Monday 28 November 2016

मोसुल की लड़ाई इतनी अहम क्यों है (महेंद्र राजा जैन)


इराक के दूसरे बड़े शहर मोसुल को इस्लामिक स्टेट (आईएस) के कब्जे से छुड़ाने के लिए इराक, अमेरिका व यूरोपीय देशों की सेनाएं जिस प्रकार आगे बढ़ रही हैं, उससे साफ है कि जल्दी ही वहां से आईएस का पत्ता साफ हो जाएगा। इस अभियान का मुख्य मकसद मोसुल को वापस इराकी सरकार को सौंपना है। इस काम के पूरा होने के साथ ही आईएस के हाथों से करीब-करीब वह पूरा क्षेत्र निकल जाएगा, जिस पर उसने 2014 से कब्जा कर रखा है। यदि पूर्वी सीरिया के बड़े शहर रक्का पर आईएस काबिज भी रहा, तो उसके कब्जे में कोई बहुत बड़ा क्षेत्र नहीं रहेगा, और न पश्चिम एशिया के करोड़ों लोग उससे प्रभावित हो सकेंगे।
बहरहाल, मोसुल फतह के तुरंत बाद इराक व उसके आसपास के क्षेत्रों पर क्या प्रभाव पडे़गा, इस पर मंथन शुरू हो गया है। कुर्द व अरबों के साथ शिया व सुन्नियों के लिए भी मोसुल महत्वपूर्ण है। आईएस के चंगुल से मोसुल के छूटने के बाद इन चारों में सामंजस्य पनपने की अपेक्षा इस बात की अधिक आशंका है कि वैमनस्य बढ़ेगा। इराक के सुन्नी अल्पसंख्यकों को यह शिकायत रही है कि बगदाद की शिया सरकार उनके साथ भेदभाव करती रही है। आईएस की हार से सीरियाई युद्ध की रक्तरंजित तस्वीर भी बदल जाएगी। उससे बशर-अल असद की सरकार व कुछ अन्य प्रतिद्वंद्वी लड़ाकू संगठनों को भी लाभ होगा। इस क्षेत्र में शुरू से ही अप्रत्याशित रूप से स्थिति बदलती रही है। सवाल यह है कि आईएस के हाथों से इस क्षेत्र के निकल जाने के बाद पश्चिम को उससे कैसा खतरा रहेगा? ज्यादातर राजनीतिक पर्यवेक्षकों व पश्चिम एशिया के विशेषज्ञों का मानना है कि तब आईएस के निशाने पर यूरोप के देश होंगे।
पर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आईएस की खिलाफत की पराजय के बाद क्या वह बचा भी रह पाएगा या और पनपेगा? ज्यादातर लोगों का मानना है कि आईएस की हार से मुस्लिम देशों व यूरोप में नई भर्तियों का मनोबल टूटेगा और तेल की बिक्री व टैक्स आदि से होने वाली आईएस की आय में काफी कमी आएगी, जिससे वह न लोगों को ट्रेनिंग दे पाएगा और न उस प्रकार प्रोपगेंडा कर पाएगा, जैसा अब तक करता रहा है। इससे उसकी स्थिति निश्चय ही कमजोर होगी। अल-कायदा का ही उदाहरण लें, तो कह सकते हैं कि अफगानिस्तान से उसके हटने के बाद अब उसका कोई खास महत्व नहीं रह गया है; भले ही पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में वह अब भी सक्रिय है। हालांकि कुछ आशंकाशास्त्रियों का कहना है कि इस्लामिक स्टेट को अरब जगत की राजनीतिक अस्थिरता के साथ ही अन्य लड़ाकू गुटों की आपसी प्रतिद्वंद्विता का लाभ मिलता रहेगा।
बहरहाल, जिस प्रकार 2014 में आईएस द्वारा मोसुल पर कब्जा किए जाने के बाद पूरी इस्लामी युयुत्सा नाटकीय ढंग से बदल गई, उसी प्रकार मोसुल के उसके हाथ से निकल जाने के बाद भी ऐसा ही होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
(Hindustan)

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