Monday 14 November 2016

खारिज नहीं कर सकते रपट (आलोक पुराणिक)

कारोबारी आसानी के मामले में भारत का नंबर 130 वां है। यानी इसके पीछे भी साठ देश हैं, जहां कारोबार करना भारत के मुकाबले भी मुश्किल है। 190 देशों में भारत 130वें नंबर पर है, पिछले साल यह 131वें नंबर पर था। यानी सुधार लगभग नहीं के बराबर है। कारोबार करने में आसानी के मामले में सबसे टॉप पर है-न्यूजीलैंड, फिर सिंगापुर, फिर डेनमार्क, फिर हांगकांग और फिर कोरिया।भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर नाराजगी जाहिर की है। हमारी कोशिशों का सही मूल्यांकन नहीं किया गया। इस रिपोर्ट के बाद एक सरकारी बयान का आशय था-दीवालिया होने से जुड़े कोड, गुड्स और सर्विस टैक्स और ऑनलाइन सिंगल विंडो से जुड़ी भारतीय कोशिशों का सही मूल्यांकन विश्व बैंक ने नहीं किया, वरना शायद स्थिति बेहतर दिखती। कुल मिलाकर भारत सरकार की स्थिति उस शिकायती छात्र जैसी दीख रही है, जो कह रहा है कि जी हमने तो बहुत मेहनत से एक्जाम दिए थे, इस रिजल्ट की तो उम्मीद तो ना थी हमें। पर विश्व बैंक की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वह रिपोर्ट कुछ ऐसी बातें भी दिखाती है, जो जमीन पर दिखाई देती हैं। कारोबारी आसानी रिपोर्ट ने दस बिंदुओं पर तमाम अर्थव्यवस्थाओं का मूल्यांकन किया है। पहला बिंदु है-कारोबार शुरू करने में आसानी, दूसरा-कंस्ट्रक्शन से जुड़े परमिट हासिल करने में आसानी, तीसरा-बिजली हासिल करने में आसानी, चौथा-प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन में आसानी, पांचवां-उधार मिलने में आसानी, छठा-छोटे शेयरधारकों को हितों के संरक्षण में आसानी, सातवां-कर देने में आसानी, आठवां-आयात-निर्यात करने में आसानी, नौवां-तमाम अनुबंधों को पूरा करवाने में आसानी और दसवां-दीवालिया होने के मामले निपटाने में आसानी। विश्व बैंक ने बिजली मिलने की आसानी के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था को 26 वीं रैंक पर रखा है, यह 44 रैंकों का उछाल है पिछले साल के मुकाबले। बिजली की उपलब्धता की स्थिति पिछले साल के मुकाबले बेहतर है, यह बात विश्व बैंक न भी बताए तो साफ होती है। पर कुल मिलाकर कारोबार करने की स्थिति जैसी अब है, वैसी ही पिछले साल थी। यह रिपोर्ट से साफ होता है। ब्रिक्स यानी ब्राजील, रूस, चीन, भारत और दक्षिण अफ्रीका का समूह। ऐसा समूह, जिसके बारे में बड़ी-बड़ी बातें कही जाती हैं। हाल में गोवा में इन सारे देशों का एक सम्मेलन भी हुआ था। पर समझने की बात यह है कि ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं में भारत सबसे पीछे है। भारत का नंबर 130वां है, ब्राजील का 123 है। यानी भारत के मुकाबले ब्राजील में कारोबार करना आसान है। रूस का नंबर 40 है, चीन का 78 और दक्षिण अफ्रीका का 74। मतलब भारत को बहुत काम करना है, अपने कारोबारी हालत सुधारने के लिए। किसी बड़े आर्थिक समूह का हिस्सा बनने के बाद यह लगातार सोचा जाना चाहिए कि क्या हम उस समूह में बने रहने की पात्रता को मजबूत कर रहे हैं या नहीं।भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना अकसर की जाती है। अर्थव्यवस्था के लिहाज से आनेवाले दशक एशिया के बताए जाते हैं। एशिया में भारत और चीन दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। पर समझने की बात यह है कि चीन का मुकाबला सिर्फ लफ्फाजी से नहीं किया जा सकता। हाल में भारत में चीनी आइटमों के बहिष्कार के आह्वानों से चिढ़कर चीन के एक सरकारी अखबार ने लिखा था कि बेहतर और सस्ती मैन्युफेक्चरिंग भारत के बस में नहीं है। भारतवाले बातें ज्यादा बनाते हैं, ठोस काम कम करते हैं। भारत वाले बातें ज्यादा करते हैं, यह बात किसी और संदर्भ में प्रख्यात अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन भी कह चुके हैं-अपनी एक किताब में। कारोबारी रैंकिंग सिर्फ नीतिगत घोषणाओं के आधार पर नहीं दी जातीं। जमीन पर वास्तविकताओं का मूल्यांकन ही उनका आधार होता है। चीन निश्चय ही भारत के मुकाबले कम लफ्फाज मुल्क है, पर कारोबार करना वहां भारत के मुकाबले आसान है। बिजली की उपलब्धता की आसानी के मामले में भारत चीन से आगे है, ऐसा दावा किया जा सकता है। बिजली की उपलब्धता की आसानी के मामले में भारत की रैंकिंग 26 है और चीन की 97। सिर्फ बिजली के मामले में बेहतरी से बात नहीं बन सकती न। प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन के मामले में आसानी में भारत की रैंकिंग 138 है और चीन 42। यानी चीन में प्रॉपर्टी अपने नाम रजिस्टर कराना भारत के मुकाबले लगभग तीन गुना आसान है। पर भारत की कुछ सकारात्मक बातें भी हैं चीन के मुकाबले। छोटे शेयरधारकों के हितों के संरक्षण के मामले में भारत की रैंकिंग 13 है और चीन की 123 यानी। छोटे शेयरधारकों के हितों के संरक्षण के मामले में भारत की स्थिति चीन के मुकाबले बहुत बढ़िया है। कुछ क्षेत्रों में भारत की स्थिति चीन से बेहतर होने से ही परिणाम नहीं आ सकते। एक समग्र बेहतरी के बिना बात नहीं बनेगी। यह बात अपनी जगह ठीक हो सकती है कि विश्व बैंक की रिपोर्ट में जून, 2016 तक उठाए गए कदमों का ही मूल्यांकन किया गया है। जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था में जून के बाद बहुत महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। पर एकाध रैंकिंग ऊपर जाने से बात नहीं बननेवाली है। कारोबारी आसानी में चीन की समग्र रैंकिंग 78 के मुकाबले भारत 130वें नंबर है। यानी मुकाबला बहुत दूर का है। बहुत जल्दी नतीजों की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। बातें बहुत हो रही हैं। काम भी हो रहे हैं। पर उतनी स्पीड से नहीं हो रहे, जितनी स्पीड की जरूरत है। भारत में कारोबारी आसानी तब ज्यादा होगी जब केंद्र सरकार के साथ-साथ तमाम राज्य सरकारें भी कारोबार को पर्याप्त प्राथमिकता दें। विश्व बैंक की रिपोर्ट या दूसरी रिपोर्ट समय-समय पर आईना दिखाती रहती हैं। आईने पर नाराजगी अच्छी बात नहीं है। सूरत के सुधार पर ही पूरा ध्यान फोकस होना चाहिए। (RS)

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