Friday 12 August 2016

अस्थायी अनुच्छेद पर विचार का वक्त डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

जम्मू-कश्मीर से संबंधित संविधान का अनुछेद 370 सीमित अवधि के लिए बनाया गया अस्थायी अनुबंध है। जब यह घोषित तौर पर अस्थायी है तो फिर उसे संवैधानिक तरीके से हटाया जा सकता है। संविधान में जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा माना गया। अनुछेद 370 इसका अतिक्रमण नहीं कर सकता। अस्थायी अनुछेद केवल प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संविधान में शामिल किया गया था। अनुछेद 370 के तहत केंद्र ने अनेक कार्यकारी आदेश जारी किए। 1980 से 1989 तक वहां राष्ट्रपति शासन रहा। इसे कार्यकारी आदेश के द्वारा ही बढ़ाया जाता रहा था। 30 जुलाई 1986 को इसी अनुछेद के तहत राष्ट्रपति ने कार्यकारी आदेश पारित किया था। इसके तहत कश्मीर पर भी अनुछेद 249 प्रभावी हुआ। संसद को इस राय के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिला। कार्यकारी आदेश राष्ट्रपति की बड़ी संवैधानिक ताकत है। जम्मी-कश्मीर के भारत संघ में विलय संबंधी पत्र में रक्षा, विदेश और संचार विषय शामिल थे। इस मामले से जुड़े सोलह विषयों की एक अनुसूची तैयार की गयी थी। इसके अलावा संघीय चुनाव जैसे चार विषय भी जोड़े गए थे। 5 मार्च 1949 को महाराजा हरि सिंह ने संविधान निर्माण हेतु नेशनल असेंबली के गठन का आदेश दिया था। संविधान सभा के चुनाव की घोषणा मई 1951 में की गई। जम्मू-कश्मीर को शासन के लिए भारतीय संविधान के प्रावधानों से उन्मुक्ति प्रदान नहीं की गयी है। संविधान सभा संघ सूची के बाहर के जम्मू एवं कश्मीर संबंधित विषयों के निर्धारण तक सीमित थी। संविधानसभा विलय पर विचार हेतु भी नहीं बनी थी। 17 नवंबर 1956 को संविधान सभा विघटित हुई थी। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि 1952 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और शेख अ}दुल्ला के बीच हुए समझौते का कोई संवैधानिक या वैधानिक महत्व नहीं था, क्योंकि शेख अ}दुल्ला के पास महाराजा और उसके बाद रेजीडेंट बने कर्ण सिंह का कोई अनुमति या अधिकार पत्र नहीं था। संविधान के 395 में से 260 अनुछेद जम्मू कश्मीर पर लागू कर दिए गए हैं। संघ सूची के 97 में से 94 विषय और समवर्त्ती सूची के 47 में से 26 विषय कश्मीर में लागू हैं। भारतीय संविधान के अनुछेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है, जबकि जम्मू कश्मीर संविधान के अनुछेद 92 के तहत रायपाल शासन का प्रावधान किया गया है। 10 अप्रैल 1965 को राय संविधान में छठवां संशोधन किया गया। इसके अनुसार सदर-ए-रियासत की जगह रायपाल की नियुक्ति होने का रास्ता साफ हुआ। इसके पहले सदर-ए-रियासत का चुनाव राय विधानसभा करती थी। 9 अगस्त 1953 को सदर-ए-रियासत ने संविधान सभा को विधानसभा नाम दिया। बख्शी गुलाम मोहम्मद को वजीर-ए-आजम या प्रधानमंत्री बनाया गया। संविधान सभा में गोपाल स्वामी अयंगर और मौलाना हसरत मोहानी के अलावा अन्य कोई सदस्य अनुछेद 370 की बहस में शामिल नहीं हुआ। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर से चुने गए चारों सदस्यों ने उपस्थित रहने के बावजूद बहस में हस्तक्षेप नहीं किया। ये सदस्य थे शेख अ}दुल्ला, मिर्जा मोहम्मद अफजल बेग, मौलाना मोहम्मद सईद मसूदी और मोती राम बगड़ा। संविधान सभा के गठन में भी धांधली के आरोप लगे थे। विपक्षी दलों के सभी उम्मीदवारों के आवेदन रद्द कर दिए गए थे। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में गोपाल स्वामी अयंगर ने यह मुद्दा उठाया, लेकिन वह इस पर अकेले पड़ गए। अ}दुल कलाम आजाद ने उनका विरोध करने वालों को चुप करा दिया। नेहरू जी बैठक के दौरान विदेश यात्रा पर चले गए। सरदार पटेल ने इस अनुच्छेद को शामिल कराया। जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान अनुछेद 370 का ही परिणाम है। इसके कारण पश्चिम पाकिस्तान से आए शरणार्थी आज सत्तर वर्षो बाद भी नागरिक अधिकारों से वंचित हैं। भारतीय दंड संहिता की जगह अलग पीनल कोड लागू है। पंचायती राज संशोधन कानून यहां लागू नहीं है। कश्मीर के लोग भारत में जमीन खरीद सकते हैं, लेकिन शेष भारत के लोग वहां जमीन नहीं ले सकते। जम्मू-लद्दाख के लोगों के विरोध के बावजूद शेख अ}दुल्ला को नेता क्यों माना गया? जाहिर है अनुछेद 370 से जम्मू-कश्मीर का नुकसान हुआ है। इसको राष्ट्रपति के कार्यकारी आदेश मात्र से हटाया जा सकता है। एकात्मकता में बाधक इस अनुछेद को हटाने पर विचार होना चाहिए
source of new danik jagan newspaper

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