Monday 22 August 2016

ई-कॉमर्स के स्याह पक्ष (अभिषेक कुमार)

बेरोजगारी से जूझते मुल्क में यह खबर किसी को भी हैरान कर सकती है कि आइआइटी-आइआइएम जैसे संस्थान नौकरी देने वाली कंपनियों को ही अपने यहां कैंपस सेलेक्शन करने से रोकने का प्रयास करें। वे कंपनियां जो हाल-हाल तक इन संस्थानों से पढ़कर निकले युवाओं को अपने यहां लाखों-करोड़ों के सालाना पैकेज पर नौकरी पर रखती रही हैं, कोशिश की जा रही है कि ये कंपनियां वहां पांव न रख सकें। खबर है कि देश के कई आइआइटी करीब 20 ऐसी कंपनियों को }लैकलिस्ट कर रही हैं, क्योंकि उन्होंने नौकरी देने के मामले में धोखाधड़ी की है। समस्या का गंभीर पहलू यह है कि इनमें से यादातर वे स्टार्टअप कंपनियां हैं जिन पर देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने का दारोमदार है और जो आकर्षक वेतन देने के मामले में अग्रणी रही हैं। इनमें सबसे यादा संख्या ई-कॉमर्स यानी ऑनलाइन कारोबार करने वाली कंपनियों की है।
हाल तक इन स्टार्टअप कंपनियों की इसलिए चर्चा होती थी कि एक ओर ये देश के नामी आइआइटी और आइआइएम संस्थानों में आयोजित होने वाले कैंपस सेलेक्शन के पहले दिन ही टैलेंट को खींचकर अपने यहां ले जाने में सफल हो रही थीं। दूसरी तरफ यही कंपनियां हजारों युवाओं को डिलीवरी }वॉय से लेकर आइटी इंजीनियर और मैनेजर जैसे शानदार रोजगार भी दे रही थीं। लेकिन पिछले दिनों इन्हीं कंपनियों और आइआइटी-आइआइएम जैसे संस्थानों के बीच नौकरियों को लेकर ऐसी खींचतान हुई है, जिससे रोजगार के इस चमकदार विकल्प की कलई खुल गई है। इन कंपनियों को }लैकलिस्ट करने की पहलकदमी ने यह विचार करने को मजबूर किया है कि जिन कंपनियों की बदौलत हमारा देश रोजगार से लेकर अर्थव्यवस्था तक के मोर्चे पर ऊंची उड़ान भरने के ख्वाब देखने लगा था, कहीं उनकी बुनियाद बेहद खोखली तो नहीं है। अब खबर है कि ऐसी करीब 20 कंपनियों को तीन श्रेणियों में बांटकर उन्हें }लैकलिस्ट किया जा रहा है। पहली श्रेणी उन कंपनियों की है, जिन्होंने युवाओं को जॉब ऑफर लेटर देने के बाद प्लेसमेंट टाल दिया। दूसरी कैटिगरी में वे कंपनियां हैं जिन्होंने युवाओं के वेतन में कटौती की या फिर उनका जॉब प्रोफाइल ही बदल दिया। तीसरी श्रेणी छात्रों से जॉब ऑफर ही वापस लेने वाली कंपनियों की है। देश के यादातर आइआइटी संस्थान इसे लेकर एकमत हैं कि स्टार्टअप कंपनियों का उनके छात्रों के साथ ऐसा व्यवहार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
स्टार्टअप कंपनियों को काली सूची में डालने का यह पूरा किस्सा देश के रोजगार परिदृश्य के हिसाब से निराश करने वाला है, पर समस्या यह है कि यह तो अभी समस्या की शुरुआत है। क्योंकि जैसे-जैसे स्टार्टअप कंपनियों को जमीनी हकीकत का अहसास होगा और बाजार के कायदों और चुनौतियों के चलते उन्हें कड़ी प्रतिस्पर्धा और नाकामियों का सामना करना पड़ेगा, वे मोटे पैकेज देकर नामी संस्थानों की प्रतिभाओं को अपने यहां रखने से परहेज करने लगेंगी। यह मामला अब कहां तक पहुंचेगा, कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना तय है कि ताजा प्रकरण ने इस बारे में एक नजीर सामने रख दी है कि नामी संस्थानों और नई उभरी ई-कॉमर्स व आइटी कंपनियों के बीच कैसे झगड़े-झंझट सामने आ सकते हैं। घटनाओं की शुरुआत कुछ समय पहले ऑनलाइन शॉपिंग कराने वाली कुछ ई-कॉमर्स व आइटी कंपनियों की एकतरफा कार्रवाइयों से हुई थी। कई कंपनियों ने नामी संस्थानों से डिग्री हासिल कर चुके युवाओं को कैंपस प्लेसमेंट के जरिये चुना था और जिन्हें बाकायदा ऑफर लेटर दिए थे, उन्हें इन कंपनियों ने टरकाना शुरू कर दिया। कुछ कंपनियों में तो प्लेसमेंट के दो साल बाद भी नौजवान सिर्फ कागज पर नौकरी में थे, हकीकत में वे बेरोजगार ही थे क्योंकि कंपनी में उनकी नियुक्ति या तैनाती की तारीख आगे खिसकती जा रही थी। कुछ कंपनियां तो और आगे बढ़ गईं। उन्होंने कैंपस सेलेक्शन में चुने युवाओं को दोबारा एक सरप्राइज टेस्ट देने को कहा और उसमें फेल घोषित कर उनका जॉब ऑफर ही रद्द कर दिया। कुछ ने थोड़ा लिहाज करते हुए कहा कि वे चुने गए युवाओं को छह महीने बाद नौकरी दे पाएंगी, फिलहाल मुआवजे के तौर पर वे युवा डेढ़ लाख रुपये ले लें। युवाओं को उनकी चाल समझ में आ गई, लिहाजा उन्होंने मुआवजे की राशि ठुकरा दी और वे सड़कों पर उतरकर कंपनियों के खिलाफ नारे लगाने लगे।
हालांकि अभी यह कहना मुश्किल है कि आइआइटी कमेटी व संस्थानों द्वारा }लैकलिस्टिंग और कैंपस सेलेक्शन से फिलहाल बेदखल की गई कंपनियां इस कार्रवाई से कोई सबक लेंगी और एक बार ऑफर करने के बाद नौकरी की शर्तो आदि में कोई त}दीली आदि करने से खुद को रोक पाएंगी, क्योंकि मामला सिर्फ कैंपस प्लेसमेंट और युवाओं के रोजगार का ना होकर उन कंपनियों के वजूद का भी है जो दिनोंदिन बढ़ती प्रतिस्पर्धा और सिकुड़ते विदेशी निवेश के कारण संकट में पड़ गया है। यह सवाल बेहद महत्वपूर्ण है कि जो ई-कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों को घर बैठे भारी छूट पर शॉपिंग करा रही हैं, उन पर ऐसा कौन-सा संकट आ गया है जो वे आइआइटी-आइआइएम जैसे संस्थानों के युवाओं की नौकरी पर कैंची चलाने लगी हैं। असल में बाजार के विशेषज्ञ पिछले साल से ही इस संकट का इशारा करने लगे थे। उन्होंने चेताया था कि ऑनलाइन शॉपिंग का कारोबार बुलबुले की मानिंद जल्द ही फूटने वाला है क्योंकि इनमें पैसा लगाने वाले निवेशक अपनी पूंजी वापस मांगना शुरू कर सकते हैं, जिससे ये सारी दिक्कतें पैदा होने लगेंगी। ऐसी एक भविष्यवाणी बिड़ला समूह के एक चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने भी की थी। उन्होंने कहा था कि ऑनलाइन शॉपिंग डिस्काउंट देने वाले जिस बिजनेस मॉडल पर खड़ा हुआ है, वह यादा दिन तक चल नहीं सकता है। इसकी वजह यह है कि जिन निवेशकों की पूंजी की बदौलत ये शॉपिंग वेबसाइटें भारी छूट पर सामान बेच रही हैं, वे जल्द ही अपनी पूंजी पर रिटर्न मांगना शुरू कर सकते हैं। ऐसा हुआ, तो ऐसी ही बुरी खबरें ऑनलाइन शॉपिंग की वेबसाइट चलाने वालों और इनके जरिये नौकरी या कामधंधा पाने वालों का इंतजार करते मिलेंगी। मौजूदा माहौल को देखते हुए कहा जा सकता है कि वे आशंकाएं एक झटके की तरह हमारे सामने आ खड़ी हुई हैं।
वैसे इन हालात का एक अनुमान कुछ समय पहले एक आंकड़े से लग गया था, जब वर्ष 2014-15 में अमेजॉन, फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी शीर्ष तीन ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों का सम्मिलित घाटा 5,052 करोड़ रुपये बताया गया था। पता चला था कि इन कंपनियों को यह घाटा अपने ग्राहकों को भारी-भरकम छूट पर सामान बेचने और सामान वापसी के दौरान लाने-ले जाने के खर्च को वहन करने के कारण हुआ। हालांकि विशेषज्ञ यह भी कह रहे थे कि बाजार के प्रतिस्पर्धी माहौल में ऐसा होना स्वाभाविक है और यहां वही टिकेगा जो सबसे यादा भरोसेमंद और मजबूत होगा। तय है कि ऑनलाइन शॉपिंग के उजाले के पीछे कई तस्वीरें गहरे अंधेरे की भी हैं जो इनके भविष्य को भारी खतरे में दिखा रही हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(Dj)

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