Monday 28 November 2016

thought on note

विमुद्रीकरण के आज 13 दिन व्यतीत हो चुके हैं. आज यदि इस कार्य की समीक्षा की जाये तो निष्कर्ष प्राप्त होता है कि सरकार का यह कदम साहस से भरा हुआ तो था परन्तु क्रियान्वयन के स्तर पर सटीक नहीं था. क्रियान्वयन के स्तर की कमियां हर जगह दिखाई देती है ,खास कर बेंकों के स्तर पर.मैं यह नहीं कह रहा कि बैंक के कर्मचारी दिन रात कार्य करें,मेरे कहने का मतलव है कि सरकार को बैंकों में काउंटर बढ़ाने चाहिए थे तथा जनता की समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए था. आज के दिनों में भारत की जनता हीरो बन कर उभरी है. आम जनता ने जिसने की वास्तविक रूप से विमुद्रीकरण की परेशानियों को झेला है उनको शत-शत नमन किया जाना चाहिए. भारत की जनता ने भ्रष्टाचार की समाप्ति की उम्मीद में सरकार का साथ दिया है.सरकार को यह ध्यान में रखना होगा की यदि जनता के इस बलिदान के बाबजूद आतंरिक कालेधन पर ठोस कार्यवाही नहीं हुई तो भविष्य में किसी ऐसे योजना को वह समर्थन नहीं देगी,,,,, इस पुरे घटनाक्रम में भारत के राजनीतिक दल सबसे बड़े जीरो के रूप में उभरा है. राजनीतिक दल चाहे वह सत्ता पक्ष का हो या विपक्ष का सबो ने मिलकर इस योजना के खिलाफ केवल असहयोग ही किया है (सत्ताधारी दल ने केवल अंधभक्ति दिखा कर और विपक्षी दल ने केवल विरोध दिखा कर ) मुझे लगता है कि इन सबके बावजूद भारत की आम जनता ने जिस परिपक्वता का परिचय दिया है उससे तो लगता है कि अपने प्रतिनिधि के तौर पर.भारतीय लोकतंत्र को राजनीतिक दलों की जरुरत ही नहीं है. आप क्या सोचते हैं.........

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