Monday 28 November 2016

समान काम, समान वेतन (जाहिद खान)

देश के लाखों अस्थायी कर्मचारियों को राहत प्रदान करते हुए सवरेच न्यायालय ने हाल ही में जो महत्वपूर्ण फैसला दिया है, उसका सभी ओर से स्वागत हो रहा है। अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि सभी अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारियों के बराबर वेतन मिलना चाहिए। समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत पर हर हाल में अमल होना चाहिए। यानी अदालत के मुताबिक अस्थायी कामगार भी स्थायी की तरह मेहनताना पाने के हकदार हैं। जस्टिस जे.एस. खेहड़ और न्यायमूर्ति एसए बोबडे की पीठ ने कहा कि ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ की परिकल्पना संविधान के विभिन्न प्रावधानों को परीक्षण करके के बाद आई है। अगर कोई कर्मचारी दूसरे कर्मचारियों के समान काम या जिम्मेदारी निभाता है, तो उसे दूसरे कर्मचारियों से कम मेहनताना नहीं दिया जा सकता। समान काम के लिए समान वेतन के तहत हर कर्मचारी को ये अधिकार है कि वो नियमित कर्मचारी के बराबर वेतन पाए। अदालत का कहना था कि, हमारी राय में कृत्रिम प्रतिमानों के आधार पर किसी की मेहनत का फल न देना गलत है। समान काम करने वाले कर्मचारी को कम वेतन नहीं दिया जा सकता। ऐसी हरकत न केवल अपमानजनक है, बल्कि मानवीय गरिमा पर कुठाराघात है। जाहिर है अदालत ने अपने फैसले में जो कुछ भी कहा है, वह सही भी है। अदालत के इस फैसले से देश भर में अनुबंध पर काम कर रहे उन लाखों कर्मचारियों को लाभ होगा, जिन्हंे समान योग्यता होने के बावजूद अपने सहकर्मियों के समान वेतन नहीं मिलता।
गौरतलब है कि सवरेच न्यायालय पंजाब के अस्थाई कर्मचारियों से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें इन कर्मचारियों ने स्थाई कर्मचारियों के बराबर वेतन पाने के लिए अदालत का रुख किया था। इससे पहले पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट नियमित कर्मचारियों के बराबर वेतन दिए जाने की उनकी याचिका ठुकरा चुका था। हाईकोर्ट से निराशा मिलने के बाद इन अस्थायी कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी गुहार लगाई। बहरहाल, सवरेच न्यायालय ने हाईकोर्ट का आदेश पलट दिया और अपना अंतिम फैसला सुनाते हुए कहा कि देश में समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धांत पर जरूर अमल होना चाहिए। क्योंकि भारत सरकार ने ‘इंटरनेशनल कंवेंशन ऑन इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चरल राइट्स, 1966’ पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें समान कार्य के लिए समान वेतन देने की बात कही गई है। पीठ ने कहा कि अस्थायी कर्मचारी अगर स्थायी कर्मचारियों वाला काम करता है या जिम्मेदारी निभाता है, तो कोई कारण नहीं बनता कि उसे स्थायी कर्मचारियों के समान वेतन न मिले। अदालत ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि पंजाब सरकार को ‘समान काम के लिए समान वेतन’ सिद्धांत को मानना ही होगा।
सवरेच न्यायालय की पीठ ने अपने फैसले में कई अहम टिप्पणियां करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत इससे पहले भी अपने कई फैसलों में इस सिद्धांत का हवाला दे चुकी है और उसका फैसला कानून होता है। पीठ का कहना था कि, कोई भी अपनी मर्जी से कम वेतन पर काम नहीं करता। वो अपने सम्मान और गरिमा की कीमत पर अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए इसे स्वीकार करता है। क्योंकि उसे पता होता है कि अगर वो कम वेतन पर काम नहीं करेगा, तो उस पर आश्रित इससे बहुत पीड़ित होंगे। कम वेतन देने या ऐसी कोई और स्थिति बंधुआ मजदूरी के समान है। इसका इस्तेमाल अपनी प्रभावशाली स्थिति का फायदा उठाते हुए किया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि ये कृत्य शोषणकारी और परपीड़क है। इससे अस्वैछिक दासता थोपी जाती है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि समान काम के लिए समान वेतन का फैसला सभी तरह के अस्थायी कर्मचारियों पर लागू होता है। यानी सवरेच न्यायालय का यह फैसला देश में सभी पर बाध्यकारी होगा। देश में फिलवक्त सार्वजनिक क्षेत्र में 50 फीसदी और निजी क्षेत्र में 70 फीसदी कर्मचारी ऐसे हैं, जो संविदा पर काम करते हैं। जहां तक केंद्र के सरकारी महकमों का सवाल है, तो ‘इंडियन स्टफिंग फेडरेशन’ की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय महकमों में 1 करोड़ 25 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनमें 69 लाख कर्मचारी ठेके या संविदा पर कार्यरत हैं। इन ठेका मजदूरों या संविदाकर्मियों की हालत बेहद खराब है। कई मर्तबा इन्हें न्यूनतम मजदूरी तक नहीं मिलती। इनके हितों के लिए बने श्रम कानूनों का भी इन्हें किसी तरह का फायदा नहीं मिलता। जबकि ‘ठेका मजदूर (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम-1970’ की धारा 25 (5) (अ) के मुताबिक यदि कोई मजदूर ठेकेदार द्वारा नियोजित है, पर वह प्रधान नियोजक द्वारा नियोजित श्रमिक के समान ही काम करता है तो उसे वेतन, छुट्टी, कार्यावधि वहीं प्राप्त होगी जो प्रधान नियोजक के द्वारा नियोजित श्रमिक को मिलती है। इस कानून को संसद में छियालिस साल पहले पारित किया गया था, लेकिन आज भी यह कानून देश में सही तरह से लागू नहीं है। ‘समान काम समान वेतन’ और ‘स्थाई काम, स्थाई भर्ती’ सिद्धांत लागू करने की मांग को लेकर देश भर के कर्मचारी वर्षो से प्रदर्शन करते रहे हैं। पर उनकी यह संवैधानिक मांग लगातार अनसुनी की जाती रही है। जबकि समान काम के लिए समान वेतन की व्यवस्था हमारे संविधान के अनुछेद 14 में ही निहित है। कमोबेश यही बात संविधान के अनुछेद 39 (घ) में कही गई है। यही नहीं समान वेतन अधिनियम 1976 में भी यह साफ प्रावधान है कि एक ही तरीके के काम के लिए समान वेतन मिलना चाहिए। बावजूद इसके इन कानूनों की हर ओर अवहेलना की जाती रही है। किसी भी पार्टी की कोई भी सरकार रही हो ‘समान काम के लिए समान वेतन’ के सिद्धांत को उसने बिल्कुल भी नहीं माना। यादातर रायों में अलग-अलग नामों से बड़ी तादाद में कर्मचारी और मजदूर संविदा के आधार पर नौकरी में हैं। जब भी चुनाव का मौका आता है, तो हर राजनीतिक पार्टी इन कर्मचारियों से वादा करती हैं कि वे सत्ता में आई, तो इन कर्मचारियों को नियमित कर देंगी और उन्हें समान वेतन भी देंगी। लेकिन सत्ता में आने के बाद कोई वादा पूरा नहीं होता। यह सिलसिला सालों से मुसलसल जारी है और हर बार कर्मचारी ही ठगा जाता है।
यह उम्मीद बंधना लाजिमी है कि पंजाब सरकार इस फैसले को राय में तुरंत लागू करेगी। पंजाब ही नहीं पूरे देश में जहां-जहां भी अस्थायी कर्मचारी कार्यरत हैं, वहां की राय सरकारों का यह सामाजिक दायित्व है कि वे अपने यहां न सिर्फ इन कर्मचारियों को नियमित करने की प्रक्रिया तेज करें, बल्कि उन्हें समान काम के लिए समान वेतन भी दें। अछी बात यह है कि अदालत के इस फैसले के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने राय में अस्थायी कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों के समान ही वेतन देने का ऐलान किया है। दिल्ली सरकार के नक्शे कदम पर वे राय सरकारें भी चल सकती हैं, जहां सरकारी एवं गैर सरकारी नौकरियों में बड़ी संख्या में ठेके एवं संविदा पर लोग काम कर रहे हैं और उन्हें स्थायी कर्मचारियों की तरह समान वेतन नहीं मिल रहा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)(DJ)

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