Monday 28 November 2016

अमेरिका : जीत और वैश्विक अपेक्षाएं (अमरीश त्यागी)


पहले पार्टी के दिग्गज-टेक्सास के सेनेटर टेड क्रूज, आहिओ के गवर्नर जॉन कसिच और फ्लोरिडा के सेनेटर मार्को रूबिया को पछाड़ने के बाद राष्ट्रपति चुनाव में जानी-मानी व अनुभवी नेता हिलेरी क्लिंटन को मात दे डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया को चौंका दिया है। इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट व सोशल मीडिया की फेवरिट चल रही डेमोक्रेट उम्मीदवार क्लिंटन की हार ने तमाम सव्रे को नकारने का काम किया है। तमाम आलोचनाओं के बावजूद नागरिकों के बीच जाकर ट्रंप ने हिलेरी की आलोचना कम और अपनी प्रतिबद्धता ज्यादा गिनाने का काम किया, जिसका असर सितम्बर माह तक धरातल पर दिखने भी लगा था। चुनाव प्रबंधन कंपनी-‘‘कैम्ब्रिज ऐनेलिटिका’-जो रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप का चुनाव प्रबंधन कर रही थी-की तरफ से मुझे भी चुनाव प्रबंधन में सहयोग व भागीदारी के लिए आमंत्रित किया गया था। कंपनी द्वारा मुझे अमेरिका में रह रहे भारतीय अमेरिकी नागरिकों के चुनावी मनोदशा पर शोध के लिए बुलाया गया था। 2010 की जनगणना के अनुसार 3.18 मिलियन भारतीय अमेरिका में प्रवास करते हैं। एशियाई जनसंख्या में चीनी 4.02 मिलियन और फिलीपिंसी 3.42 मिलियन हैं। एक और महत्त्वपूर्ण आंकड़े के अनुसार वर्ष 2000 से 2010 के दौरान एशियाई अमेरिकी जनसंख्या में लगभग 40 फीसद की वृद्धि हुई है। अन्य सामाजिक समूहों की तुलना में यह वृद्धि काफी अधिक है। चुनाव के शुरुआती दिनों में ज्यादातर भारतीय अमेरिकी जहां वैचारिक रूप से रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप से प्रभावित दिखे तो वहीं दूसरी ओर रोजगार व प्रवास संबंधी उनकी प्रस्तावित नीतियों को लेकर कुछ आशंकित भी हुए। प्रथम चरण की बहस के दौरान रिपब्लिकन उम्मीदवार ने रोजगार के अवसरों को लेकर चीनी अमेरिकी नागरिकों पर आक्रामक रवैया जरूर अपनाया। ट्रंप और हिलेरी की लोकप्रियता के तुलनात्मक अध्ययन में देखा जा सकता है कि ट्रंप की लोकप्रियता मूल या पुराने अमेरिकी बाशिंदों में ज्यादा थी तो वहीं डेमोक्रेट उम्मीदवार को नए अमेरिकी या बाहरी समुदाय, जो बाद में अमेरिकी नागरिक बने उनका खास समर्थन प्राप्त होता दिख रहा था। कॉरपोरेट टैक्स की दर 35 फीसद से घटाकर 15 फीसद करने का वादा, दूसरे देशों के लोगों को स्किल्ड वीजा में कमी, आतंकवाद पर कमी, अर्थव्यवस्था में मजबूती आदि वायदों ने जनता में विशेष संदेश का काम किया। बहरहाल, आतंकवाद का सफाया, नियंतण्र अर्थव्यवस्था में स्थिरता, देश के अंदर रोजगार सृजन व अमेरिका फस्र्ट आदि डोनाल्ड की प्राथमिक चुनौतियों में शामिल हैं। भारत के परिपेक्ष्य में, जिस तरह से ट्रंप ने पूरे चुनाव अभियान के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाते हुए उसे एक गैर जिम्मेदार परमाणु शक्ति बताया, भारत जो अंतरराष्ट्रीय पटल पर समय-समय पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा उठाता रहा है, उसे न केवल नैतिक बल मिलेगा बल्कि पाकिस्तान को अलग-थलग करने के प्रयासों में गति भी संभव है। दूसरी तरफ, हिलेरी के राष्ट्रपति चुने जाने पर विशेषकर आतंकवाद के मुद्दों पर नरम रहने की संभावना ज्यादा रहती। 2008 में एक बहस के दौरान वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा भी हिलेरी क्लिंटन के मध्य-पूर्व के रिश्तों पर आशंका जाहिर कर चुके हैं। अभी अक्टूबर माह में विकिलिक्स के खुलासे में सरकारी सर्वर को लेकर कुछ व्यक्तिगत मेल का मामला भी सार्वजनिक हुआ था। उनकी पाकिस्तान मूल की सहयोगी पर भी समय-समय पर उंगलियां उठती रही हैं। इन संदर्भों में उनका चुनाव जीतना भारत के लिए चिंतनीय हो सकता था। अपने चुनाव में जिस तरह से डोनाल्ड ने भारतीय समुदाय के प्रति अपनी नरमी व नजदीकी का एहसास कराया, उससे यह प्रतीत होता है कि वह अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के आरम्भ में ही भारत के साथ दोस्ताना रवैया अपनाकर द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करेंगे। बराक ओबामा को अपने पहले कार्यकाल में भारत से दोस्ती बनाने में काफी समय लगा और भारत-अमेरिकी संबंधों के हिसाब से पहला कार्यकाल ठंडा ही रहा। जहां एक तरफ ताकतवर रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ उनका अच्छा सामंजस्य देखा जा रहा है, मध्य पूर्व में चल रहे संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी अपेक्षित है। रूस-अमेरिका द्वारा आतंकवाद का एकजुट होकर मुकाबला विश्व शांति के लिए अब तक की सबसे बड़ी पहल हो सकती है जिसका सकारात्मक असर भारत पर पड़ना तय है। इनकी दोस्ती भारत के लिए सुरक्षा परिषद में भी स्थाई सदस्यता प्रदान करवाने में मददगार हो सकती है। आतंकी मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने जैसे विषयों पर यह त्रिकोण कामयाब साबित हो सकता है। ‘‘साउथ चाइना सी’ में चीन की बढ़ती आक्रामकता व सक्रियता भारतीय सुरक्षा को भी चिंतित करने वाली है। ट्रंप की रूस के साथ अच्छी साझेदारी भारत के साथ मिलकर चीन की विस्तारवादी नीति पर अंकुश लागाने में सफल हो सकती है, जो कि हिलेरी के राष्ट्रपति रहते संभव नहीं था। पूर्व में वह पुतिन व रूस को लेकर कई बार अपनी कड़वाहट जाहिर कर चुकी हैं। ट्रंप एवं भारतीय-अमेरिकी की जुगलबंदी सांस्कृतिक एवं आर्थिक रिश्तों को प्रगाढ़ व द्विपक्षीय व्यापार को मजबूत कर भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयां प्रदान कर सकता है। प्रचार के दौरान जिस तरह से डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय समुदाय को रिझा कर प्रचार में ‘‘मोदी स्टाइल’ की झलक दिखाई, वह भारत-अमेरिकी संबंधों में और गहराई लाने का कार्य करेगी। निश्चित रूप से ट्रंप व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शैली व विचारों में समानता न केवल भारत-अमेरिकी संबंधों को ऐतिहासिक मुकाम तक ले जाएगा बल्कि अमेरिका में रह रहे भारतीय समुदाय के हितों के संरक्षण का काम भी करेगा। (लेखक कैम्ब्रिज एनेलिटिका से जुड़े सेफेलोजिस्ट हैं)(RS)

No comments:

Post a Comment