोगों ने ऐसा फैसला क्यों लिया जिससे आने वाले दिनों में उनकी नौकरियों पर खतरा मंडराने लगे? जाहिर है, ब्रिटेन के इस फैसले की सबसे ज्यादा मार वहां के लोगों को ही ङोलनी पड़ेगी। 1इस नतीजे के बाद ब्रिटेन का उद्योग जगत भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह जाएगा। अब देखना है कि ब्रिटेन का उद्योग जगत किस तरह आगे अंतरराष्ट्रीय व्यापार करता है। ब्रिटेन को निर्यात में जर्मनी आगे है। अब जर्मनी की मध्यम और छोटी इकाइयों के मालिक भयभीत हैं कि ब्रिटेन के अलग होने से उनका क्या होगा? वहीं ब्रिटेन अपने उत्पादों में से 17 फीसद अमेरिका को निर्यात करता है। अब तक यह निर्यात ईयू के नियमों के आधार पर किया जाता रहा है। ईयू से निकलने के बाद ब्रिटेन को विश्व व्यापार संगठन द्वारा स्थापित व्यापार के नियमों का पालन करना पड़ सकता है। यह ब्रिटेन के लिए घाटे का सौदा साबित होगा। इससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में फिर वही सवाल दोहराया जा रहा है कि सब कुछ जानते हुए भी ब्रिटेन के लोगों ने ऐसा फैसला क्यों लिया? अर्थशास्त्रियों का मानना है कि ब्रिटेन शायद ईयू को मानने वाली संधि के अनुच्छेद-50 का हवाला दे और यह कोशिश करे कि ईयू में नहीं रहने के बाद भी वह अपना कामकाज ईयू के इकोनॉमिक एसोसिएशन के नियमों के तहत कर सके, लेकिन यह सब भविष्य के गर्भ में है। ब्रिटेन को अब यूरोपीय संघ से अलग होने के नतीजों, खासकर आर्थिक परिणामों को ङोलने के लिए तैयार रहना चाहिए। 1(लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में रिसर्च स्कॉलर रहीं लेखिका आर्थिक-राजनीतिक मामलों की विशेषज्ञ हैं)(DJ)

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