Monday 14 November 2016

26 october 2016..छोटे उद्योगों की मुश्किल (डॉ. भरत झुनझुनवाला)

इस वर्ष जून में बैंकों के द्वारा छोटे उद्योगों को दिए जा रहे ऋण में 3.8 प्रतिशत की गिरावट आई है। गत जून में जितना ऋण उद्योगों को दिया जा रहा था, इस वर्ष उससे कम दिया गया है। एक और रपट के अनुसार 2015 में देश में मात्र एक लाख 35 हजार रोजगार उत्पन्न हुए हैं, जबकि 2011 में नौ लाख हुए थे। देश में अधिकाधिक रोजगार छोटे उद्योगों द्वारा ही उत्पन्न किए जाते हैं। छोटे उद्योगों को कम ऋण दिया जाना और रोजगार का संकुचन साथ-साथ हो रहा है। छोटे उद्योगों के संकट का मूल कारण है कि उनकी उत्पादन लागत ज्यादा आती है। मसलन गत्ते के कार्टन बनाने वाले छोटे उद्यमी को कागज छोटी मात्र में बाजार में खरीदना पड़ता है। उसे अकुशल कर्मचारी से काम लेना पड़ता है, क्योंकि वह कुशल कर्मचारी के ऊंचे वेतनमान दे पाने में असमर्थ है। उसके पास क्वालिटी कंट्रोल की लैबोरेटरी नहीं है। अत: वह माल की क्वालिटी नहीं चेक कर पाता है। फिर भी छोटे आर्डर सप्लाई करना इनके लिए सुलभ होता है। बड़ी कंपनी के लिए किसी विशेष साइज के 100 कार्टन बनाकर देना संभव नहीं होता है, लेकिन छोटे ग्राहकों का बाजार सिकुड़ता जा रहा है। विश्व बाजार के एकीकरण से बड़े उद्योगों का माल सर्वत्र पहुंच रहा है। 20 साल पहले मोहल्ले की फैक्ट्री में ब्रेड बनाई जाती थी। आज लखनऊ में बनी ब्रेड 200 किलोमीटर दूर के शहरों में पहुंच रही है।
इस विपत्ति के सामने छोटे उद्योगों के लिए टैक्स में छूट जीवनदायिनी सिद्ध हो रही है। वर्तमान में छोटे उद्योगों को 1.5 करोड़ रुपये के उत्पादन पर एक्साइज ड्यूटी नहीं अदा करनी पड़ती है। विभिन्न राज्यों में छोटे उद्योगों को सेल टैक्स में भी छूट उपलब्ध है। मसलन हरियाणा में तीन लाख का सेल टैक्स अदा करने के बाद छोटे उद्यम कितनी ही रकम के माल की बिक्री कर सकते हैं। छोटे उद्योगों के द्वारा नं. दो में भी भारी मात्र में व्यापार किया जाता है। उद्यमी नं. दो में कागज खरीद कर कार्टन बनाते हैं और नं. दो में दूसरी फैक्ट्री को बेच देते हैं। दूसरी नं. दो में बिजली का सामान बनाती है, नं. दो के कार्टन में पैक करके नं. दो में दुकानदार को बेच देती है। दुकानदार नं. दो में बिजली के सामान को ग्राहक को बेच देता है। नं. दो की इस समानांतर अर्थव्यवस्था में इनके द्वारा टैक्स नहीं अदा किया जाता है। इनकी उत्पादन लागत ज्यादा होने के बावजूद नं. दो में बिक्री से ये कम दाम पर माल बेच लेते हैं। तथापि ये लड़खड़ा रहे हैं। जैसा ऊपर बताया गया है, बैंकों द्वारा उन्हें उत्तरोत्तर कम ऋण दिया जा रहा है। छोटे उद्योगों को फिर भी सरकार जीवित रखना चाहती है, क्योंकि इनके द्वारा भारी संख्या में रोजगार उत्पन्न किए जाते हैं। जिन कार्यो को बड़े उद्योग आटोमैटिक मशीनों से कराते हैं, ये श्रमिकों से कराते हैं। छोटे उद्योगों द्वारा दूसरी सेवा उद्यमिता के विकास की उपलब्ध कराई जाती है। धीरूभाई अंबानी जैसे बड़े उद्यमी किसी समय छोटे उद्यमी थे। यदि छोटे उद्यम को संरक्षण न दिया गया होता तो धीरूभाई जैसे व्यक्ति उद्योग जगत में प्रवेश ही नहीं कर पाते। अत: छोटे उद्योगों को जीवित रखना जरूरी है। छोटे उद्योग को टैक्स की छूट दिए जाने एवं उनके द्वारा नं. दो का कारोबार किए जाने के बावजूद वे दबाव में हैं। छोटे उद्योगों के केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने हाल में सरकार के चार कदमों के बारे में बताया। पहला कदम यह है कि सरकारी उपक्रमों को कहा गया है कि वे 20 प्रतिशत माल की खरीद छोटे उद्योगों से करें। जानकार बताते हैं कि इसे लागू नहीं किया जा रहा है। पूर्व में किन्हीं उत्पादों को छोटे उद्योगों के लिए पूर्णतया आरक्षित कर दिया गया था। बड़े उद्योगों द्वारा इनके उत्पादन पर पाबंदी थी। सभी ग्राहकों को छोटे उद्योगों में बने माल को ही खरीदना पड़ता था। ये आरक्षण समाप्त कर दिए गए हैं। इसलिए छोटे उद्योगों के पक्ष में उठाया गया यह कदम निष्प्रभावी है। कलराज मिश्र द्वारा बताया गया दूसरा कदम क्लस्टर के विकास का है। छोटी इकाइयों के समूह को सामूहिक लैबोरेटरी, सिक्योरिटी तथा प्रदूषण नियंत्रण प्लांट लगाने को मदद की जाती है। तीसरा कदम उद्योगों द्वारा सृजित नए रोजगारों में दिए जाने वाले प्राविडेंट फंड में सब्सिडी का है। चौथा कदम इनके श्रमिकों के कौशल के विकास का है। इन कदमों का स्वागत है, लेकिन ये कदम कैंसर से पीड़ित छोटे उद्योगों को सिरदर्द की दवा देने सरीखे हैं। इन योजनाओं से छोटे उद्योगों की उत्पादन लागत में मामूली कमी ही आती है। बड़े उद्योगों के सस्ते माल से प्रतिस्पर्धा की समस्या के सामने ये कदम अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैंै।
छोटे उद्योगों के मंत्रलय द्वारा उठाए गए ये सकारात्मक कदम दूसरे मंत्रलय द्वारा उठाए गए नकारात्मक कदमों के कारण निष्प्रभावी हो रहे हैं। अपने देश में हवा की गुणवत्ता माप करने के उपकरण छोटे उद्योगों द्वारा बनाए जाते हैं। पर्यावरण मंत्रलय ने हाल में नोटिफिकेशन जारी किया है कि आगे अमेरिकी पर्यावरण मंत्रलय से प्रमाणपत्र प्राप्त उपकरणों को ही लगाया जाएगा। एक झटके में ही संपूर्ण घरेलू उद्योग स्वाहा कर दिया गया। कारपोरेट मसलों के मंत्रलय ने छोटी प्राइवेट कंपनियों पर लागू नियमों को बड़ी पब्लिक कंपनियों के समान बना दिया है। इन्हें वार्षिक रिटर्न को आनलाइन जमा करना होता है। इसके लिए छोटे उद्योगों को एक व्यक्ति रखना पड़ता है, जो कानून तथा कंप्यूटर, दोनों की जानकारी रखे। वित्त मंत्रलय द्वारा नं. दो के व्यापार पर सख्ती की जा रही है। इससे नं. दो का व्यापार करके जीवित रहने वाले छोटे उद्योगों के सामने जीवन का संकट है। इन्हें पूरा टैक्स अदा करना होगा, जिससे वे बाजार से बाहर हो जाएंगे। कुल मिलाकर परिस्थिति छोटे उद्योगों के लिए कठिन है। विश्व बाजार के एकीकरण से उनका क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है। छोटे उद्योग मंत्रलय द्वारा उठाए गए कदम सिरदर्द की दवा सरीखे हैं। दूसरे मंत्रलयों द्वारा इनका जीवन संकट में डाला जा रहा है। विशेषकर वित्त मंत्रलय द्वारा नं. दो का कारोबार बंद कराने से ये संकट में हैं। नं. दो का कारोबार ही इनका आक्सीजन है। तथापि नं. दो का कारोबार प्रतिबंधित होना ही चाहिए। अत: सरकार को चाहिए कि छोटे उद्योगों को दी जाने वाली टैक्स की वर्तमान 1.5 करोड़ की छूट को कम से कम 10 करोड़ करे। अन्यथा छोटे उद्योग मृत होंगे, रोजगार का हनन तीव्र गति से होगा और देश में असंतोष बढ़ेगा। 1(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं और आइआइएम बेंगलुरू में प्रोफेसर रह चुके हैं)(DJ)

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