Wednesday 10 August 2016

देश मेंआर्थिक सुधारों की 25वीं सालगिरह

देश मेंआर्थिक सुधारों की 25वीं सालगिरह पर राज्यसभा द्वारा माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के लिए 122वां संविधान संशोधन विधेयक पारित किए जाने को ऐतिहासिक करार दिया जा रहा है। राज्यसभा में 5 घंटे की लंबी बहस के बाद 202 सांसदों ने पक्ष में और 13 सांसदों ने जीएसटी को गैर-संवैधानिक बताते हुए विरोध में मतदान किया। चूंकि राज्यसभा द्वारा संशोधित प्रारूप पारित किया गया है, इसलिए इसे दोबारा लोकसभा की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। फिर 15 राज्यों की मंजूरी के बाद ही राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होंगे तभी यह संविधान संशोधन लागू हो पाएगा।
जीएसटी कानूनी मायने में सचमुच ऐतिहासिक है, क्योंकि टैक्स हेतु अभी तक का सबसे बड़ा संशोधन विधेयक है जिसमें संविधान के 12 अनुच्छेदों के अलावा छठवीं और सातवीं अनुसूची में जरूरी बदलाव किए गए हैं। किंतु जीएसटी कानून और नियमों का निर्माण होना तो अभी बाकी है, जिसकी तस्वीर साफ हुए बगैर इसे ऐतिहासिक बताने का शोर क्यों? अनुच्छेद 279 में हुए संशोधन के अनुसार जीएसटी कानूनों का निर्माण केंद्र तथा सभी राज्यों के प्रतिनिधि वाली काउंसिल द्वारा किया जाएगा। राजनीति और स्थानीय हितों से प्रेरित राज्य आने वाले समय में देशहित से कितने प्रेरित होंगे, इस पर ही जीएसटी की ऐतिहासिक सफलता का दारोमदार है।
जीएसटी की मूल भावना है समान टैक्स व्यवस्था से राज्यों में टैक्स प्रशासन को सरल बनाते हुए देश को एक साझा बाजार में तब्दील करना, जिससे उत्पादन, कारोबार और सेवा क्षेत्र समेत संपूर्ण अर्थव्यवस्था का विकास हो। अंग्रेजों ने भारत को समान आपराधिक कानन की व्यवस्था दी पर हम आजादी के 70 साल बाद भी समान नागरिक संहिता पर राजनीतिक सहमति नहीं जूटा पाए। देशव्यापी जीएसटी लाने की जद्‌दोजहद करने के पहले क्या राज्यों के भीतर ही कर व्यवस्था को पारदर्शी और अनुशासित नहीं करना चाहिए था, जिससे राज्यों के बीच एकीकरण में आसानी होती। जीएसटी केंद्र राज्यों में लागू 20 से अधिक अप्रत्यक्ष करों के एवज में लाया जा रहा है। किंतु नई व्यवस्था में कारोबारियों को तीन स्तरीय टैक्स प्रणाली के तहत सीजीएसटी (सेंट्रल), एसजीएसटी (स्टेट) एवं आईजीएसटी (इंटीग्रेटेड) राज्यों में अलग-अलग पंजीकरण के साथ कई तरह के रिटर्न भरने होंगे। यह दावा किया जा रहा है कि 'जीएसटी नेटवर्क संस्था' तैयार है जो केंद्र तथा राज्यों के डैटाबेस को आपस में जोड़ेगी परंतु इन सबसे क्या आम व्यापारी की कंप्लायंस कास्ट नहीं बढ़ जाएगी?
भारत में 55 फीसदी आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, परंतु उसे जीडीपी का 15 फीसदी लाभ ही मिलता है, जिससे खेती में और अधिक रोज गार की संभावना नहीं है। सरकार का विश्वास है कि जीएसटी के सुधारों से एकीकृत बाज़ार के माध्यम से 50 लाख मध्यम और छोटे उद्योगों का विकास होगा और जीडीपी में 2 फीसदी की बढ़ोतरी और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन हो सकेगा। दूसरी ओर राज्यों द्वारा कई टैक्स खत्म करने पर अनावश्यक कर्मचारियों की छंटनी करने की भी नौबत सकती है। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के दौर में भी बड़े रोजगार सृजन का सब्जबाग दिखाया गया था, जो अंततः उद्योगपतियों द्वारा जमीन हड़पने का जरिया बन गया। जीएसटी में दरों को कम करने के नाम पर सरकार द्वारा कॉरपोरेट टैक्स की दरों को 30 से 25 प्रतिशत पर लाकर बड़े व्यापारियों को राहत देने का प्रबंध पहले ही कर दिया गया है। सरकार द्वारा विदेशी निवेशक संस्थानों के 42 हजार करोड़ से अधिक के टैक्स माफ करने और भविष्य में टैक्स लगाने के अनुबंधों को लागू करने के बाद अब जीएसटी के माध्यम से विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल आर्थिक माहौल प्रदान किया जा रहा है। किंतु जीएसटी के माध्यम से किए जा रहे आधे-अधूरे सुधारों से विदेशी निवेशकों का उत्साह तो भंग होगा ही, उसके अलावा घरेलू उत्पादकों की प्रतिस्पर्द्धात्मक क्षमता भी कमजोर हो सकती है। राज्यों के कर-राजस्व में कमी सकती है जिसका बोझ जनता पर ही पड़ेगा जो आर्थिक विषमता क्षेत्रीय असंतुलन को बढ़ा सकता है।
जीएसटी के क्रियान्वयन के लिए राज्यों को सभी टैक्स विभागों को एकीकृत करने की चुनौती आने पर क्या उसके लिए केंद्र आर्थिक सहयोग देगा? क्षतिपूर्ति के नाम पर राज्यों को 5 वर्ष तक अनुत्पादक सब्सिडी देने से क्या राज्यो का वित्तीय प्रबंधन कमजोर नहीं होगा? अधिकांश राज्यों में वैट पर कर सीमा 5 से 10 लाख रूपए की है पर एक्साइज की छूट बहुत ज्यादा है। इसके मद्‌देनजर मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने 40 लाख रुपए की जीएसटी कर सीमा सुझाई थी। राज्यों के दबाव से जीएसटी पर 10 लाख रुपए की छूट सीमा पर सहमति बनी है, जिससे छोटे उत्पादक इंस्पेक्टर राज में पिस सकते हैं। अभी सेस सरचार्ज से केंद्र सरकार को करीब 1.15 लाख करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। भविष्य में केंद्र और राज्यों द्वारा सेस के माध्यम से जीएसटी की समानांतर व्यवस्था खड़ी करने से 'वित्तीय नक्सलवाद' पैदा हो सकता है। शुरुआती तीन सालों में जीएसटी महंगाई बढ़ाने वाला टैक्स साबित होगा, यह सरकार भी मानती है। उत्तरप्रदेश, पंजाब और गोवा के आसन्न चुनाव तथा 2019 में आम चुनाव की आहट के बावजूद क्या सरकार जीएसटी को पूरी तरह से लागू करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति रखती है ?
भारत की संघीय व्यवस्था राजनीतिक दुराग्रहों की शिकार रही है, जिसकी बानगी जलविवादों में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवज्ञा में देखने में मिलता है। जीएसटी के भावी विवाद में पंचाट या परिषद कितनी सफल होंगी, यह अनुमान लगा पाना मुश्किल नहीं है। देश में राजनीतिक असहिष्णुता के माहौल में जब संसदीय प्रणाली विफल हो रही हो तब जीएसटी के माध्यम से कराधान प्रणाली की एकरूपता कैसे हासिल हो पाएगी? जीएसटी लागू करने के दौर में केंद्र खिलाड़ी के अलावा रेफरी की भूमिका में है, जिसका रसूख मानने के लिए कोई भी राज्य तैयार नहीं है और यह राजनीति ही जीएसटी के अर्थतंत्र को ऐतिहासिक बनाने से रोकती है। जीएसटी में राज्यों द्वारा दोहरे कराधान की पूरी गुंजाइश है और कर व्यवस्था में राजनीति के खेल की कीमत, अंततः जनता को ही चुकानी पड़ेगी। भारत की संघीय व्यवस्था में राज्यों की राजनीति पर ज्यादा जोर देने से क्या 'एक देश एक टैक्स' का स्वप्न साकार हो पाएगा? एक सवाल यह भी है कि अधिक समायोजन करने से जीएसटी मूल स्वरूप खोकर देश में आर्थिक अराजकता तो पैदा नहीं करेगा? (येलेखक के अपने विचार हैं।)

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