Wednesday 8 June 2016

प्रशंसा में छुपा होता है आपकाअहित (अमृत साधना ओशोमेडिटेशन रिज़ाॅर्ट, पुणे )

संत कबीर का बहुत प्रसिद्ध दोहा है, "निन्दक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।' क्या मतलब होगा इसका? इस जगत में जहां हर कोई प्रशंसा का भूखा है, और झूठे प्रशंसकों से लोग घिरे रहते हैं वहां ऐसी उल्टी बात कहना अजीब सा लगता है। सच्ची हो या झूठी, किसी से अपने बारे में अच्छी बातें सुनने के लिए कान तरसते हैं। और कबीर कहते हैं कि निंदक को अपने ही आंगन में रहने दें। उससे आपका भला होगा। वे कहते हैं, प्रशंसा से सावधान। क्योंकि प्रशंसा करने वाले से हित तो कभी हो ही नहीं सकता, अहित ही होगा। अगर आप अपनी बुराइयों को मिटाना चाहते हैं तो निंदक की बातें ध्यान से सुनें। वह आपका आईना बन सकता है।
ओशो की दृष्टि बहुत साफ है कि दरअसल प्रशंसा तभी प्रशंसा जैसी मालूम होती है, जब आप जैसे नहीं हो, वह वैसा बतलाए। जो स्त्री सुंदर नहीं है उसे कहें कि तुम सुंदर हो तो वह स्त्री खुश हो जाती है। बुजुर्ग व्यक्ति को कोई कहे, आप जवान लग रहे हैं तो वह कैसे खिल उठता है। प्रशंसा सदा ही झूठ होती है। अगर सच हो तो प्रशंसा में प्रशंसा जैसा क्या रहा? अगर आपने गुलाब के फूल को कहा, कोमल हो, तो कौन सी प्रशंसा हुई? हां, जब आप कांटे को कहते हैं कि तुम कोमल हो, तब कांटा प्रसन्न होता है। झूठ ही सुख देता है प्रशंसा में। और उस प्रशंसा से बढ़ता है आपके भीतर अहंकार और अभिमान।
हमारा सामाजिक जीवन अहंकार को फुलाता है, वह झूठ का जोड़ है हजार तरह के झूठ इकट्ठे करके अहंकार खड़ा करना पड़ता है। जब अहंकार इतना बड़ा बन जाए तब आदमी सच का सामना नहीं कर सकता।
सभी बुद्ध पुरुषों ने कहा है, निंदा के प्रति कान बंद मत करना, उससे लाभ ही हो सकता है, हानि कुछ भी नहीं हो सकती। निंदा सुनने और पचाने से आप अपने भीतर के घाव उघाड़ सकते हैं, खामियां दूर कर सकते हैं। बुराई को जितना छिपाएंगे उतना वह नासूर बनेगी। अगर निंदा झूठी हो तो उसकी उपेक्षा करें, लेकिन अगर निंदा सच हो तो उसे अपना असली चेहरा दिखाने वाला आईना मानिए। निंदा की एक खूबी है कि वह झूठी हो तो आपको चुभती नहीं है, अगर सच हो तो उसमें गलत क्या कहा? यदि आप वास्तव में शांत और रिलैक्स होना चाहते हैं तो सच को अपनाइए। आप जितने सच्चे होंगे उतना आपको कबीर के कथन का आशय समझ में आएगा।

No comments:

Post a Comment