Monday 28 November 2016

थाईलैंड में अनिश्चिता का दौर (डॉ. गौरीशंकर राजहंस)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जापान जाते समय रास्ते में थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में अचानक उतरे, जहां उन्होंने दिवंगत नरेश भूमिबोल अदुल्यदेज को श्रद्धांजलि दी। अदुल्यदेज का लंबी बीमारी के बाद गत 13 अक्टूबर को निधन हो गया था। प्रधानमंत्री मोदी ने दिवंगत नरेश भूमिबोल को पुष्पांजलि अर्पित की और श्रद्धांजलि दी। भूमिबोल के पार्थिव शरीर को बैंकाक स्थित ग्रैंड पैलेस परिसर में रखा गया है। वह दुनिया में सबसे लंबे समय तक किसी देश पर शासन करने वाले राजा थे। उनके निधन के बाद देश भर में एक साल तक शोक मनाए जाने का ऐलान किया गया है। देश भर में एक महीने तक राष्ट्रध्वज आधा झुका रहेगा और सरकार ने लोगों से इस दौरान जश्न नहीं मनाने की अपील की है। भूमिबोल को थाईलैंड की जनता देवता की तरह पूजती थी। उनके निधन के बाद बैंकाक में लाखों लोग लाइन लगाकर उनके अंतिम दर्शन के लिए कड़ी धूप में खड़े रहे थे। थाईलैंड की जनता अभी भी शोक से उबर नहीं पाई है।
देश में फिलहाल सेना का राज है। कुछ वर्ष पहले सेना प्रमुख प्रयुथ चनोचा ने सैनिक क्रांति करके थिंगलक सिनवात्र को पदयुत कर दिया था। कहते हैं कि इस सैनिक क्रांति का समर्थन भूमिबोल ने भी किया था। क्योंकि भूमिबोल पूर्व प्रधानमंत्री थैक्सिन सिनवात्र के भ्रष्टाचार से तंग आ गए थे। 2006 में थैक्सिन को अपदस्थ कर दिया गया था। उन्होंने बाहर रहकर अपने बहन थिंगलक सिन्वात्र को थाईलैंड का प्रधानमंत्री बनवाया था। लेकिन थिंगलक पर यह आरोप लगा कि वह जनता की भलाई के लिए कुछ नहीं कर रही हैं। विदेशों से थैक्सिन का जो आदेश आता है, उसका वह पालन करती हैं। देश में अराजकता फैल गई जिसका परिणाम यह हुआ कि वहां सैनिक क्रांति हो गई और थिंगलक को अपदस्थ कर दिया गया। सैनिक क्रांति में सेनाध्यक्ष प्रयुथ चनोचा को भूमिबोल का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, जिस कारण जनता ने सैनिक क्रांति को मान्यता दे दी। प्रयुथ चनोचा बाद में देश के प्रधानमंत्री बने, जिन्हें भूमिबोल का पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ। हाल में सेना ने थिंगलक पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है और उन्हें एक बिलियन डॉलर जुर्माना देने की सजा दी गई है। सेना ने यह भी आरोप लगाया है कि अपनी झूठी लोकप्रियता के लिए थिंगलक ने जनता में सस्ते दामों पर चावल का वितरण किया, जिससे सरकार को भारी घाटा हुआ। राजा भूमिबोल लंबी अवधि से बीमारी से पीड़ित थे और सेना को यह बात समझ में आ गई थी कि वे बहुत दिनों तक जीवित नहीं रहेंगे। इसलिए सेना ने जल्दी जल्दी में देश में नए संविधान पर जनमत संग्रह कराया और उसमें चालाकी से यह प्रावधान करा दिया कि चुनाव के बाद जिस संसद का गठन का होगा उसमें सेना के चुने हुए सांसदों का प्रभुत्व होगा और सेना के प्रतिनिधि ही नए प्रधानमंत्री का चयन करेंगे। मतलब स्पष्ट है कि प्रयुथ आगामी चुनाव के बाद भी देश के प्रधानमंत्री बने रहेंगे। यह चुनाव आगामी वर्ष 2017 के अंत में होना था। लेकिन राजा भूमिबोल के निधन के बाद सेना ने इसे अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया है।
अपने जीवन काल में ही राजा भूमिबोल ने यह ऐलान किया था कि उनके युवराज ‘महावजीरालोंगकोर्न’ देश के अगले राजा होंगे। वैसे राजकुमारी जनता में अधिक लोकप्रिय हैं। राजकुमारी की शिक्षा-दीक्षा भारत में ही हुई है। युवराज विलासिता प्रिय व्यक्ति हैं और जनता में अत्यंत ही अलोकप्रिय हैं। वे अपना अधिकतर समय विदेशों में ही बिताते हैं। युवराज ने यह घोषणा की है कि आगामी 100 दिनों तक देश में शोक मनाया जाएगा। उसके बाद यह तय किया जाएगा कि वे कब पदभार ग्रहण करेंगे। सेना के प्रतिनिधि जनता को यह नहीं बता रहे हैं कि राजकुमार राज तिलक कब होगा। वे अधिक से अधिक दिनों तक राजतिलक समारोह को टालना चाहते हैं। युवराज पूरी तरह से सेना की मुट्ठी में हैं। इसलिए सेना को उन्हें राजा बनाने में बहुत अधिक कठिनाई नहीं आएगी। फिर भी यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि युवराज का राजतिलक कब होगा। देश में अभी कोई राजा नहीं है। इस कारण एक सूनापन छाया हुआ है। भूमिबोल भारत के बहुत बड़े समर्थक थे और भारत की गुटनिरपेक्ष नीति की हमेशा सराहना करते थे। प्रियुथ जो सेनाध्यक्ष हैं और प्रधानमंत्री भी, भारत के प्रबल समर्थक हैं। इसलिए भारत के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते आगे भी कायम रहेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं। विदेश के कुछ समाचार पत्रों ने भूमिबोल के निधन पर खबरे छापी थीं और संपादकीय टिप्पणियां की थीं कि भूमिबोल एक निरंकुश शासक थे। इसका जवाब सैनिक सरकार के प्रवक्ता ने बहुत ही कड़े शब्दों में दिया है कि भूमिबोल सही अर्थ में जनता के राजा थे। उनके अनगिनत गुणों के कारण ही लोग उन्हें देवता की तरह पूजते थे। भूमिबोल अक्सर किसी को बिना बताए गांव-देहात चले जाते थे और वहां आम जनता के साथ बैठकर खाना खाते और चाय पीते थे। जब इस तरह की तस्वीरें समाचार पत्रों में छपती थीं तो आम जनता भावविभोर हो जाती थी। अनेक अवसरों पर भूमिबोल ने गांव-देहात जाकर मामूली कमीज और पैंट पहनकर घंटों श्रमदान किया था जिस कारण वे बहुत अधिक लोकप्रिय हो गये थे। संक्षेप में, थाईलैंड की वर्तमान सैनिक सरकार भूमिबोल की आलोचना बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है और इसकी चेतावनी सरकार के प्रवक्ता ने विदेशी समाचार पत्रों और विदेशी टीवी चैनलों को भी दे दी है। इसके जवाब में विदेशी मीडिया के प्रतिनिधि कह रहे हैं कि थाईलैंड में अघोषित आपातकाल है और सेना ने लोगों के स्वतंत्र रूप से बोलने पर पाबंदी लगा दी है। सच इससे विपरीत है।
एक बात तो पक्की है कि राजा भूमिबोल के समय में थाईलैंड में जितना स्थायित्व था वह युवराज के समय में नहीं हो पाएगा। एशिया के सारे देशों की निगाह थाईलैंड पर टिकी हुई हैं। एक समय में थाईलैंड अत्यंत ही विकसित और समग्र देश हो गया था। लेकिन थैक्सिन और उनकी बहन के भ्रष्टाचार के कारण थाईलैंड की स्थिति जर्जर हो गई। अब सैनिक शासक दोबारा से थाईलैंड में उद्योग और व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं। देखना यह है कि इस काम में उन्हें कितनी सफलता मिलती है। सबकी निगाह युवराज के रायाभिषेक पर टिकी हुई है। सभी सांस रोककर इसी बात की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि रायाभिषेक के बाद भूमिबोल के शासन के समय में देश में जितना स्थायित्व था क्या वैसा स्थायित्व थाईलैंड में फिर से स्थापित हो पाएगा।
(लेखक पूर्व राजदूत हैं)(DJ)

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