Monday 22 August 2016

टल सकता था भारत विभाजन (कुलदीप नैयर)

आजादी का पर्व मनाने के साथ ही हमें यह भी जानना चाहिए कि अंग्रेज इसके लिए जाने जाते रहे हैं कि जब उन्हें जबरदस्ती या किसी अन्य मजबूरी में अपना उपनिवेश छोड़ना पड़ा तो वे उसकी स्थिति गड़बड़ करके ही उसे छोड़ते हैं। उन्होंने एक तरीका यह अपनाया कि उस देश को बांट दिया जिस पर उनका शासन था। उन्होंने आयरलैंड, फलस्तीन-इजरायल और बेशक भारत में यही किया। मैं लार्ड रेडक्लिफ जिन्होंने भारत को दो देश-भारत और पाकिस्तान में बांटने वाली रेखा खींची थी, से अपनी बातचीत को आज भी याद करता हूं। अंतिम वायसराय माउंटबेटन उन्हें ब्रिटेन के वकील-समुदाय से चुना था और उपमहाद्वीप को बांटने के लिए हवाई उन्हें हवाईजहाज से भारत लाया गया था। इसके पहले रेडक्लिफ ने कभी भारत में पैर नहीं रखा था और न ही वह इस देश के बारे में यादा जानते थे। रेडिक्लिफ ने मुङो बताया कि माउंटबेटन ने उन्हें यह बताते हुए कि वह क्या चाहते थे, चेतावनी दी थी कि यह काम कठिन है और शायद वह इसे नहीं भी कर पाएं।
लंदन के एक नामी वकील के लिए रातोंरात अंतरराष्ट्रीय राजनेता बन जाने का विचार इतना आकर्षक था जिसे ठुकराया नहीं जा सकता था। रेडक्लिफ ने जिलों के मानचित्र मांगे, लेकिन एक भी उपल}ध नहीं था। उन्हें जो कुछ मिला वह साधारण नक्शा था जो ऑफिस और शिक्षण संस्थानों की दीवालों पर टंगा रहता था। रेडक्लिफ ने उसके आधार पर गणना की और एक अस्थायी रेखा मानचित्र पर ही खींच दी। उन्होंने मुङो बताया कि जिस आधार पर उन्होंने रेखा खींची थी उसे पर लाहौर भारत को दिया था। फिर उन्हें लगा कि वह पाकिस्तान को एक महत्वपूर्ण शहर से वंचित कर देंगे। इसलिए उसे ध्यान में रखते हुए लाहौर पाकिस्तान को स्थानांतरित कर दिया। इस धरोहर को गंवाने के लिए उस समय के पूर्वी पंजाब के लोगों ने उन्हें आज तक माफ नहीं किया। रेडक्लिफ ने 40 हजार रुपये की अपनी फीस, जो वायसराय ने उन्हें देने का वायदा किया था, कभी नहीं ली, क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि पलायन में जान गंवाने वाले दस लाख लोगों के लहू का बोझ उनके जमीर पर है। बंटवारे के बाद उन्होंने भारत का दौरा भी नहीं किया। लंदन में उनकी मौत हुई। उन्हें कभी कोई सम्मान नहीं मिला।
कई साल बाद पाकिस्तान के निर्माता कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना से उनके नौ सैनिक सहायक जिसने बंटवारे में अपना माता-पिता खो दिया था, ने गुस्से में सवाल किया ‘‘क्या पाकिस्तान हासिल करने लायक कोई अछी चीज थी?’’ बूढ़े जिन्ना कुछ देर के लिए खामोश रहे और फिर उन्होंने जवाब दिया, ‘‘नौजवान मुङो नहीं पता। यह सिर्फ भावी पीढ़ी ही बताएगी।’’ शायद अभी कोई फैसला सुनाना जल्दबाजी होगी, लेकिन एक चीज तो साफ है कि कायदे आजम ने दो देशों को बांटने वाली रेखा धर्म के आधार पर खींची थी। यह एक विडंबना ही है, क्योंकि जिन्ना ने कभी इसकी परवाह नहीं की वह क्या खाते हैं या क्या पीते हैं? यहां तक कि उन्होंने उर्दू को सरकारी भाषा बनाया, लेकिन वह खुद इसके कुछ श}द रुक-रुक कर बोल पाते थे। जब घटनाएं इस तरह तेजी से बढ़ रही थीं कि बंटवारे के अलावा कोई उपाय सामने नहीं रह गया था, महात्मा गांधी ने जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल को सलाह दी थी के वे दोनों जिन्ना के सामने संयुक्त भारत के प्रधानमंत्री पद का ऑफर रखें। दोनों भयभीत हो गए, क्योंकि दोनों ने अनेक सालों से इस पद पर अपनी नजरें टिका रखी थीं। इससे यही जाहिर होता है कि इसके बावजूद कि वे स्वतंत्रता आंदोलन की आग में तपे थे, पद के लालच से ऊपर नहीं उठ पाए थे।
वास्तव में बंटवारे का फामरूला नेहरू और पटेल ने स्वीकार किया था, महात्मा गांधी ने नहीं। जब माउंटबेटन ने बंटवारे का फामरूला तैयार कर लिया तो उन्होंने पहले महात्मा गांधी को बुलाया। गांधी ‘बंटवारा’ श}द सुनना नहीं चाहते थे और वह तब कमरे से बाहर निकल गए जब माउंटबेटन ने इसका नाम लिया, लेकिन पटेल और नेहरू ने बंटवारा स्वीकार कर लिया और खुद को समझा लिया कि उनकी जिंदगी के यादा दिन नहीं बचे हैं और देश का निर्माण करना है तो उन्हें माउंटबेटन की पेशकश स्वीकार कर लेनी चाहिए। जिन्हें बहुत यादा दानव के रूप में चित्रित किया गया वह जिन्ना उस पाकिस्तान से खुश नहीं थे जो उन्हें मिला था। वह उसे ‘कीड़े से कुतरा हुआ’ पाकिस्तान कहते थे, क्योंकि उनके सपनों का पाकिस्तान कम से कम पेशावर से दिल्ली तक फैला हुआ होता, लेकिन उनके सामने कोई विकल्प नहीं था। अंग्रेजों ने उनके सामने जो पेशकश की थी वह इतनी ही थी। वह इतने नाराज थे कि जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली के कहने से माउंटबेटन ने उन्हें दो नए स्वतंत्र देशों के बीच कोई जोड़ने वाली कड़ी रखने की सलाह दी तो जिन्ना का जवाब था, ‘‘मैं उन भारतीयों पर विश्वास नहीं करता।’’ जिन्ना ने माउंटबेटन को दोनों देशों का साझा गवर्नर जनरल बनाने का सुझाव भी स्वीकार नहीं किया। कुछ लोग आज तक मानते हैं कि जिन्ना एक अछे प्रधानमंत्री साबित होते और इस तरह भारत भी एक रह जाता। चूंकि पाकिस्तान एक ही व्यक्ति का किया-धरा था इसलिए उस देश का विचार उन्हीं के साथ खत्म हो जाता। उस समय तक किसी को पता नहीं था कि जिन्ना को घातक कैंसर था। यह संदेह किया जाता है कि ब्रिटिश जानते थे और उन्हें सिर्फ कुछ समय तक इंतजार करना था जिन्ना के दृश्य से गायब होने का।
नेहरू की यह भविष्यवाणी कि ‘पाकिस्तान यादा समय तक नहीं टिकेगा’ का संबंध जिन्ना की छिपी बीमारी से नहीं था। उनके और कांग्रेस के शीर्ष के नेताओं का विचार था कि पाकिस्तान आर्थिक रूप से टिकने लायक नहीं है। नेहरू या कांग्रेस यह कभी जान नहीं पाए कि विंस्टन चर्चिल ने जिन्ना से वायदा किया था कि वह जिन्ना के सफल होने और पाकिस्तान का बनना सुनिश्चित करेंगे। चर्चिल को हिंदुओं से पागलपन की हद तक नफरत थी। उन्होंने कहा था कि वह इस अनेक जुबान वाले धर्म को समझ नहीं पाए। इसकी तुलना में इस्लाम कितना सरल और आसानी से समझने लायक है। उनके दिमाग में सामरिक मामले भी थे। पाकिस्तान भौगोलिक रूप से ऐसी जगह पर था कि वह एक तरफ तेल-संपन्न इस्लामिक दुनिया और दूसरी तरफ विशाल सोवियत यूनियन का द्वार खोलता था। पाकिस्तान का आकर्षण काबू पाने लायक नहीं था।
अनेक सालों बाद जब मैं लंदन में रेडक्लिफ से मिला तो वह ब्रांड स्ट्रीट के संपन्न इलाके के एक फ्लैट में रहते थे। मेरे लिए यह सोचना स्वाभाविक था कि उनके इर्द-गिर्द कुछ नौकर होंगे। मुङो आश्चर्य हुआ जब उन्होंने खुद ही दरवाजा खोला और चाय बनाने के लिए खुद ही केतली लगाई। वह पाकिस्तान और अपनी जिम्मेदारी के बारे में बात करने में हिचकते थे, लेकिन जब मैं आमने-सामने था तो उन्हें जवाब देना पड़ा। उनके चेहरे पर हर जगह अफसोस लिखा था और वह ऐसे आदमी लगे जिसे महसूस हो रहा था कि बंटवारे के समय हुई हत्याएं उनकी जमीर पर बोझ बनी हुए थीं।
(लेखक जाने-माने स्तंभकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)(DJ)

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