Monday 22 August 2016

ढुलाई क्रांति का आगाज (रमेश कुमार दुबे)

आमतौर पर बनारस के घाट जीवन और मोक्ष के प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन 12 अगस्त को बनारस का रामघाट देश के माल परिवहन क्षेत्र में होने वाली क्रांति का गवाह बना। केंद्रीय जहाजरानी व सड़क परिवहन मंत्री ने न सिर्फ आंतरिक जलमार्ग के नए टर्मिनल का शिलान्यास किया, बल्कि बनारस से हल्दिया के बीच चलने वाले दो मालवाहक जहाजों को हरी झंडी भी दिखाई। आगे चलकर इस जलमार्ग को इलाहाबाद व कानपुर तक ले जाया जाएगा। देश के राष्ट्रीय जलमार्ग-1 पर तीन स्थानों यानी वाराणसी, झारखंड के साहेबगंज व हल्दिया में टर्मिनल बनाया जाएगा। इस जलमार्ग के पूरी तरह चालू होने पर न सिर्फ पूवरेत्तर रायों, बल्कि बांग्लादेश व म्यांमार तक माल परिवहन होगा। सरकार की योजना देश की 11 नदियों में माल परिवहन शुरू करने की है, ताकि 2018 तक कुल माल भाड़े में जलमार्ग का हिस्सा बढ़कर सात फीसद तक पहुंच जाए, जो कि मौजूदा समय में 3.6 फीसद है। इससे न सिर्फ माल ढुलाई लागत में कमी आएगी, बल्कि विदेशी बाजारों में भारतीय सामान कीमत के मामले में प्रतिस्पर्धा में नहीं पिछड़ेंगे।
गौरतलब है कि उदारीकरण के दौर में जिस तरह विदेशी सामान भारतीय बाजार में छा गए उस तरह विदेशी बाजारों में भारतीय सामानों की धूम नहीं मची। इसका कारण है कि हमारे यहां लागत यादा आती है जिससे हमारे सामान प्रतिस्पर्धा में पिछड़ जाते हैं। बिजली, सड़क, जटिल कारोबारी माहौल, कौशल की कमी, खराब कानून व्यवस्था आदि के चलते हम देश में मौजूद सस्ते श्रम का पूरा फायदा उठाने में नाकाम रहे हैं। अब मोदी सरकार मेक इन इंडिया पहल के तहत देश को विनिर्माण धुरी बनाने के लिए इन बाधाओं को दूर कर रही है।
सरकार का सबसे यादा जोर लॉजिस्टिक्स (संचालन एवं माल व्यवस्था) लागत घटाने पर है, क्योंकि इसके चलते भारतीय सामान बाजार में पहुंचते-पहुंचते महंगे हो जाते हैं। उदाहरण के लिए किसी सामान की दिल्ली से मुंबई तक की परिवहन लागत मुंबई से लंदन तक के माल भाड़े से यादा होती है। रेल, सड़क, हवाई व समुद्री परिवहन में समन्वय की कमी के कारण ढुलाई में देरी होती है। जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह, मुंबई देश का सबसे बड़ा कंटेनर पोर्ट है जो 55 फीसद राष्ट्रीय ट्रैफिक हैंडल करता है, लेकिन यहां पर भंडारण सुविधा, उपकरणों व कनेक्टिविटी की भारी कमी है। देश में 12 बड़े बंदरगाह हैं, लेकिन कोई भी बंदरगाह कोलंबो, दुबई, सिंगापुर की भाति बड़े लोड हैंडल नहीं कर पाता है। इन्हीं कारणों से माल ढुलाई में सड़क परिवहन का हिस्सा बढ़ता जा रहा है जो महंगा होने के कारण लागत बढ़ा देता है। उदाहरण के लिए 1980 के दशक में माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी 60 फीसद थी, जो कि 90 के दशक में 48 फीसद और अब घटकर 31 फीसद रह गई। देश की सड़कों पर वाहनों की बढ़ती भीड़ के कारण यहां ट्रक औसतन 20 से 25 किलोमीटर की रफ्तार से चलते हैं और एक दिन में 250 से 300 किलोमीटर की दूरी तय कर पाते हैं। इसके विपरीत विकसित देशों में ट्रक रोजाना 700 से 800 किलोमीटर दूरी तय करते हैं।
भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 14 फीसद है, जबकि विकसित देशों में यह सात फीसद है। भारी-भरकम लॉजिस्टिक्स खर्च की वजह से भारतीय कंपनियां अपने कारोबार का वैश्विक विस्तार नहीं कर पा रही हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि उदारीकरण के दौर में कारोबार में बढ़ोतोरी के बावजूद लॉजिस्टिक्स क्षमता में सुधार के उपाय नहीं हुए। विश्व बैंक की लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेस रिपोर्ट 2014 में 160 देशों में भारत 54वें स्थान पर है। दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका 34वें, चिली 42वें, पनामा 45वें और वियतनाम 48वें पायदान पर है। एसोचैम के अध्ययन के मुताबिक यदि भारत अपनी लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी के 14 फीसद से घटकार नौ फीसद कर ले तो हर साल 50 अरब डॉलर की बचत होने लगेगी।
सरकार लॉजिस्टिक्स लागत कम करने के लिए बहुआयामी उपाय कर रही है। 10 लाख करोड़ रुपये के निवेश से सागरमाला परियोजना शुरू की गई है। इसके तहत 37 आधारभूत ढांचा क्लस्टरों का विकास किया जाएगा। आने वाले 10 वर्षो में सरकार पोत एवं बंदरगाह आधारभूत ढांचे के विकास पर चार लाख करोड़ रुपये निवेश करेगी। सागरमाला परियोजना का लक्ष्य है लॉजिस्टिक्स लागत को जीडीपी के 14 फीसद से घटाकर 10 फीसद करना। देश के अंदरूनी इलाकों में आधारभूत ढांचा बेहतर करके लॉजिस्टिक्स लागत कम करने की नीति बनाई जा रही है। शहर, रेलवे यार्ड व बंदरगाह से गोदामों तक माल ढुलाई में जाम एक बड़ी समस्या है। इसे देखते हुए गोदामों को शहर से बाहर रिंग रोड पर स्थानांतरित किया जाएगा। केंद्र सरकार ने बंदरगाहों की मौजूदा क्षमता 140 करोड़ टन को 2025 तक बढ़ाकर 300 करोड़ टन करने की योजना तैयार की है।
लॉजिस्टिक्स लागत घटाने के लिए सरकार जलमार्ग के जरिये माल ढुलाई पर बल दे रही है। सरकार चाहती है कि जिस तरह चीन, जापान व कोरिया की तरक्की में जलमार्ग ढुलाई का योगदान रहा है उसी तरह की घटना भारत में भी घटे। गौरतलब है कि जलमार्ग से ढुलाई न केवल सस्ती पड़ती है, बल्कि इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता है। जहां प्रति किलोमीटर माल ढुलाई की लागत सड़क से डेढ़ रुपये व रेल से एक रुपये आती है वहीं जल मार्ग से यह लागत महज 25 पैसा आती है। स्थापना व रखरखाव में भी जलमार्ग को कोई तोड़ नहीं है। एक किलोमीटर रेल मार्ग बनाने में जहां एक से डेढ़ करोड़ रुपये लगते हैं वहीं सड़क बनाने में 60 से 75 लाख रुपये खर्च होते हैं, लेकिन इतनी ही दूरी के जलमार्ग के विकास पर मात्र 10 लाख रुपयों की जरूरत पड़ती है। सबसे बढ़कर जलमार्गो के रखरखाव का खर्च न के बराबर होता है। अनाज, खाद्य तेल, दालों, कोयला आदि की कम लागत पर ढुलाई होने पर इसका असर महंगाई में कमी के रूप में सामने आएगा। स्पष्ट है, बनारस से शुरू हुई ढुलाई क्रांति के परवान चढ़ने पर कई समस्याओं का अपने आप समाधान हो जाएगा।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(DJ)

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