Wednesday 8 June 2016

शरणार्थी समस्या पर तवज्जो जरूरी (मनीषा सिंह)

पिछले दिनों भूमध्य सागर में हुए नाव हादसों में 700 से ज्यादा लोगों की मौत की घटना का मानव इतिहास के बीते 50 साल की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदियों में दर्ज किया जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार प्रवासी शरणार्थियों को यूरोप ले जा रही कुछ नावों के पलट जाने और खराब मौसम का शिकार बन जाने की ये घटनाएं साबित कर रही हैं कि अफ्रीका से यूरोप पलायन कर रहे प्रवासियों को कितने कठिन हालात का सामना करना पड़ रहा है। पिछले कुछ ही अरसे में हिंसाग्रस्त पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका से दस लाख से ज्यादा लोगों का पलायन अपेक्षाकृत शांत और स्थिर यूरोप की तरफ हुआ है-यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी और इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन जारी कर चुकी है। पलायन की इस आपाधापी में हजारों लोगों का समुद्री रास्ते में डूबकर मर जाना या फिर गायब हो जाना मानव इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी की ओर इशारा कर रहा है। पिछले साल पलायन के प्रयास में तुर्की के तट पर बहकर आए मासूम, तीन वर्षीय मृत सीरियाई बच्चे आयलान कुर्दी की तस्वीर ने पूरी दुनिया को विचलित कर दिया था, पर इसका एक परिणाम निकला कि दुनिया का ध्यान पलायन की इस समस्या की तरफ गया। इससे पहले अनगिनत बार ऐसा हुआ है, जब अवैध ढंग से यूरोपीय देश में घुसने की कोशिश करते सैकड़ों लोग कंटेनरों या ठसाठस भरी नौका के बीच रास्ते डूबने के कारण जान गंवा चुके हैं। दुनिया में शायद ही कोई व्यक्ति अपना घर-बार आसानी से छोड़ने को राजी होता है, लेकिन सीरिया, इराक, यमन, लेबनान, सूडान, लीबिया, इथोपिया, सोमालिया, नाइजीरिया और अफगानिस्तान आदि दर्जनों देशों से ऐसा पलायन जारी है। इसके पीछे सिर्फ बेहतर जीवन की आस नहीं है, बल्कि खुद को और अपने परिवार की जिंदगी बचाने और किसी तरह जीवन को सुरक्षित बचा लेने की कोशिश है। जिन देशों से हजारों की संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं, उन ज्यादातर देशों में गृह युद्ध की स्थितियां हैं। मजहब के नाम पर मारकाट जारी है। ग्रीस, इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, बुल्गारिया, साइप्रस, माल्टा आदि देशों में जैसे-तैसे पहुंचने के लिए ये लोग मानव तस्करों के शिकार भी बन रहे हैं। भारी-भरकम रकम के बदले ये तस्कर अवैध तरीकों से लोगों को कंटेनरों में भरकर या रबर की समुद्री नौकाओं में ठूंसकर रवाना करते हैं, पर रास्ते के खतरों से उन्हें बचाने का कोई जतन नहीं करते। ऐसा भी नहीं है कि जान पर खेलकर और जीवन की सारी जमापूंजी दांव पर लगाने के बाद इनकी जिंदगी सुरक्षित हो ही जाएगी। यूरोप के जिन देशों की आबादी तेजी से बढ़ रही है, वे प्रवासियों के आगमन पर खुश नहीं होंगे। ऐसे में अपनी आबादी का बढ़ता बोझ देख रहे ये देश ज्यादा लंबे समय तक प्रवासियों को अपने यहां डेरा डाले नहीं देख सकते। हालांकि जर्मनी जैसे देशों को ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। जिन देशों में जन्मदर में गिरावट हो रही है, वहां यह डर सता रहा है कि श्रमशक्ति की कमी के चलते वे अपने आर्थिक प्रतिद्वंद्वियों के सामने ठहर नहीं पाएंगे। इसलिए सस्ते श्रम की जरूरत के मद्देनजर वे प्रवासियों के लिए दरवाजे खोल सकते हैं। जर्मनी के बाद ऐसे देशों में ग्रीस, बाल्टिक के देश, हंगरी और रोमानिया शामिल हैं। हालांकि कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अधिक प्रवासियों का मतलब है सरकारी खजाने में अधिक टैक्स आना, सार्वजनिक सेवाओं स्वास्य, शिक्षा आदि का विस्तार होना। लेकिन सरकार को सार्वजनिक सेवाओं की बढ़ती हुई मांग से निपटने के लिए और ज्यादा खर्च करना पड़ेगा। ऐसे में यूरोपीय देश जल्द प्रवासियों को बाहर का रास्ता दिखाने का विकल्प चुन सकते हैं। वैसे तो इन ज्यादातर देशों का अत्यधिक ठंड मौसम एक बड़ी मुश्किल है, जिसके सामने टिकना भी चुनौती ही है, पर जिंदगी की जद्दोजहद में प्रवासियों ने फिलहाल इसकी परवाह नहीं की है। यहां एक सवाल यह भी कि खुद खाड़ी के अमीर मुल्कों ने पड़ोसी देशों से पलायन कर रहे लोगों की मदद का जज्बा क्यों नहीं दिखाया? हो सकता है कि इससे वे अपनी जनसंख्या का अनुपात बिगड़ने और संसाधनों के बंटवारे जैसी समस्या से डरे हुए हों, लेकिन उनका यह रवैया खेदजनक ही है। मानव इतिहास के बीते 50 साल की सबसे बड़ी मानवीय त्रासदी कही जा रही इस शरणार्थी समस्या पर दुनिया को पूरी गंभीरता से विचार करना होगा।(RS)

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