प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का जापान दौरा वैसे तो कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है। जो नौ समझौते हुए वे सब हमारे आर्थिक, रक्षा, शैक्षणिक, सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने वाले हैं। किंतु नाभिकीय सहयोग समझौता इसमें सबसे ज्यादा अहम है। इसे यदि ऐतिहासिक कहा जाए तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। हम जानते हैं कि भारत ने सबसे पहले द्विपक्षीय असैन्य नाभिकीय समझौता अमेरिका के साथ किया था। उसके बाद दुनिया के देशों से ऐसे समझौते और सहयोग का दरवाजा खुला। अभी तक भारत अमेरिका के अलावा रूस, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया, फ्रांस, नामीबिया, अज्रेटीना, कनाडा, कजाखस्तान और ऑस्ट्रेलिया के साथ असैन्य नाभिकीय समझौता कर चुका है। इन समझौतों के आधार पर ही भारत ने अगले दो दशक में 60 हजार मेगावाट बिजली नाभिकीय ऊर्जा से पैदा करने की योजना बनाया हुआ है और उस पर काम चल रहा है। इस पृष्ठभूमि में यह सवाल उठ सकता है कि जब इतने देशों से हमारा समझौता पहले से है तो फिर जापान के साथ यह ऐतिहासिक कैसे हो गया? ऐतिहासिक तो अमेरिका के साथ था; क्योंकि उसने ही हमारे सामने बंद दरवाजे को खोला था। जापान के साथ समझौता इसलिए ऐतिहासिक है कि आज तक जापान ने किसी ऐसे देश के साथ नाभिकीय सहयोग समझौता नहीं किया था, जिसने नाभिकीय अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किया हो। इस तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे का नाभिकीय सहयोग पर हस्ताक्षर करना एक युग का अंत और एक नए युग की शुरु आत है। कूटनीति के मामले में जापान को बेहद पारंपरिक माना जाता है। लेकिन भारत के लिए जापान सरकार ने परंपरा को तोड़ दिया। यह यों ही नहीं हुआ होगा। इसके पीछे लंबे समय की कूटनीतिक कवायद तो है ही, मोदी की शिंजों के साथ निजी विकसित संबंधों की भी भूमिका है, लेकिन यह बदलते अंतरराष्ट्रीय हालात एवं रूपाकार लेती नई विश्व व्यवस्था का भी द्योतक है। सितम्बर 2014 में जब मोदी बतौर प्रधानमंत्री जापान की पहली यात्रा पर गए थे तो उसी समय उन्होंने अन्य बातों के साथ इसे फोकस में रखा था। दोनों नेताओं ने उसी समय रक्षा संबंध मजबूत करने और नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए सहयोग की प्रतिबद्धता जताई थी। उनके बीच असैनिक नाभिकीय ऊर्जा सहयोग के मुद्दे पर बातचीत हुई थी। जब यह एक मुकाम पर पहुंच गई तो दोनों ने अपने अधिकारियों को बातचीत पूरी करने का निर्देश दिया ताकि जल्द-से-जल्द रणनीतिक सहयोग को मजबूत करने के समझौते पर हस्ताक्षर हो सके। यह बातचीत पूरी हुई और फिर परिणाम समझौते के रु प में हमारे सामने है। निश्चय ही इस समझौते पर अन्य देशों की नजर होगी; खासकर चीन की। आखिर चीन के विपरीत जापान के प्रधानमंत्री ने एनएसजी में भी भारत की सदस्यता का खुलकर समर्थन कर दिया है। ध्यान रखिए जापान दुनिया में एकमात्र देश है, जिसने नाभिकीय हमले की विभीषिका झेली है। इसलिए इस मामले पर उसका रु ख बेहद सख्त रहा है। जापान में आज भी नाभिकीय अस्त्र रखने को अच्छा नहीं माना जाता और आम जनता उसके प्रति सशंकित रहती है। वर्ष 1998 में भारत ने जब नाभिकीय विस्फोट किया था, तब जापान ने सबसे पहले प्रतिबंध लगाया था। जाहिर है, शिंजो अबे ने भारत के साथ समझौता करने के लिए अपने देश के लोगों का मनाया होगा, अन्यथा लोग इसके खिलाफ सड़कों पर उतर जाते। इतना करने का अर्थ ही है कि जापान अब भावी दुनिया के संदर्भ में नए सिरे से विचार कर रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने इस समझौते पर जो ट्वीट किया उसे देखिए-स्वच्छ और हरित विश्व के लिए एक ऐतिहासिक समझौता। प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री अबे ऐतिहासिक असैन्य नाभिकीय समझौते के आदान-प्रदान के गवाह बने। मोदी ने कहा कि जापान के साथ हुए समझौते ने हमें एक कानूनी ढांचा उपलब्ध कराया है कि नाभिकीय अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं करने के बावजूद हम नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल में जिम्मेदारी से काम करेंगे और नाभिकीय अप्रसार के लिए भी काम करेंगे। अबे ने कहा कि जापान पूरी दुनिया से परमाणु हथियारों का खात्मा चाहता है। यह समझौता इसी उद्देश्य से किया गया है। अबे और मोदी दोनों नाभिकीय ऊर्जा और तकनीक का मानवीय विकास एवं सेवा में उपयोग के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। जापान ने माना है कि भारत नाभिकीय हथियार संपन्न होते हुए भी एक जिम्मेवार देश है और उस पर आसानी से विास किया जा सकता है कि वह समझौते के तहत प्राप्त नाभिकीय ऊर्जा एवं तकनीकों को सामरिक उपयोग नहीं करेगा। यह सामान्य बात नहीं है। इस नागरिक नाभिकीय समझौते के तहत जापान ने भारत के लिए नाभिकीय तकनीक और रिएक्टर निर्यात के दरवाजे खोल दिए हैं। नए समझौते के बाद अब जापान की कंपनियां न सिर्फ भारत में नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र लगा सकेंगी बल्कि नाभिकीय ऊर्जा बनाने के लिए जरूरी तकनीकी भी भारत अब जापान से ले सकेगा। जापान की नाभिकीय तकनीक उच्च स्तर की है। यह समझौता द्विपक्षीय आर्थिक और सुरक्षा संबंधों को भी मजबूती प्रदान करेगा। इसे यदि भारत जापान के बीच बढ़ते सुरक्षा संबंधों के साथ मिलाकर देखें तो महत्त्व ज्यादा स्पष्ट हो जाएगा। भारतीय नौसेना को पानी और जमीन दोनों से उड़ान भरने और उतरने में सक्षम विमान बेचने पर भी सहमति हुई है। मोदी के इस दौरे में एम्फीबियन जहाज यूएस 2 आई सौदे पर भी बात बढ़ी है। भारत जापान से 12 एम्फीबियन जहाज खरीद सकता है। इस तरह देखें तो जापान के साथ एक बहुआयामी संबंध खड़े हो चुके हैं। नाभिकीय समझौता जिसकी चरम परिणति मानी जाएगी। चीन की इस चेतावनी के बावजूद कि दोनों देश पड़ोसी देश की भावनाओं का ध्यान रखें संयुक्त वक्तव्य में दक्षिण चीन सागर का जिक्र आया तो इसका अर्थ साफ है। चीन के रवैये से पूरे एशिया और विशेषकर एशिया प्रशांत में चिंता है। इस तरह कह सकते हैं कि भारत और जापान की दोस्ती एशियाई सुरक्षा संरचना में हो रहे बदलाव का द्योतक हैं। संभावना को देखते हुए दोनों देशों ने सटीक कदम उठाए हैं।(RS)
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