Monday 22 August 2016

उपेक्षा की शिकार लौह महिला (सुभाष गाताडे )

इरोम शर्मिला, मणिपुर की ‘लौह महिला’ जिसने सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम यानी अफस्पा के खिलाफ सोलह साल से चला आ रहा अनशन समाप्त किया है। उसने इसका ऐलान कुछ समय पहले ही किया था कि वह नौ अगस्त को अनशन तोड़ेंगी। खबरों के मुताबिक उसने अपने दोस्त से शादी करने तथा चुनाव लड़ने की इछा जाहिर की है तथा इस जरिये संघर्ष को आगे बढ़ने का इरादा रखती है। फिलवक्त वह तमाम बातें इतिहास हो चुकी हैं कि मणिपुर की राजधानी इम्फाल से 15-16 किलोमीटर दूर मालोम नामक स्थान पर किस तरह सुरक्षा बलों की कार्रवाई के खिलाफ वह अनशन पर बैठी थी। दो नवंबर, 2000 को सुरक्षा बलों ने वहां बस स्टैंड पर अंधाधुंध गोलियां चला कर दस मासूमों को मार डाला था, जिस घटना से उद्विग्न इरोम अपने घर से सीधे मालोम बस स्टैंड पहुंची थी, जहां के रक्त के दाग अभी ठीक से सूखे भी नहीं थे। और वहीं पास बैठ कर उसने अपनी भूख हड़ताल की शुरुआत की थी। एक तटस्थ नजरिये से देखें तो यह समझा जा सकता है कि इरोम का यह फैसला अचानक नहीं आया है। इरोम के साथ नजदीकी से काम करनेवाले बताते हैं कि भले ही वह इस संघर्ष की आईकन बनी हो, जीते जी उसका संघर्ष दंतकथाओं में शुमार हुआ हो, देश के बाकी हिस्से में लोगों ने उससे प्रेरणा ली हो, मगर हाल के वर्षो में मणिपुर के अंदर उसके प्रति समर्थन में लगातार कमी दिखाई दी है। देश के राजनीतिक माहौल में आए बदलाव ने भी निश्चित ही इस फैसले को प्रभावित किया है।
भले ही यह कानून वापस न हुआ हो, मगर पिछले माह के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को मिले असीमित अधिकारों की बात को कम से कम नए सिरे से सूर्खियों में भी ला दिया है। इस कानून के खिलाफ जो संघर्ष जारी रहा है, जिन फर्जी मुठभेड़ों का सवाल उठता रहा है, उसे सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है और जांच के आदेश दिए हैं। सर्वोच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और यू यू ललित की द्विसदस्यीय पीठ के 85 पेज के फैसले ने इस इलाके में सुरक्षा बलों द्वारा अंजाम दी गई इन फर्जी मुठभेड़ों के सवाल पर मुहर लगाई है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत याचिका-जिस पर उसने अपना फैसला सुनाया-उन परिवारजनों द्वारा डाली गई थी जिनके आत्मीय इसी तरह फर्जी मुठभेड़ांे में मार दिए गए हैं, जिन्होंने अपने आप को एक संस्था ‘एक्स्ट्रा जुडिशियल एक्जिक्यूशन विक्टिम फैमिलीज एसोसिएशन’ के नाम पर संगठित किया है। प्रस्तुत संस्था की तरफ से जिन 1528 हत्याओं की सूची अदालत को सौंपी गई है उन ‘आरोपों की सचाई को स्वीकारते हुए’ अदालत ने इन फर्जी मुठभेड़ों की नए सिरे से जांच करने का आदेश दिया है। आला अदालत का फैसला इस मामले में ऐतिहासिक रहा है कि उसने सरकार की इन तर्को को सिरे से खारिज किया कि अगर सुरक्षा बलों को दंडमुक्ति प्रदान नहीं की गई तो उसका उन पर विपरीत असर पड़ेगा, उनका ‘मोराल डाउन’ हो सकता है। उलटे उसने केंद्र सरकार से इस स्थिति पर आत्ममंथन करने की सलाह दी है कि जनतंत्र में साधारण नागरिक को अगर बंदूक के साये में रहना पड़े तो उसका उस पर कितना विपरीत असर पड़ सकता है।
कहने का तात्पर्य सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के खिलाफ जारी संघर्ष को एक मुकाम पर पहुंचा कर और बदली परिस्थितियों में बदली रणनीति की आवश्यकता को समझ कर इरोम ने अपने अनशन को वापस लिया है। अपना अनशन समाप्त करने के इरोम के फैसले के अपने तर्क देखे जा सकते हैं, समङो जा सकते हैं, लेकिन यह फैसला मणिपुर की जनता को रास नहीं आ रहा है। वह उसे उसी रूप में देखना चाहते रहे हैं, जैसी छवि बहुचर्चित रही है। अब जो खबरें छन-छन कर सामने आ रही हैं वह बताती हैं कि इरोम के इस फैसले से न केवल लोगों का एक हिस्सा गुस्से में है, यहां तक कि उसकी मां तथा अन्य आत्मीय जन भी खुश नहीं हैं। कुछ लोग इस वजह से भी नाराज बताए जाते हैं कि उन लोगों ने इरोम का तहेदिल से साथ दिया और आज भी दे रहे हैं, मगर इस फैसले की घड़ी में उसने उनसे सलाह मशविरा करना भी मुनासिब नहीं समझा।
कुछ कट्टर समूहों को यह भी लगता है कि उसने आंदोलन के साथ द्रोह किया है। यह अकारण नहीं कि अनशन समाप्त करने के उसके ऐलान के बाद मणिपुर में सक्रिय दो विद्रोही गुटों-कांगलाई यावोल कन्ना लूप और कांगलाई पाक कम्युनिस्ट पार्टी ने उसे एक तरह से अनशन वापस न लेने का अनुरोध किया था और संकेतों में यह धमकी दी थी कि अगर वह ऐसा करेगी तो वे उसे समाप्त भी कर सकते हैं। उनके अपने तर्क हैं-उनका मानना है कि एक ऐसे समय में जबकि सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम के खिलाफ संघर्ष नहीं हो पा रहा है उस वक्त इस मसले पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करने में उसका अनशन एक अछा प्रतीक रहा है और अब इरोम के ‘हट जाने से’ वह ध्यान हट जाएगा। उन्हें यह भी लगता है कि मणिपुर में अंतरनस्लीय विवाह करने या संमिश्र विवाह करने का जो प्रचलन बढ़ रहा है-जिससे देशज आंदोलन की पहचान मिटने की संभावना बन रही है-उसे एक नई गति मिलेगी, अगर इरोम भी गोवा में जन्मे ब्रिटिश नागरिक से शादी करेगी।
शायद यही असंतोष अंदर ही अंदर खदबदा रहा था जो अनशन समाप्ति की घोषणा तथा मीडिया के सामने उसके अमल के बाद बाकायदा उजागर हुआ, जो किसी के लिए भी अप्रत्याशित था। प्रेस कांफ्रेंस समाप्त होने के बाद वह पुलिस के वाहन में अपने उस दोस्त के घर जाने के लिए निकली, जिसने अपने यहां टिकने का उसे न्यौता दिया था। बाद में पता चला कि उस कालोनी के गेट इरोम के लिए बंद कर दिए गए हैं, यहां तक कि स्थानीय इस्कॉन मंदिर ने भी उसे शरण देने से इंकार किया। अंतत: उसे जवाहरलाल नेहरू अस्पताल के उसी कमरे में लौटना पड़ा जहां कड़ी सुरक्षा के बीच वह अपने इस अनशन को चला रही थी। ताजा समाचार के मुताबिक स्थानीय रेडक्रॉस ने उसे यह ऑफर दिया है कि वह उनके यहां रह सकती है, जब तक उसकी इच्छा हो वह वहां निवास कर सकती है।
इरोम के ताजा फैसले से सहमति-असहमति अपनी जगह हो सकती है, मगर एक वक्त महामानवी के तौर पर उसका महिमामंडन और अब खलनायिका के तौर पर उसे देखना या उससे यथासंभव दूरी बनाने जैसा लोगों का पेण्डुलम नुमा व्यवहार, अपने समाज को लेकर गहरे प्रश्न खड़ा करता है। क्या उसे अदद वीरों/वीरांगनाओं की हमेशा तलाश रहती है जिनका वह गुणगान करे, जिनके नाम पर वह कुर्बान होने की या मर मिटने की बात करे और जिस क्षण वही वीरांगना उनकी छवि की वीरांगना नहीं रहती या वीर उनकी कल्पना का रणबांकुरा साबित नहीं होता, तो उसे खारिज करने में उसे वक्त नहीं लगता। यह भी दिखता है कि आजादी के सत्तर साल बाद भी अब भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संकल्पना का उसके अंदर गहराई से स्वीकार नहीं हुआ है, वह व्यक्ति को भी समुदाय के साथ पूरी तरह से नत्थी कर देता है और इस बात की चिंता नहीं करता कि उसकी अपनी निजता, अपनी आकांक्षाओं का, कामनाओं का वह किस कदर हनन कर रहा है।
लाजिम है कि इरोम शर्मिला की कुछ मानवीय हसरतें उसे आगबबूला कर देती हैं और वह फिर कुछ भी करने को तैयार हो जाता है। निश्चित ही लोगों के इस व्यवहार से-जिन्होंने उसे इतने सालों तक ‘लौह महिला’ के तौर पर देखा, सराहा, मगर जो उसके इस ताजा फैसले से क्षु}ध हैं-इरोम बेहद व्यथित हैं। एक पत्रकार से बात करते हुए उसने कहा कि ‘लोगों ने उसके इस कदम को गलत समझा। मैंने संघर्ष का परित्याग नहीं किया है, बस अपनी रणनीति बदली है। मैं चाहती हूं कि वह मुङो जानें। एक निरपराध व्यक्ति के प्रति उनकी तीखी प्रतिक्रिया-वह बहुत कठोर हैं।’ और वह मौन धारण कर लेती है।(DJ)

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