Monday 14 November 2016

नई कूटनीतिक दिशा (vivek katju)


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिक्स कूटनीति की कांग्रेस पार्टी द्वारा आलोचना की गई है। उसकी ओर से कहा गया है कि मोदी पाकिस्तान को अलग-थलग करने में विफल रहे। क्या यह गोवा सम्मेलन और ब्रिक्स-बिम्सटेक आउटरीच बैठक में मोदी की कूटनीति का सही मूल्यांकन है? क्या उन्होंने आतंकवाद के मुद्दे पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया? ब्रिक्स पांच उभरती अर्थव्यवस्थाओं-रूस, चीन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और भारत का समूह है। इसका आरंभिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि ये सभी देश ग्लोबल अर्थव्यवस्था के प्रबंधन में बड़ी भूमिका निभाएं। बहरहाल समय के साथ ब्रिक्स का अधिक से अधिक ध्यान अंतरराष्ट्रीय राजनीति और आतंकवाद सहित सुरक्षा के विषयों पर केंद्रित होता गया। उधर थाईलैंड, म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और भारत बिम्सटेक के सदस्य हैं। इनमें से कई देश आतंकवाद की समस्या का सामना कर रहे हैं। बिम्सटेक में शामिल देशों, जिसमें से कई दक्षेस के भी सदस्य हैं, ने आतंकवाद पर पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दिया था जब उन्होंने इस्लामाबाद में होने वाले दक्षेस सम्मेलन में शामिल होने से इंकार कर दिया था। इसकी वजह से इस्लामाबाद सम्मेलन रद करना पड़ा था।1जिस प्रकार से आतंकवाद अंतरराष्ट्रीय चिंता का एक मुख्य विषय है, जिस प्रकार से ब्रिक्स और बिम्सटेक के अधिकांश देश प्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद से जूझ रहे हैं, जिस प्रकार भारत पाकिस्तान प्रायोजित और निर्देशित आतंकवाद की पीड़ा ङोल रहा है, उसे देखते हुए मोदी द्वारा गोवा सम्मेलन और बैठकों में आतंकवाद पर ध्यान केंद्रित करना सर्वथा उचित था। यह मोदी की ही देन है कि गोवा घोषणापत्र में इस विषय का विस्तृत उल्लेख किया गया। खासकर कंप्रेहेंसिव कन्वेंशन ऑफ इंटरनेशनल टेररिज्म (सीसीआइटी) के संयुक्त राष्ट्र द्वारा शीघ्र पारित कराने पर जोर देना बेहद महत्वपूर्ण है।1 मोदी ने क्षेत्र और पूरी दुनिया में आतंकवाद को बढ़ावा देने में पाकिस्तान की भूमिका को उजागर करने की हरसंभव कोशिश की। वास्तव में 16 अक्टूबर को आरंभ हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन और ब्रिक्स-बिम्सटेक बैठक के दरम्यान उन्होंने बार-बार अपने भाषणों में प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से आतंकवाद के मुद्दे को उठाया। किसी भी दूसरे भारतीय प्रधानमंत्री ने इतनी कम अवधि में आतंकवाद पर पाकिस्तान की भूमिका को सार्वजनिक करने के लिए इतना अधिक ध्यान केंद्रित नहीं किया है। 1मोदी ने पाकिस्तान को आतंकवाद की जननी बताया और कहा कि दुनियाभर में फैले आतंकवाद का संबंध किसी न किसी रूप में पाकिस्तानी धरती से है। उन्होंने पाकिस्तान पर आतंकवादी मानसिकता के पोषण का आरोप लगाते हुए कहा कि वह राजनीतिक उद्देश्य से आतंकवाद का इस्तेमाल कर रहा है। कोई भी इस बात की सत्यता से इंकार नहीं कर सकता है कि पाकिस्तान आतंकवाद का प्रयोग अपनी विदेश और सुरक्षा नीति के एक औजार के रूप में करता है। वह अफगानिस्तान को अस्थिर करने के लिए आतंकवादी गुटों का लगातार प्रयोग करता रहा है और हमेशा इस तरह की कोशिश करता रहता है कि जम्मू-कश्मीर में कभी भी शांति स्थापित न हो पाए। मोदी इस क्षेत्र में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पाकिस्तान को अलग-थलग करना चाहते हैं। जब दूसरे देश अपने यहां लोगों का जीवन स्तर सुधारने में जुटे हुए हैं तब पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहित कर रहा है। यह सच है कि पाकिस्तान को अब दुनियाभर में आतंकवाद के केंद्र के रूप में जाना जाने लगा है। 1गोवा घोषणापत्र में हालांकि सीधे तौर पर पाकिस्तान का कोई जिक्र नहीं किया गया है और न ही इस संबंध में सीधे उसकी आलोचना की गई है, लेकिन घोषणापत्र में सभी देशों से आतंकवाद को जड़ से मिटाने का आह्वान किया गया है। साथ ही यह भी कहा गया है कि सभी देशों की अपनी सीमा में ऐसी गतिविधियों को रोकने की जिम्मेदारी होगी। ब्रिक्स के सदस्य और पाकिस्तान के करीबी चीन के लिए इस घोषणापत्र की अनदेखी करना संभव नहीं होगी। सम्मेलन के बाद प्रेस को जारी बयान में मोदी ने कहा कि ब्रिक्स के नेता इस बात पर एकमत हैं कि जो आतंकवादियों को पालता है, प्रश्रय देता है, उनका समर्थन करता है और आर्थिक मदद देता है वह खुद आतंकवादियों से भी ज्यादा खतरनाक है। मोदी ने सम्मेलन की अध्यक्षता की, जिसमें अन्य नेताओं ने भी इसी तरह की राय जाहिर की। सभी ने मोदी की राय पर सहमति जताई। इसमें मोदी का निशाना पाकिस्तान रहा। सम्मेलन के बाद चीन का पाकिस्तान को लेकर रुख साफ हो गया। चीन के विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद से लड़ रहा है, जिसके बारे में दुनिया को जानना चाहिए। आतंकवाद को किसी देश या किसी धर्म के साथ नहीं जोड़ा चाहिए। सम्मेलन के दौरान चीन के राष्ट्रपति इस समस्या के राजनीतिक समाधान के लिए उभरते समर्थन को देखकर दबाव में नजर आए। जो भी हो, उड़ी हमले के बाद मोदी का जोर इस पर रहा है कि भारत अब पाकिस्तानी आतंकवाद के सामने और अधिक समय तक लाचार रहने का इच्छुक नहीं है। अगर भारत को जरूरी लगा तो सेना का इस्तेमाल भी किया जाएगा ताकि आतंकियों और उनके आकाओं को सख्त संदेश दिया जा सके। सर्जिकल स्ट्राइक यही संदेश देने के लिए की गई थी। ब्रिक्स का मंच खास तौर पर चीनी राष्ट्रपति की मौजूदगी के कारण यह संदेश देने का एक खास अवसर था कि भारत की नीति अब बदल चुकी है। अब भारत अपने हिसाब से यह तय करेगा कि पाकिस्तान को कितना कड़ा जवाब देना है। चीन भी अब यह समझ चुका है कि भारत का धैर्य समाप्त हो चुका है। 1अब तक भारत पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के लिए नियंत्रण रेखा के पार सेना का इस्तेमाल करने या अगर कभी ऐसा हुआ तो उसको मामूली रूप से स्वीकार करने से भी बचता रहा है। यह संयम इसलिए बरता गया ताकि दोनों देशों के बीच तनाव न बढ़ने पाए। अब वह दौर समाप्त हो चुका है और मोदी चाहते हैं कि दुनिया इस हकीकत को समङो और पाकिस्तान पर दबाव डाले। जब कोई देश अपने बचाव के लिए आक्रामक होता है तभी ¨हसा और आतंक के प्रायोजकों पर कारगर दबाव पड़ता है। कोई भी देश पाकिस्तान के साथ पूरी तरह रिश्ते नहीं तोड़ने वाला। पाकिस्तान के सामने यह भी स्पष्ट किया जा रहा है कि अगर वह आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता तो उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। यही वह सबक है जो पाकिस्तान ने तमाम देशों द्वारा इस्लामाबाद में सार्क सम्मेलन में भाग लेने से इंकार करने से सीखा होगा। 1(लेखक विदेश मंत्रलय में सचिव रहे हैं और पाकिस्तान मामलों के विशेषज्ञ हैं)(DJ)

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