Monday 28 November 2016

जरूरी है पोषण सुरक्षा (शाहिद ए चौधरी)

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 के प्रति शुरुआती उत्साह अब धीरे-धीरे थमता जा रहा है। यह कानून पूर्ण रूप से जुलाई 2016 तक पूरे देश में लागू होना था, लेकिन अब तक केवल पांच रायों ने इसके प्रावधानों को अपनाया है। अन्य रायों में प्रगति बहुत ही धीमी और लचर है। पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान ने तो इसे पूर्ण रूप से लागू किया है जबकि बिहार, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश एवं कर्नाटक में इसे आधा-अधूरा लागू किया गया है। कुछ रायों में जो इस संदर्भ में प्रारंभिक सर्वेक्षण किए गए हैं उनसे मालूम होता है कि प्रशासनिक सुधारों, राशनकार्ड धारकों की संख्या में वृद्धि और वितरण व खपत में सुधार देखने को मिला है। इन रायों में से कुछ में वितरण व्यवस्था में सुधार लाने का प्रयास संसद द्वारा इस कानून को पारित किए जाने से पहले ही आरंभ हो गया था। अगर यह कानून पूरी तरह से लागू हो जाता है तो लगभग 72 करोड़ लोगों को लाभ होगा, जिन्हें रियायती दरों पर प्रतिमाह प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज (चावल, गेहूं आदि) मिलेगा। इससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होगी और पोषण में भी सुधार आने की संभावना है।
यह दोनों ही विचार आपस में जुड़े हुए हैं। लेकिन पोषण सुरक्षा की जरूरत खाद्य सुरक्षा से कहीं अधिक अनिवार्य है। पोषण सुरक्षा में जैविक सिद्धांत शामिल होता है कि पर्याप्त मात्र में प्रोटीन, ऊर्जा, विटामिन व खनिज मिलें। साथ ही उचित स्वास्थ्य व सामाजिक वातावरण भी उपलब्ध रहे। जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए जो अनाज बाजार भाव की तुलना में बहुत कम रियायती दर पर उपलब्ध कराया जाता है, उसकी पोषण गुणवत्ता पर कम ही शोध किया गया है, जबकि संबंधित कानून में इस लक्ष्य को हासिल करने का भी उद्देश्य है। अक्सर पीडीएस के जरिए जो खाने की चीजें मिलती हैं, उनमें पोषण के आवश्यक तत्व मौजूद नहीं होते और उन चीजों को बहुत गंदे तरीके से स्टोर किया जाता है। इनमें आहार विविधता का भी आभाव होता है। लेकिन इस कानून के तहत कुछ अन्य उपयोगी प्रावधान भी हैं। जैसे बचों के लिए मुफ्त दैनिक भोजन और मातृत्व लाभ जिसमें गर्भवती महिलाओं के लिए नकद पैसा देना शामिल है, ताकि कम पोषण, कैलोरी की कमी और कुपोषण प्रोटीन की कमी का मुकाबला किया जा सकता है। जाहिर है इससे अन्य पोषण कार्यक्रमों मिड-डे मिल व एकीकृत बाल विकास सेवा को मजबूती मिल सकती है। ग्रामीण ओडिशा के तीन अति गरीब जिलों कोरापूट, बोलंगीर और नयागढ़ में पीडीएस के योगदान को लेकर 385 घरों का प्रारंभिक सर्वेक्षण 2014-15 में किया गया। कोरापूट व बोलंगीर अति पिछड़े क्षेत्र में आते हैं जबकि नयागढ़ गैर अति पिछड़े क्षेत्र में आता है। अति पिछड़े जिलों में सामान्य पीडीएस का पालन होता है, जबकि गैर अति पिछड़े जिलों में लक्ष्य आधारित पीडीएस का पालन किया जाता है। इन तीनों ही जिलों में कम पोषण व कुपोषण के मामले बहुत यादा हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट न्यूट्रीशन ने 2010 में आयु, लिंग व कार्य के आधार पर अनुमान लगाया तो मालूम हुआ कि उन जिलों में कम पोषित व्यक्तियों की संख्या कुल जनसंख्या का 50 प्रतिशत है। कुपोषण 43 प्रतिशत व्यक्तियों में है। कैलोरी और प्रोटीन की कमी अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) घरों में 68 प्रतिशत है। यह घर गरीबों में भी अति गरीब माने जाते हैं। कोरापूट जिले में तो यह 72 प्रतिशत है, जबकि ओडिशा का औसत 60 प्रतिशत है। सर्वेक्षण वोले जिलों में चावल मुख्य आहार है।
अनुमान यह है कि प्रतिमाह प्रति व्यक्ति 11.6 किलो चावल की खपत होती है, जिसमें से 33.7 प्रतिशत सभी लाभान्वितों को पीडीएस के जरिए मिलता है। चूंकि एएवाई घरों के लिए पीडीएस के तहत अधिक कोटा है, इसलिए उनका योगदान 73.9 प्रतिशत है। 70 प्रतिशत कैलोरी गेहूं व चावल से हासिल होती है और 66 प्रतिशत प्रोटीन अन्य चीजों से मिलती है। महत्वपूर्ण यह है कि पीडीएस के जरिए ऊर्जा सेवन एएवाई घरों में अन्य लाभान्वितों की तुलना में दोगुना 60 प्रतिशत है। राय सरकार के प्रयासों से एएवाई घरों में विशेष रूप से भोजन की उपलब्धता और फलस्वरूप ऊर्जा के सेवन में सुधार आया है। 2004-05 से जो विभिन्न प्रयास किए गए जैसे निजी तौर पर अनाज खरीदना व स्टोर करने की व्यवस्था को समाप्त करना और सरकारी एजेंसियों द्वारा इस बात का नियंत्रण रखना कि अनाज गोदाम से गलत जगह न पहुंचे, तो उससे बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। ग्राम पंचायतें भी इस सिलसिले में बराबर निगरानी रखे हुए हैं। इन जिलों के लोग पीडीएस से संतुष्ट हैं। लेकिन वह कैश ट्रांसफर के पक्ष में नहीं हैं। वह इसी बात में खुश हैं कि उन तक सीधे अनाज पहुंचा दिया जाए। कैश ट्रांसफर का विरोध दो मुख्य कारणों से है। एक यह कि चीजों के महंगे होने का डर हमेशा बना रहता है। दूसरे गांव से बैंक व बाजार काफी दूर हैं और सड़कों की हालात भी बहुत खराब है। लाभान्वित इस पक्ष में हैं कि उनके क्षेत्र में पीडीएस के जरिए दालें, प्याज व आलू भी मिलने लगें।
ओडिशा सरकार ने जो खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में सफलता हासिल की है उसका अनुसरण अन्य रायों में भी होना चाहिए। बहरहाल, अनेक अध्ययनों ने आहार विविधता पर बल दिया है ताकि गरीबों का बड़ा वर्ग उचित पोषित आहार हासिल कर सके। यह महत्वपूर्ण कदम हो सकता है उन रायों में जो नए सिरे से पीडीएस को स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं जैसे तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व बिहार। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत यह प्रावधान है कि गेहूं व चावल के साथ एक अन्य अनाज जैसे बाजरा को बढ़ा दिया जाए ताकि गरीब घरों की पोषण सुरक्षा में सुधार आ सके। हालांकि गेहूं व चावल से काफी ऊर्जा प्राप्त होती है, लेकिन अब समय आ गया है कि अन्य अनाजों व दालों पर फोकस किया जाए ताकि गरीबों को पर्याप्त प्रोटीन मिल सके। ये चीजें पीडीएस के जरिए मिलनी चाहिए और जल्द मिलनी चाहिए। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि एएवाई घरों की पहुंच पीडीएस तक काफी है, लेकिन समस्या कम पोषण की है जो निरंतर बढ़ती जा रही है। लेकिन इस सबसे पहले जरूरी है कि देशभर में अविलंब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए। रायों को चाहिए कि वह इसे अपना मिशन बना लें, खासकर इसलिए भी कि इस साल अनाज की उपलब्धता कोई समस्या नहीं है। कृषि मंत्रलय के अनुसार अछे मानसून की वजह से अनाजों का उत्पादन इस साल 270 मिलियन टन हुआ है। विशेषकर इस वजह से भी कि 101 मिलियन हेक्टेयर की तुलना में 105 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर अनाजों की खेती की गई। रायों को चाहिए कि वह राशन कार्डो को ऑनलाइन करें, अनाजों का लेनदेन कम्प्यूटर के जरिए हो और राशन की दुकानों की सख्ती से निगरानी की जाए। इससे अधिक पारदर्शिता आएगी और भारतीयों के पोषण में भी सुधार आएगा।
(लेखक विशिष्ट मीडिया एवं शोध संस्थान इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर में विशेष संपादक हैं)(DJ)

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