Monday 22 August 2016

अंगदान दिवस : आंदोलन से बनेगी बात (आर.के. सिन्हा)

क्रि केटर गौतम गंभीर ने अपनी मृत्यु के बाद अपने अंगों को दान देने का फैसला किया है। गंभीर ने कहा, ‘‘हजारों लोग हर साल अंग न मिलने की वजह से मर जाते हैं। मुझे लगता है कि अंगदान देने से हम इस कमी को कुछ हद तक पूरा कर सकते हैं, जिससे समाज का भला होगा। मैं मौत के बाद अपने सभी अंगों को दान करने का वादा करता हूं। इसके साथ ही मैं अपने टीम के खिलाड़ियों के अलावा सबसे ऐसा ही करने की अपील करूंगा।’अंगदान को लेकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। इसे आंदोलन का रूप दिया जाना चाहिए। गंभीर की ही तरह से आनंद गांधी की फिल्म ‘‘शिप ऑफ थीसस’ से प्रेरणा लेने के बाद आमिर खान की पत्नी और निर्देशक किरण राव ने भी अंग दान करने की घोषणा की है। उसने अपने एक हालिया इंटरव्यू में कहा कि पहले वह सोचती थी कि हम केवल अपनी आंखें दान कर सकते हैं। लेकिन तय यह है कि हमारे शरीर का हर अंग किसी का जीवन बचाने के काम आ सकता है। मैंने स्वयं 2010 में ही गंगाराम अस्पताल, दिल्ली को अपने सभी अंगों को दान करने का संकल्प किया है। स्वास्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में हर साल करीब दो लाख गुर्दे दान करने की जरूरत होती है। मगर मौजूदा समय में 7,000-8,000 से भी कम गुर्दे मिल पाते हैं। भारत में 50,000 लोगों को दिल प्रतिरोपण की आवश्यकता है, जबकि उपलब्धता केवल 10 से 15 की ही है। दूसरी तरफ प्रतिवर्ष 50000 लोगों को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है, जबकि 700 लोगों को ही डोनर मिल पाते हैं। भारत में प्रति दस लाख व्यक्ति में अंगदान करने वालों की संख्या सिर्फ 0.8 है। विकसित देशों, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड्स और जर्मनी में यह संख्या औसतन 10 से 30 के बीच है। स्पेन में प्रति दस लाख लोगों में 35.1 अंगदान करते हैं। हमारे देश में अंगदाताओं की संख्या के इस कदर होने के पीछे कई कारण हैं, जैसे सही जानकारी का अभाव, धार्मिंक मान्यताएं, सांस्कृतिक भ्रांतियां और पूर्वाग्रह। किंतु यह भी सच है कि भारत मे अंगदान की परंपरा महर्षि दधीचि के समय से चली आ रही है। पुराणों की कथा के अनुसार देव-दानव संग्राम में देवता बार-बार हार रहे थे और ऐसा लग रहा था कि दानव ही अंतत: विजयी हो जाएंगे। घबराए हुए देवता सहायता के लिए ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने कहा कि पृवी पर एक ऋषि रहते हैं-दधीचि। उनकी तपस्या से उनकी हड्डियों में अनंत बल का प्रादुर्भाव हुआ है। उनसे, इनकी हड्डियों का दान मांगो। उससे ‘‘वग्र’ नामक शस्त्र बनेगा, वह शस्त्र दानवों को परास्त कर देवों को विजयी बनाएगा। इंद्र ने दधीचि से उनकी हड्डियां मांगी। पुलकित दधीचि ने ध्यानस्थ हो प्राण त्याग दिए। उनकी अस्थियों से बने वज्र ने देवताओं को विजय दिलवाई। पर इसी भारत में हर साल लाखों लोग किडनी, लीवर, हृदय और शरीर के अन्य अंगों के काम नहीं करने से कम उम्र में ही जान गंवा देते हैं या दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। अंगदान से कइयों की जिंदगी बचाई जा सकती है। मगर, अंगदान के प्रति लोगों में न सिर्फ जागरूकता की कमी है, बल्कि इसके प्रति समाज में भ्रांतियां भी हैं। इन्हीं भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता है। सरकार ने अंगदान को बढ़ावा देने के लिए कुछ निर्णायक पहल किए हैं और सभी प्रमुख सरकारी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण की सुविधा शुरू की है। बेशक अंगदान मामले में सरकार की ओर से विलंब हुआ है। परंतु अब स्वास्य मंत्रालय सरकारी अस्पतालों में अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण में प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है। भारत में स्थिति चिंताजनक इसलिए भी है, क्योंकि ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है कि अगर वं अंगदान करना चाहते हैं तो कहां जाएं और किससे संपर्क करें? मेडिकल साइंस के अनुसार जीवित व्यक्ति के दो गुदरे में से एक दान में दिया जा सकता है। जबकि, आंत और लीवर के अंश को किसी की जान बचाने के लिए दिया जा सकता है क्योंकि कटे हुए आंत और लीवर अपने आप बढ़ जाते हैं। एक मृत व्यक्ति द्वारा किए गए अंगदान से लगभग सात लोगोें को जीवनदान मिल सकता है। अंगदान में एक बड़ी समस्या अस्पतालों द्वारा समय से रोगी को ब्रेन डेड घोषित न कर पाना भी है, जिसके बाद मृतक के अंग खराब होने लगते हैं। कई देशों में अंगदान ऐच्छिक न होकर अनिवार्य है। सिंगापुर में हर नागरिक को स्वाभाविक अंगदाता मान लिया जाता है और ‘‘ब्रेन डेड’ घोषित किए जाने पर अस्पताल और सरकार का उसके अंगों पर अधिकार होता है। भारत में 1994 में मानवीय अंगों के प्रत्यारोपण के लिए कानून बनाया गया था, ताकि विभिन्न किस्म के अंगदान और प्रत्यारोपण को सुचारु रूप दिया जा सके। हालांकि, हमारे यहां अंगदान को लेकर तमाम अड़चने हैं, तो भी कई परिवार इस बाबत शानदार उदाहरण पेश कर रहे हैं। बेशक, एक इंसान के शरीर के किसी अंग को किसी दूसरे इंसान में प्रत्यारोपित करना मेडिकल साइंस की दुनिया का चमत्कार है। इसके चलते हजारों-लाखों लोग मौत को हराने में सफल हो गए। पर, अगर बात भारत की करें तो अभी हम कमजोर साबित हो रहे हैं। भारत में अंगदान और देह दान को लेकर माहौल नहीं बन पा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक,भारत में हर साल करीब दो लाख लोगों को अंग प्रत्यारोपण की दरकार होती है। इनमें से ज्यादातर रोगी कम उम्र के होते हैं। इनकी जीने की उम्मीद इस बात पर निर्भर करती है कि इन्हें कोई कब अंगदान करेगा। भारत में 1994 में सरकार ने ब्रेनडेड को अंगदान की स्वीकृति दी। मगर, सच ये है कि बीमार लोगों की अंगों की जरूरत आज भी अंगदान करने वालों की संख्या से कहीं ज्यादा है। अंगदान की इसी बढ़ती जरूरत को समझते हुए ‘‘ब्रेनडेड’ इंसान के अंगदान करने के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। इस लिहाज से जागरूकता बढ़ाने में सेलिब्रेटीज और फिल्मों की अहम भूमिका हो सकती है।(RS)

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