Sunday 19 June 2016

क्यों जरूरी है योग पर पेटेंट (अभिषेक कुमार)

अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि अमेरिका में भारतीय योग के महत्व को स्वीकार करने वाले
और इसकी प्रैक्टिस करने वालों की संख्या तीन करोड़ है, लेकिन फिर भी भारत ने इस पर पेटेंट लेने और इस पर अपना अधिकार जताने का प्रयास नहीं किया। निश्चय ही यह प्रधानमंत्री की नेकनीयती का सबूत है कि उनकी इछा भारतीय योग के ग्लोबल विस्तार की है, पर ध्यान रखना होगा कि भविष्य में इस पर पेटेंट नहीं लेने की हमें भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। असल में, यह एक विडंबना है कि एक ओर भारत और उस जैसे गरीब मुल्कों को बौद्धिक अधिकारों की रक्षा के मामले में कड़ी चौकसी बरतने और कार्रवाई करने को मजबूर किया जाता है, तो दूसरी ओर उसके पारंपरिक बौद्धिक ज्ञान पर लगातार डाका डालने की कोशिशें होती रहती हैं। खास तौर से अमेरिका जैसे मुल्कों का इस मामले में रवैया बेहद विभेदकारी और पक्षपातपूर्ण रहा है, क्योंकि वे अपने यहां तो भारतीय वस्तुओं और पारंपरिक ज्ञान की चोरी रोकने की बजाय उन पर स्थानीय पेटेंट तक जारी कर देते हैं, जबकि भारत में गरीबों के लिए बेहद जरूरी दवाओं की नकल पर कॉपीराइट के उलंघन का शोर मचाकर यहां कड़े कानूनों को लागू करने और उन पर कार्रवाई की मांग करते हैं।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका में कई मामलों में कानूनी कार्रवाई का सामना कर रहे भारतीय मूल के योग गुरु बिक्रम चौधरी (जो हाल में भारत लौट आए हैं) ने अब से आठ साल पहले वर्ष 2007 में तमाम भारतीय योगासनों, उनकी पद्धतियों और उनसे जुड़े जरूरी उपकरणों पर अमेरिकी कॉपीराइट कार्यालय से अपने नाम पेटेंट हासिल लिए थे। हालांकि उस समय दावा किया गया था कि ये पेटेंट बिक्रम योग, पावर योग जैसी योग की नई पद्धियों और बिक्रम चौधरी द्वारा विकसित योग पैंट जैसे उत्पादों पर दिया गया था, लेकिन सवाल है कि आखिर उन्होंने पारंपरिक भारतीय योगासनों में कौन से ऐसे सुधार कर लिए जो हजारों वषों के अंतराल में भारतीय योग गुरुओं ने नहीं किए होंगे और जिसके आधार पर उन्हें पेटेंट दे दिया गया। इधर पिछले कुछ वर्षो में अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे मुल्कों में भारतीय योग की लोकप्रियता बढ़ी है और वहां योग सिखाने के बाकायदा कार्यक्रम व सत्र चलने लगे हैं और इनके स्कूल खोले जा चुके हैं। इसलिए जरूरी है कि इस प्राचीन भारतीय ज्ञान की विशिष्टता बचाने का प्रयास किया जाए।
उल्लेखनीय है कि आचार्य पतंजलि के हठयोग से लेकर बाबा रामदेव तक ने प्राचीन भारतीय योगविद्या के तहत आने वाले योग, प्राणायाम और आसनों के लिए आम जनों को एक स्वस्थ जीवनशैली अथवा जीवन पद्धति मुहैया कराई है। हालांकि बिक्रम चौधरी ने दावा किया था कि उनके द्वारा विकसित किए गए योगासन विशिष्ट प्रकार के हैं (जैसे कि बिक्रम योग 40 डिग्री सेल्सियस से यादा तापमान पर कराया जाता है और वे न्यूड योग भी कराते हैं!), पर मूल सवाल यही है कि आखिर इनमें नयापन क्या था, जिसके आधार पर उन्हें पेटेंट जारी कर दिए गए थे। उल्लेखनीय है कि किसी प्रचलित रीति अथवा पारंपरिक पद्धति या ज्ञान पर कोई नया पेटेंट तभी जारी किया जा सकता है, जब उसमें कोई मौलिक सुधार किया हो और उसमें पारंपरिक जानकारी से पर्याप्त भिन्नता हो। यह भी गौरतलब है कि इससे पहले अमेरिका में कभी तो बासमती की नई किस्म ‘राइसटेक’ के नाम पर, तो कभी नीम, हल्दी, जामुन से बनाई गई नई दवा के नाम पर पेटेंट लेने की कोशिशें होती रही हैं, जिन्हें भारत ने अथक प्रयासों से रद्द कराया है। ऐसे में इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि विकसित मुल्कों में भारतीय योग की सभी प्रक्रियाओं का किसी दिन पेटेंट करा लिया जाए और हम हाथ मलते रह जाएं।
यह आशंका निराधार नहीं है। वर्ष 2014 में ऐसे कुछ प्रयास जर्मनी में हो चुके हैं, जहां योग की तरह ही एक अन्य भारतीय ज्ञान-उत्पाद खादी को जर्मनी की देन बताया गया था। वहां जर्मनी की एक कंपनी- खादी नेचरप्रोडक्ट यूरोपीय बाजारों में शैंपू, साबुन और तेलों आदि हर्बल सामानों की बिक्री उन्हें खादी उत्पाद बताकर बेचने लगी थी। जबकि यह स्पष्ट है कि खादी आजादी आंदोलन के समय से ही भारतीय ट्रेडमार्क है। इसके पीछे के आंदोलन की भूमिकाओं को पूरी दुनिया जानती है पर चूंकि इस पर कभी पेटेंट यानी बौद्धिक अधिकार हासिल करने की प्रक्रिया नहीं की गई, लिहाजा जर्मनी की कंपनी इसका फायदा उठाने लगी। इस पर भारत ने ऐतराज जताया। देश के खादी एवं ग्रामीण उद्योग आयोग(केवीआईसी) ने इस ट्रेडमार्क के नाजायज इस्तेमाल की बात उठाते हुए बेल्जियम स्थित संगठन-हार्मोनीजेशन इन इंटरनल मार्केट से इस मामले में दखल देने की मांग की और लाखों डॉलर के खर्च के बाद उस कंपनी को ऐसा करने से रोका गया। भारतीय बौद्धिक संपदाओं पर डाका डालने यानी पेटेंट या ट्रेडमार्क चुराने की यह कोई पहली कोशिश नहीं है। भारत इससे पहले हल्दी और नीम के पेटेंट में दखल का सामना कर चुका है और इनसे संबंधित मुकदमों में भारत को ही जीत मिली है, हालांकि ऐसे मामलों में भारत को काफी बड़ी रकम खर्च करनी पड़ जाती है। उल्लेखनीय है कि नब्बे के दशक में अमेरिका की एक कंपनी ने हल्दी पर अपना दावा ठोंक दिया था। इसे बचाने में भारत को पांच साल लग गए और अमेरिकी वकीलों को फीस के रूप में करीब 12 लाख डॉलर का भुगतान करना पड़ा था। इसी तरह 1995 में अमेरिका की ही एक अन्य फर्म ने भारत की नीम पर अपना दावा जता दिया था। भारत को इसके अमेरिकी पेटेंट को रद्द कराने में 10 साल लग गए। इस पूरी मशक्कत पर 10 लाख अमेरिकी डॉलर खर्च हो गए थे। इसी तरह का एक विवाद 1997 में भारतीय चावल की एक अहम किस्म- बासमती का उठा था। टेक्सास स्थित अमेरिकी कंपनी- राइसटेक सितंबर, 1997 में बासमती चावल के उत्पादन और विक्रय का बौद्धिक अधिकार यानी पेटेंट (संख्या 5663484) प्रदान किया गया था। राइसटेक को बासमती चावल पर पेटेंट दिए जाने की घटना को ‘बायोपाइरेसी’ का उत्कृष्ट उदाहरण बताया गया था। यह पेटेंट दिए जाने के बाद भारत ने अपनी आपत्ति जताई थी। भारत ने वे तथ्य मुहैया कराए, जिनसे पता चलता था कि भारत में तकरीबन 10 लाख हेक्टेयर और पाकिस्तान में 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बासमती चावल की खेती होती है। यह भी साबित किया कि भारत और पाकिस्तान में पड़ने वाले ग्रेटर पंजाब के विशाल भूभाग पर वहां के किसान सदियों से बासमती चावल की उम्दा किस्म की पैदावार करते रहे हैं, इसलिए अमेरिकी कंपनी को दिया गया पेटेंट रद्द किया जाए। ध्यान रखना होगा कि एक बार योग पर किसी और मुल्क में पेटेंट दे दिए जाने पर उसे रद्द कराना और उसे भारतीय मूल का साबित करना एक टेढ़ा काम है और इस पर भारी-भरकम पूंजी खर्च होती है।
हाला हालांकि हमारी सरकार को इसका अहसास है कि भारतीय योग पर कब्जे का खतरा मंडरा रहा है। पिछले ही साल (वर्ष 2015 में) इसी आशंका के मद्देनजर सरकार ने 1500 से अधिक योगासनों को चिह्न्ति कर लिया था। करीब 250 आसनों के वीडियो भी तैयार कर लिए थे। कहा गया कि एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाए तो भारतीय योगासनों पर पेटेंट के दावे के किसी भी प्रयास को नाकाम किया जा सकता है। सरकार का यह कदम ‘पारंपरिक ज्ञान डिजिटल पुस्तकालय’ (टीकेडीएल) के तहत उठाया जा रहा है।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की एक इकाई- टीकेडीएल के विशेषज्ञों ने 1500 से अधिक योगासनों को चिह्न्ति किया है जो देश के प्राचीन ग्रंथों में वर्णित हैं। इसलिए अब जरूरत है कि भारतीय योगसनों के बाजार के महत्व को भी समझा जाए और सूचीबद्ध किए गए योगासनों पर अपना पेटेंट हासिल कर लिया जाए। ()DJ(

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