Monday 28 November 2016

मातृत्व अभियान से उम्मीद (अलका आर्य)

रोजाना ऐसी खबरें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं कि समय पर एंबुलेस नहीं मिलने या अस्पताल की लापरवाही के चलते गर्भवती महिला की प्रसूति के दौरान मौत हो गई। दुनिया में गर्भावस्था और शिशु जन्म के दौरान होने वाली मौतों में से 15 प्रतिशत भारत में होती हैं। 55 हजार से यादा गर्भवती महिलाएं हर साल प्रसूति के दौरान अपनी जिंदगी गवां बैठती हैं जबकि समय पर चिकित्सा सुविधा मुहैया करा कर इन मौतों को रोका जा सकता है। यह सरकार के लिए चिंता और प्राथमिकता का विषय है। हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने ‘प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान’ की शुरुआत करते हुए कहा, आइए सुरक्षित गर्भावस्था को एक सामाजिक मुहिम का रूप दें। मैं सभी साङोदारों को इस राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने तथा जचा-बचा मृत्यु दर को कम करने में योगदान देने के लिए आमंत्रित करता हूं।’
दरअसल, देश के सामने एक मुख्य चुनौती जचा-बचा स्वास्थ्य में सुधार संबंधी सतत विकास लक्ष्य को हासिल करने की है। भारत मातृत्व मृत्यु दर को कम करने वाले अपने सहस्त्रब्दि विकास लक्ष्य को पहले भी दो बार गवां चुका है। ऐसे में भारत पर सुरक्षित गर्भावस्था एवं सुरक्षित प्रसव के माध्यम से जचा-बचा मृत्यु दर को कम करने का बहुत दबाव है। लिहाजा,केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की शुरुआत कर दुनियाभर में यह संदेश देने की कोशिश की है कि भारत केवल जलवायु परिवर्तन, आंतकवाद का खात्मा करने सरीखे मुद्दों पर ही गंभीर नहीं है बल्कि जचा -बचा को मरने से बचाना भी उसकी प्राथमिकताओं में शमिल है। सरकार को उम्मीद है कि राष्ट्रीय स्तर का यह कार्यक्रम उच जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान एवं रोकथाम करने और तकरीबन 3 करोड़ गर्भवती महिलाओं को नि:शुल्क प्रसव पूर्व देखभाल सुविधा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। यह राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम हर महीने की नौ तारीख को गर्भवती महिलाओं को मुफ्त, व्यापक एवं गुणवत्तापूर्ण प्रसव पूर्व देखभाल सेवाएं उपलब्ध कराएगा। गर्भवती महिलाएं गर्भाधारण की दूसरी या तीसरी तिमाही में सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के स्त्री रोग विशेषज्ञों से विशेष प्रसव पूर्व जांच सेवाओं का लाभ उठा सकेंगी। इन सेवाओं में अल्ट्रासांउड, रक्त और मूत्र जांच, रक्तचाप जांच आदि शमिल है। इसके अलावा ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में नियमित प्रसव पूर्व स्वास्थ्य सूविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। मातृत्व मृत्यु एवं नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए उच जोखिम की गर्भावस्था की समय पर पहचान करना तथा महिलाओं को उचित स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य है। इसमें उन महिलाओं को खासतौर पर ध्यान दिया जाएगा जो प्रसव देखभाल संबंधी जरूरी सेवाओं से बाहर हैं। ऐसी महिलाएं भी शमिल हैं जिन्हें न्यूनतम जांच एवं चिकित्सा सेवाएं भी मयस्सर नहीं हो पातीं। जैसे एएनसी जांच व दवाएं़ आईएफए एवं कैल्शियम सप्लीमेंट्स आदि। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत क्लीनिकों में गर्भवती महिलाओं को ये जरूरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
निदान एवं उपचार के अलावा काउंसलिंग भी गर्भवती महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण होती है। खासतौर पर उच जोखिम के मामलों में। स्वास्थ्य सचिव सी.के. मिश्र का कहना है कि जचा-बचा मृत्यु दर में कमी लाने के लिए पर्याप्त प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षित अभियान कार्यक्रम इस तथ्य पर आधारित है कि अगर भारत में हर गर्भवती महिला की ठीक से जांच की जाए और उसे जरूरी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए तो गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं की मौतों को रोका जा सकता है। इसी मंशा को कारगर बनाने और लक्ष्य को हासिल करने की दृष्टि से स्वास्थ्य मंत्रलय ने इस कार्यक्रम के तहत निजी डॉक्टरों, रेडियोलॉजिस्ट, नर्सो आदि से योगदान की अपील की है। सरकार ने प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षित अभियान एप भी लांच किया है। इसमें साफ कहा गया है कि निजी डॉक्टरों की भागीदारी से गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व मुफ्त जांच होगी। इसमें ऑनलाइन पंजीकरण की भी अपील की गई है। दरअसल, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान का राष्ट्रीय पोर्टल प्रत्येक महीने की 9 तारीख को सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भवती महिलाओं को प्रसव पूर्व मुफ्त सेवाएं प्रदान करने के इछुक निजी क्षेत्रों, स्ंवयसेवी, सेवानिवृत्त दाइंयों और डॉक्टरों को ऑनलाइन पंजीकरण की सुविधा उपलब्ध कराता है। यह पोर्टल कार्यक्रम के तहत उपलब्ध कराई गई सेवाओं के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए एक मंच भी प्रदान करता है। इससे अभियान की ऑनलाइन निगरानी की सुविधा मिलती है। स्वयंसेवियों की प्रतिक्रियाओं, सुझावों के लिए परस्पर संवादात्मक मंच प्रदान करता है। एक डॉक्टर जो निरंतर एक आभासी हॉल ऑफ फेम के जरिए कार्यक्रम के तहत अपनी सेवाएं देते हैं, उनके योगदान को मान्यता देता है।
अहम सवाल यह है कि क्या यह सरकारी कवायद मातृत्व मृत्यु दर में कमी लाने में अहम कदम साबित होगी। क्या निजी डॉक्टर, दाइंया सरकारी अपील पर स्ंवयसेवा के लिए स्वास्थ्य केंद्रों पर हर महीने की 9 तारीख को आएंगे। वैसे भारत में इसकी दरकार है क्योंकि भारत में मौजूदा मातृत्व मृत्यु दर 174 है और लक्ष्य 103 है। ओडिशा, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और असम में यह दर यादा है। लैंसट की बीते दिनों जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में ऐसी मौतों की संख्या में अंतर है। इस रिपोर्ट में मातृत्व स्वास्थ्य के विभिन्न पहुलओं व मुद्दों का आकलन किया गया है। भारत में संस्थागत डिलीवरी व स्किल्ड बर्थ में सुधार तो हुआ है। मगर इसके बावजूद सुरक्षित मातृत्च अभियान की जरूरत है। जचा-बचा को मरने से बचाया जा सकता है। गांव हो या शहर, दूरदराज हो या पर्वतीय इलाका, जरूरत ऐसे कार्यक्रमों की गंभीरता से अमल में लाने की भी है। जननी सुरक्षा योजना नामक कार्यक्रम के तहत भी गर्भवती महिलाएं सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में सेवाएं ले सकती हैं। आर्थिक रूप से कमजोर तबके की अधिकांश महिलाएं गरीबी, जागरूकता की कमी के कारण समय पर चिकित्सा केंद्रों पर देखभाल के लिए नहीं पहुंच पाती हैं। मगर प्रधानमंत्री मातृत्व सुरक्षित अभियान यह सुनिश्चित करेगा कि अब देशभर में गर्भवती महिलाएं हर महीने की 9 तारीख को सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर नि:शुल्क अपनी जांच करा पाएंगी। यदि इसका नियमित पालन होता है तो मातृत्व मृत्युदर व नवजात मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी हो सकती है। असामान्य बचों के जन्म में भी कमी आ सकती है। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान को राष्ट्रीय, सामाजिक आंदोलन में तब्दील करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, उनका जारी रहना जरूरी है। तभी अपने देश में प्रसव के दौरान होने वाली मौतों पर रोक संभव हो पाएगी।
(लेखिका स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(DJ)

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